दुनिया भर में किताबों के शौक़ीन अच्छी लाइब्रेरीज की तलाश में रहते हैं। अगर उन्हें सबसे पुरानी लाइब्रेरीज मिल जाएं तो कहना ही क्या। आज हम आपको ऐसे ही एक प्राचीन लाइब्रेरी के बारे में बताने जा रहे है। झीलाें और पहाड़ाें की यह नगरी एक तरफ अपनी प्राकृतिक साैंदर्य विरासत सहेजे हुए ताे दूसरी ओर साहित्य संरक्षण में भी अगुवा है। गवाह है शहर का सबसे पुराना सरस्वती पुस्तकालय, इसमें डेढ़ लाख किताबें हैं। जीर्णाेद्धार और नया रीडिंग रूम बनाने के साथ कई किताबाें का डिजिटलाइजेशन भी किया जा रहा।
सरस्वती भवन पुस्तकालय की ऐतिहासिक पृष्ठंभूमि
सरस्वती पुस्तकालय की स्थापत्य कला-
यह लाइब्रेरी कला और वास्तु की दृष्टि से सभी को आकर्षित करती है। यह एक सुंदर दिखने वाली मेवाड़ स्थापत्य शैली की इमारत है, इसकी प्रमुख विशेषताएं झरोखा, गुम्बद और जालियां है जबकि प्रवेश द्वार की निर्माण सामग्री में पत्थर, चूना, लकड़ी, धातु आदि.मुख्यतः है। इसके टावरों पर गुंबद हैं। पार्क से इमारत का व्यू देखने लायक होता है। .
सेवानिवृत कर्मी सुनील हाडा ने उदयपुर टाइम्स की टीम से बातचीत करते हुए बताया की पहले के दौर में यहाँ वो लोग आया करते थे जो लाइब्रेरी के सदस्य थे। उन सदस्यों में बुजुर्ग, रिटायर्ड व्यक्ति, पीएचडी स्कॉलर, स्कूल-काॅलेज के छात्राें सहित प्रतियाेगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी और शिक्षक-व्याख्याता भी अपनी जानकारियां बढ़ाने आते। चूँकि पहले के ज़माने में मोबाइल इंटरनेट नही हुआ करते थे तो अगर किसी बच्चे को स्कूल में निबन्ध पे बोलना करना होता था तो माँ-बाप इधर लाइब्रेरी में आया करते थे, और उस विषय की किताब को ढूँढ़ लिया करते थे और उस विषय पर लिखते थे और यहाँ पे कई लोग बैठ कर अध्ययन भी किया करते थे।
सरस्वती लाइब्रेरी में न्यू हाल का निर्माण हुआ जिसका उद्घाटन उदयपुर कलेक्टर ताराचंद मीणा ने 8 फरवरी 2023 को किया।
आईये जानते है न्यू हॉल लाइब्रेरी में क्यों बनाया गया-
लाइब्रेरी में बच्चो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी.इसका मुख्य कारण था यहाँ का वातावरण। ऐसा वातारण किसी भी लाइब्रेरी में नही मिल सकता। यहाँ शांतिपूर्ण व सुकूनदेह वातावरण है यहाँ जो प्राकृतिक दृश्य है ऐसा वातारण सिर्फ गुलाबबाग़ परिसर में ही मिल सकता है। इससे एक प्राकृतिक लाइब्रेरी भी कहते है। ऐसे वातावरण में लोग पढना पसंद करते है।
एक बार उदयपुर की पूर्व कलेक्टर और यूआईटी की तत्कालीन चेयरमैन आनदी जो की मूलतः साउथ इंडियन थी और लाइब्रेरी की काफ़ी शौक़ीन थी तो उन्होंने एक दिन सरस्वती लाइब्रेरी का भ्रमणं किया तो उन्होंने देखा की गुलाबबाग़ परिसर में इतनी प्राचीन लाइब्रेरी है उन्होंने लाइब्रेरी विजिट कर बच्चो की संख्या को देखकर लगा की यहाँ बच्चो की बैठने की जगह बहुत कम है, और बच्चे बहुत ज्यादा है, तो उन्होंने सोचा की क्यों ना इन बच्चों के लिए एक रीडिंग हॉल बनाया जाए। जिससे 250 बच्चे यहाँ बैठ जायेंगे और 250 बच्चे इधर न्यू हॉल में बैठ जाएंगे और 300 की कैपेसिटी रहेगी और यह बच्चें अपने प्रतियाेगी परीक्षाओं की तैयारी घर पे करने के बजाए यहाँ शांतिपूर्ण वातावरण में बैठ के कर लेंगे। यूआईटी की चेयरमैन होने के कारण उन्होंने नए हॉल के निर्माण के लिए 50 लाख का संस्वीकृति पास करवाया।
यहाँ के 50 लाख के संस्वीकृति पास करवाने के बाद कुछ लोग नही चाहते थे की लाइब्रेरी में न्यू हॉल का निर्माण हो तो उन्होंने बहुत विरोध भी किया। ऐसे कहते हुए की इससे प्राचीन बिल्डिंग का लुक ख़राब हो रहा है और गुलाबबाग़ का ऑक्सीजन हब बिगड़ रहा है। इस हॉल को बनने में बहुत सी बाधाए आई जो काम एक साल में पूरा होना था उस काम में चार साल लग गये। तब सुनील हाडा और लाइब्रेरी के कुछ कर्मचारियों ने लोगों के घर जाकर उन्हें समझाया की यहाँ हॉल लाइब्रेरी के अन्दर बन रहा है, इससे परिसर को कोई नुक्सान नही होगा तो वे सभी लोग जो विरोध कर रहे थे उन्होंने देखा की इससे परिसर को कोई भी परेशानी नही होगी तो उन्होंने इसका विरोध करना बंद किया। सरस्वती लाइब्रेरी में न्यू हॉल बनाने में यूआईटी का विशेष योगदान रहा विशेषकर यूआईटी के संजू शर्मा, अधिवक्ता प्रवीण खंडेलवाल, दिनेश गुप्ता और एम के मेहता आदि का बच्चो के पढने के लिए न्यू हॉल के निर्माण में पूरा सहयोग रहा।
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