इन दिनों शहर को चमकया और संवारा जा रहा है। आगामी दिसंबर माह में बड़ा इवेंट जो होना है। पर्यटकों से गुलज़ार रहने वाली लेकसिटी को वैसे तो हमेशा चमकना चाहिए। देश विदेश से पर्यटक आखिर इस शहर को निहारने ही तो आते है। यहाँ की खूबसूरत झीले, इमारते और अरावली की पहाड़ियों की खूबसूरती निहारने ही पर्यटक यहाँ आते है। फिर भी इस शहर के कर्णधारो को चमकाने का ख्याल तभी आता है जब कोई बड़ा इवेंट होना होता है।
जैसे की इस वर्ष ही मार्च में राज्य में सत्ताधारी दल का नव संकलप शिविर और अब आने वाले महीने में होने वाली G-20 शेरपा मीटिंग। इस बैठक में 20 देशो के राजनयिक ही हिस्सा नहीं लेंगे बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मीडिया भी इन्हे कवरेज करने के लिए आएगा। ऐसे में शहर की टूटी सड़के, झीलों में पसरी गंदगी, सुरक्षा व्यवस्था आदि को चाक चौबंद करना ज़रूरी ही नहीं बल्कि प्रशासन की मजबूरी भी है।
सेवाश्रम से लेकर अंबामाता तक शहर की सड़को को दुरुस्त किया जा रहा है। फतेहपुरा से सुखाड़िया तक सड़क किनारे दीवारों पर पेंटिंग्स की जा रही है। झीलों से गंदगी हटाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रतापनगर से सेवाश्रम वाले ब्रिज को पूरा करने का भरसक प्रयास किया जा रहा है। हालाँकि यह कवायद पूरे शहर में नहीं हो रही है वहीँ पर की जा रही है जहाँ वीआईपी मेहमानो की चहलकदमी होनी है। बाकि शहर के हाल तो सर्वविदित है। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दिन रात अधिकारी मीटिंग कर रहे है। सभी प्रयास सराहनीय है और उम्मीद की जा रही है कि शेरपा मीटिंग के पहले सभी कार्य पूर्ण हो जायेंगे।
सवाल यहाँ यह उठता है की जब यह पर्यटन नगरी है तो यह सब कवायद तभी क्यों की जाती है जब कोई बड़ा इवेंट होना होता है या चुनाव होने वाले हो, वर्ष भर या आम दिनों में क्यों नहीं ? । अभी फिलहाल वोटर्स साइड में है, अभी तो मेहमान नवाज़ी की परीक्षा देनी है। जबकि इस शहर के लाखो लोगो को रोज़ी रोटी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन पर टिकी हुई है। क्या कुंआ तभी खोदा जाना चाहिए जब प्यास की शिद्द्त सताए ? हमारी सरकार की यह परम्परा क्या बदलनी नहीं चाहिए?
और ऐसा भी नहीं होता है की इवेंट गुज़र जाने के बाद शहर की चमक दमक बरकरार रहती हो। नगर निगम और प्रशासन द्वारा इवेंट गुज़र जाने के बाद फिर वही रखरखाव और मेंटेनेंस को लेकर लापरवाही जारी रहती है। फिर से शहर को चमकाने के लिए प्रशासन को किसी बड़े इवेंट का इंतज़ार और नगर निगम को स्थानीय निकाय के चुनावो का इंतज़ार क्यों होता है ?
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