प्राकृतिक वातावरण में मेवाड़ स्थापत्य शैली में निर्मित उदयपुर की सरस्वती लाइब्रेरी

प्राकृतिक वातावरण में मेवाड़ स्थापत्य शैली में निर्मित उदयपुर की सरस्वती लाइब्रेरी

1887 में निर्मित इस लाइब्रेरी का हाल ही में डिजिटलाइज़ेशन किया गया

 
saraswati library udaipur

दुनिया भर में किताबों के शौक़ीन अच्छी लाइब्रेरीज की तलाश में रहते हैं। अगर उन्हें सबसे पुरानी लाइब्रेरीज मिल जाएं तो कहना ही क्या। आज हम आपको ऐसे ही एक प्राचीन लाइब्रेरी के बारे में बताने जा रहे है। झीलाें और पहाड़ाें की यह नगरी एक तरफ अपनी प्राकृतिक साैंदर्य विरासत सहेजे हुए ताे दूसरी ओर साहित्य संरक्षण में भी अगुवा है। गवाह है शहर का सबसे पुराना सरस्वती पुस्तकालय,  इसमें डेढ़ लाख किताबें हैं। जीर्णाेद्धार और नया रीडिंग रूम बनाने के साथ कई किताबाें का डिजिटलाइजेशन भी किया जा रहा।

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सरस्वती भवन पुस्तकालय की ऐतिहासिक पृष्ठंभूमि

  • गुलाबबाग में सरस्वती भवन पुस्तकालय शामिल है, जो मूल रूप से विक्टोरिया हॉल संग्रहालय के रूप में जाना जाने वाला एक संग्रहालय था। यह पूरे राजस्थान में पहला संग्रहालय था, महारानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती (1887) के अवसर पर महाराणा फतेह सिंह (1884-1930) ने विक्टोरिया हॉल का निर्माण करवाया था। जिसे 1 नवंबर 1890 को जनता के लिए चालू किया गया था।
    इसका आधिकारिक तोर पर उद्घाटन वायसराय लॉर्ड लैंस डोवने ने किया था। वर्ष 1890 में संग्रहालय के पहले क्यूरेटर गौरी शंकर ओझा नियुक्त किये गए  थे। संग्रहालय में कई दुर्लभ कलाकृतियाँ और ऐतिहासिक शिलालेख लिखे हुए है। जो तीसरी शताब्दी से 17वीं शताब्दी के पूर्व के है। वर्तमान में यह जिला पुस्तकालय एवं वाचनालय है। 
    इसमें सफ़ेद संगेमरमर में उकेरी गयी रानी विक्टोरिया की एक बड़े आकार की मूर्ति भी है। यह मूर्ति मूल रूप से पुस्तकालय के बाहर विशाल उद्यान में रखी गयी थी लेकिन आज़ादी के बाद 1948 के आसपास इस प्रतिमा को हटा दिया गया और राष्ट्र की आज़ादी की जीत को संजोने के लिए महात्मा गांधी की एक प्रतिमा स्थापित कर दी गई।  
    1968 में, संग्रहालय को सिटी पैलेस में स्थानांतरित कर दिया गया था, और इसका नाम बदलकर प्रताप संग्रहालय रख दिया गया। साथ ही भवन को सार्वजनिक पुस्तकालय में बदल दिया गया था। 

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सरस्वती पुस्तकालय की स्थापत्य कला-

यह लाइब्रेरी कला और वास्तु की दृष्टि से सभी को आकर्षित करती है। यह एक सुंदर दिखने वाली मेवाड़ स्थापत्य शैली की इमारत है, इसकी प्रमुख विशेषताएं झरोखा, गुम्बद और जालियां है जबकि प्रवेश द्वार की निर्माण सामग्री में पत्थर, चूना, लकड़ी, धातु आदि.मुख्यतः है। इसके टावरों पर गुंबद हैं। पार्क से इमारत का व्यू देखने लायक होता है। . 

architect of saraswati library udaipur

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सेवानिवृत कर्मी सुनील हाडा ने उदयपुर टाइम्स की टीम से बातचीत करते हुए बताया की पहले के दौर में यहाँ वो लोग आया करते थे जो लाइब्रेरी के सदस्य थे। उन सदस्यों में बुजुर्ग, रिटायर्ड व्यक्ति, पीएचडी स्कॉलर, स्कूल-काॅलेज के छात्राें सहित प्रतियाेगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी और शिक्षक-व्याख्याता भी अपनी जानकारियां बढ़ाने आते। चूँकि पहले के ज़माने में मोबाइल इंटरनेट नही हुआ करते थे तो अगर किसी बच्चे को स्कूल में निबन्ध पे बोलना करना होता था तो माँ-बाप इधर लाइब्रेरी में आया करते थे, और उस विषय की किताब को ढूँढ़ लिया करते थे और उस विषय पर लिखते थे और यहाँ पे कई लोग बैठ कर अध्ययन भी किया करते थे।

