उदयपुर 24 जनवरी 2025। दी उदयपुर अरबन को-ऑपरेटिव बैंक के साथ करोडो की धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। जहाँ बैंक प्रतिनिधि ने कम्पनी के मालिक, उनकी पत्नी व बेटे तथा दो अन्य लोगो की खिलाफ केस दर्ज करवाया है। जिसमे बैंक से ऋण सुविधा के तौर पर लिए गए 4.34 करोड़ रूपये नहीं चुकाने और गारंटी के तौर पर दी गई सम्पति को बेचने का आरोप लगाया गया है।
पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार दी उदयपुर अरबन को-ऑपरेटिव बैंक की शाखा फतहपुरा शाखा के द्वारा मेसर्स सोनी एक्सपोर्ट (प्रोप्राइटर कैलाश सोनी) को 12 जुलाई 20214 को 2 करोड़ की ऋण सुविधा प्रदान की गई थी। उसमें कैलाश सोनी की पत्नी दिलखुश देवी के स्वामित्व का प्लाट न-4-5 जो सुखेर नेशनल हाईवे सं. 8 उदयपुर में आराजी सं. 414/1860, 414/1861, 395/ 1861 में स्थित है उसको साम्यिक बंधक (गारंटी का तौर पर) रखा गया था। श्रीमती दिलखुश देवी के द्वारा इसमें अपनी व्यक्तिगत गारंटी भी दी गई थी।
उक्त फर्म को 30 जून 2016 को 15 लाख का एक और ऋण सुविधा उपलब्ध करवाई। इसके बाद उक्त फर्म द्वारा समय पर ऋण सुविधा का भुगतान नहीं करने पर बैंक द्वारा उसे 1 सितंबर 2017 में NPA घोषित कर दिया गया था। बैंक द्वारा समय-समय पर ऋण वसूली की कार्यवाही जारी रखी गई थी। 15 दिंसबर 2019 को लोन बढ़कर 3.1 करोड़ हो गया। इसके बाद गारंटरों को सम्पतियो की नीलामी के संबंध में नोटिस दिया, इस बीच कैलाश सोनी का निधन हो गया। कैलाश सोनी की पत्नी दिलखुश सोनी और उनके पुत्र आकाश सोनी को नोटिस दिए। तब तक ऋण की राशि बढ़कर 4.34 करोड़ रूपये हो गयी।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण व्यास ने बताया कि अभी जब बैंक द्वारा SARFESAI Act में कार्यवाही पुनः चालू करते समय यह जानकारी में आया कि श्रीमती दिलखुश देवी सोनी ने 8 वर्ष पूर्व ही बिना ऋण की राशि को अदा किए व संपति को मुक्त कराए बिना ही उक्त सम्पत्ति को दिनांक 3.6.2016 को मैसर्स कनक एसोसिएटस को विक्रय कर दी एवं खरीदार फर्म द्वारा 6 जनवरी 2020 को नगर विकास प्रन्यास से नामान्तरण भी प्राप्त कर लिया गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण व्यास ने बताया कि इस धोखाधड़ी के सामने आने के बाद बैंक ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास किया, लेकिन लंबे समय तक एफआईआर दर्ज नहीं होने से बैंक ने न्यायालय की शरण ली। न्यायालय शहर दक्षिण नं-2 उदयपुर में सुनवाई के बाद पीठासीन अधिकारी निर्मला जगमोहन ने हाथीपोल थानाधिकारी को आरोपियों के खिलाफ धारा 816(2), 318(4), 338, 336(3), 340 (2) एवं 61(2) एवं धारा 29 SARFESAI Act 2002 के अन्तर्गत कानूनी कार्यवाही का आदेश दिया ।
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