इला अरुण के जीवन सफर की कहानी है उनकी लिखी किताब 'पर्दे के पीछे'


इला अरुण के जीवन सफर की कहानी है उनकी लिखी किताब 'पर्दे के पीछे'

उदयपुर में अहसास वीमेन के साथ इला अरुण और अंजुला बेदी का साक्षात्कार

 
Ila Arun parde ke peeche

उदयपुर 13 जनवरी 2025। उदयपुर के रेडिसन ब्लू होटल में प्रभा खेतान फाउंडेशन के कार्यक्रम अहसास वीमेन के तहत राजस्थानी लोक संगीत से लेकर बॉलीवुड में अपनी छाप छोड़ने वाली सिंगर, डांसर, और अभिनेत्री इला अरुण ने अपनी जीवनी पर लिखी किताब 'पर्दे  के पीछे' और अपने सफर को लेकर बेबाक बातचीत की। 

आपको बता दे बॉलीवुड सिंगर इला अरुण रविवार को उदयपुर यात्रा पर पहुंचीं। इस दौरान फतहसागर झील किनारे होटल रेडिसन ब्लू पैलेस में उनकी आत्मकथा पुस्तक 'परदे के पीछे 'का विमोचन किया गया। 

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प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा एहसास-वुमेन ऑफ उदयपुर के सहयोग से पुस्तक विमोचन समारोह में पुस्तक की लेखिका इला अरुण, सह लेखिका अंजुला बेदी, चर्चित नाट्य निर्देशक भानु भारती, कश्ती फाउंडेशन प्रमुख श्रद्धा मुर्डिया, स्वाति अग्रवाल आदि अतिथियों ने पुस्तक 'परदे के पीछे' का विमोचन किया। समारोह में अतिथियों का स्वागत स्वाति अग्रवाल ने किया।

इस कार्यक्रम के तहत इला अरुण पर सवालों की बौछार किसी और ने नहीं बल्कि उनकी अपनी जीवनी पर लिखी किताब 'पर्दे  के पीछे' की सह लेखिका (Co-Author) अंजुला बेदी ने की।  

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15 मार्च 1954 में राजस्थान के जोधपुर में जन्मी और जयपुर में पाली बढ़ी राजस्थानी लोक संगीत में अपनी पहचान बना चुकी इला अरुण की प्रसिद्धि उस समय चरम पर पहुँच गयी जब 1993 में सुभाष घई की फिल्म खलनायक के विवादित 'चोली के पीछे' नामक गीत से अपना जादू चलाया। कार्यकर्म में सवाल के जवाब में इला अरुण के कहा की भले ही यह गीत विवादित हो लेकिन इस गीत में कोई अश्लीलता नहीं है।  इस गीत की पहली लाहन है "चोली के पीछे क्या है ?" जिसका आनंद बक्शी जी ने खूबसूरती से जवाब भी लिखा है "चोली में दिल है मेरा " 

जयपुर से मायानगरी मुंबई आकर इला ने प्रदर्शन कला की हर विधा में अपना नाम बनाया- फिल्म, टेलीविजन, संगीत और पार्श्व गायन और एक संगीतकार और गीतकार के रूप में भी। लगभग पचास वर्षों की अपनी रचनात्मक यात्रा के दौरान, इला इस क्षेत्र के कई जाने-माने नामों से जुड़ी रही हैं। जिनमे श्याम बेनेगल, शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नीना गुप्ता, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, लता मंगेशकर, अलका याग्निक जैसी बॉलीवुड हस्तियां शामिल हैं। हालाँकि थियेटर अभी भी उनका जुनून है।

कई मौलिक नाटक और कई रूपांतरण और गीत लिखने वाली इला अरुण ने एक लेखिका के रूप में अपनी सह लेखिका (Co-Author) अंजुला बेदी के साथ अपनी जीवनी 'पर्दे के पीछे' में पहली किताब लिखी है, यह एक आत्मकथा है जिसमें उनके बचपन से लेकर वर्तमान तक का जीवन दर्ज है। यह रंगमंच, फिल्म और संगीत की दुनिया में उनकी सफलताओं और निराशाओं का एक ईमानदार चित्रण है।

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इला की किताब अपनी अनूठी शैली में, ईमानदारी और हास्य के स्पर्श के साथ एक कहानी है, जहाँ वह मंच पर और मंच के पीछे अपने जीवन और अनुभव की एक झलक साझा कर रही हैं ।

'पर्दे के पीछे उनकी सफलताओं और निराशाओं का एक ईमानदार और सम्मोहक वर्णन है। जो की राजस्थान के गांवों से लेकर बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया तक एक रचनात्मक व्यक्ति के रूप में उनके सफ़र को समेटे हुए है। पर्दे के पीछे उनके शानदार करियर की चकाचौंध से परे जाकर उनके भीतर के कलाकार को उजागर करती है। एक भावुक कलाकार जिसका जीवन हमेशा थिएटर के प्रतीकात्मक पर्दे से बंधा रहा है।

कार्यक्रम के दौरान इला अरुण ने बताया कि सिर्फ 'चोली के पीछे' ही नहीं बल्कि लम्हे का 'मोरनी बागां मा बोले', 'मेघा रे मेघा' जैसे गीत के साथ साथ सबसे अधिक प्रसिद्धि उन्हें एक एल्बम गीत 'वोट फॉर घाघरा' से मिली।  इस गीत के अंश पर उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद युवतियों के साथ डांस की झलक भी दिखाई।   इसके अतिरिक्त उनके एल्बम 'निगोड़ी कैसी जवानी',  'बंजारन' ने उन्हें राजस्थान लोक संगीत का सिरमौर बना दिया।  

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कई प्रसिद्ध बॉलीवुड गीतों की प्लेबैक सिंगर इला अरुण में अभिनेत्री के रूप में गोविन्द निहलानी की 'अर्ध सत्य', द्रोह काल और श्याम बेनेगल की 'मंडी' 'त्रिकाल' जैसी सामानांतर फिल्मो के साथ 'जोधा अकबर', चाइना गेट, वेलकम तो सुजानपुर जैसी फिल्मो में अभिनय से अपनी छाप भी छोड़ी।  इला अरुण ने बताया की उन्होंने अधिकतर फिल्मे श्याम बेनेगल के साथ की है।   

कार्यक्रम के अंत में इला अरुण ने मौजूद अपने प्रशंसको के साथ सेल्फी भी खिंचवाई और अपनी लिखी किताब पर अपना ऑटोग्राफ भी अंकित किया। वहीँ अंत में अहसाद वीमेन की कनिका अग्रवाल, मूमल भंडारी, रिद्धिमा दोशी, श्रद्धा मुर्डिया, शुभ सिंघवी और कनिका अग्रवाल ने इला अरुण और अंजुला बेदी का आभार प्रकट किया।          
 

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