rare books

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  • इस पुस्तकालय में लाखों महत्वपूर्ण किताबे है जैसे की इतिहास, पुरातत्व, वेदांत फिलोसोफी,धार्मिक, उपन्यास, आयुर्वेदिक बुक्स, इंडोलॉजी और कई पांडुलिपियों से संबंधित 32000 से अधिक पुस्तकें हैं जो प्रारंभिक मध्ययुगीन काल की हैं। आरआरएलएफ सेक्शन में 26215 किताबें हैं, जबकि किड्स सेक्शन में 3800 किताबें हैं। पुस्तकालय में पंजीकरण कराने पर, 14 दिनों तक पढ़ने के लिए पुस्तकें उपलब्ध रहती हैं।

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सरस्वती लाइब्रेरी में न्यू हाल का निर्माण हुआ जिसका उद्घाटन उदयपुर कलेक्टर ताराचंद मीणा ने 8 फरवरी 2023 को किया। 

tarachand meena

आईये जानते है न्यू हॉल लाइब्रेरी में क्यों बनाया गया-

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लाइब्रेरी में बच्चो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी.इसका मुख्य कारण था यहाँ का वातावरण। ऐसा वातारण किसी भी लाइब्रेरी में नही मिल सकता। यहाँ शांतिपूर्ण व सुकूनदेह वातावरण है यहाँ जो प्राकृतिक दृश्य है ऐसा वातारण सिर्फ गुलाबबाग़ परिसर में ही मिल सकता है। इससे एक प्राकृतिक लाइब्रेरी भी कहते है। ऐसे वातावरण में लोग पढना पसंद करते है। 
 

एक बार उदयपुर की पूर्व कलेक्टर और यूआईटी की तत्कालीन चेयरमैन आनदी जो की मूलतः साउथ इंडियन थी और लाइब्रेरी की काफ़ी शौक़ीन थी तो उन्होंने एक दिन सरस्वती लाइब्रेरी का भ्रमणं किया तो उन्होंने देखा की गुलाबबाग़ परिसर में इतनी प्राचीन लाइब्रेरी है उन्होंने लाइब्रेरी विजिट कर बच्चो की संख्या को देखकर लगा की यहाँ बच्चो की बैठने की जगह बहुत कम है, और बच्चे बहुत ज्यादा है, तो उन्होंने सोचा की क्यों ना इन बच्चों के लिए एक रीडिंग हॉल बनाया जाए। जिससे 250 बच्चे यहाँ बैठ जायेंगे और 250 बच्चे इधर न्यू हॉल में बैठ जाएंगे और 300 की कैपेसिटी रहेगी और यह बच्चें अपने प्रतियाेगी परीक्षाओं की तैयारी घर पे करने के बजाए यहाँ शांतिपूर्ण वातावरण में बैठ के कर लेंगे। यूआईटी की चेयरमैन होने के कारण उन्होंने नए हॉल के निर्माण के लिए 50 लाख का संस्वीकृति पास करवाया।  

यहाँ के 50 लाख के संस्वीकृति पास करवाने के बाद कुछ लोग नही चाहते थे की लाइब्रेरी में न्यू हॉल का निर्माण हो तो उन्होंने बहुत विरोध भी किया। ऐसे कहते हुए की इससे प्राचीन बिल्डिंग का लुक ख़राब हो रहा है और गुलाबबाग़ का ऑक्सीजन हब बिगड़ रहा है। इस हॉल को बनने में बहुत सी बाधाए आई जो काम एक साल में पूरा होना था उस काम में चार साल लग गये। तब सुनील हाडा और लाइब्रेरी के कुछ कर्मचारियों ने लोगों के घर जाकर उन्हें समझाया की यहाँ हॉल लाइब्रेरी के अन्दर बन रहा है, इससे परिसर को कोई नुक्सान नही होगा तो वे सभी लोग जो विरोध कर रहे थे उन्होंने देखा की इससे परिसर को कोई भी परेशानी नही होगी तो उन्होंने इसका विरोध करना बंद किया। सरस्वती लाइब्रेरी में न्यू हॉल बनाने में यूआईटी का विशेष योगदान रहा विशेषकर यूआईटी के संजू शर्मा, अधिवक्ता प्रवीण खंडेलवाल, दिनेश गुप्ता और एम के मेहता आदि का बच्चो के पढने के लिए न्यू हॉल के निर्माण में पूरा सहयोग रहा। 

furniture of library

  • सरस्वती लाइब्रेरी में न्यू रीडिंग हॉल का फर्नीचर रविन्द्र हेरायूस प्राइवेट लिमिटेड माद्री द्वारा डोनेट किया गया है।    











 

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