राजीनामे से निपटाया 40 वर्ष पुराना प्रकरण

राजीनामे से निपटाया 40 वर्ष पुराना प्रकरण

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण उदयपुर के मध्यस्थता केन्द्र ने एक बडी उपलब्धि हासिल करते हुए 40 वर्ष पुराना दुकान मालिक एवं किरायेदार का मामला निपटाया । श्रीमती रिद्धिमा शर्मा पूर्णकालिक सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उदयपुर ने बताया वर्ष 1978 में  दुकान मालिक ने बापूबाजार स्थित दुकान को किरायेदार से खाली करवाने एवं कब्जा लेने के लिए वाद दायर किया था। वर्ष 1978 से प्रकरण उदयपुर के विभिन्न न्यायालयों में चल रहा था।

 

राजीनामे से निपटाया 40 वर्ष पुराना प्रकरणजिला विधिक सेवा प्राधिकरण उदयपुर के मध्यस्थता केन्द्र ने एक बडी उपलब्धि हासिल करते हुए 40 वर्ष पुराना दुकान मालिक एवं किरायेदार का मामला निपटाया। श्रीमती रिद्धिमा शर्मा पूर्णकालिक सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उदयपुर ने बताया वर्ष 1978 में  दुकान मालिक ने बापूबाजार स्थित दुकान को किरायेदार से खाली करवाने एवं कब्जा लेने के लिए वाद दायर किया था। वर्ष 1978 से प्रकरण उदयपुर के विभिन्न न्यायालयों में चल रहा था। श्रीमती रविबाला सिंह, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा तारीख पेशी पर दोनों पक्षकारों को राजीनामें से प्रकरण को निपटाने के लिए एडीआर मध्यस्थता केन्द्र में जाने के निर्देश दिये । 

श्री महेन्द्र कुमार दवे, एडीजे नम्बर 2 जज इन्चार्ज मिडिऐशन को इस प्रकरण में मध्यस्थ नियुक्त  किया गया। श्री महेन्द्र कुमार दवे, जज इन्चार्ज मिडिऐशन ने दोनों पक्षकारों को राजीनामें के लाभ बताए। श्री दवे द्वारा पक्षकारों को यह समझाया गया की आपसी राजीनामें से प्रकरण का निस्तारण करनेे पर सिविल मामलों में न्यायालय द्वारा फीस वापस लौटाई जाती है तथा पक्षकार शीध्र न्याय प्राप्त कर मुकदमेबाजी के तनाव से मुक्त होते है। श्री महेन्द्र कुमार दवे, जज इन्चार्ज मिडिएशन के अथक प्रयासों से दोनों पक्षकारों के मध्य आपसी राजीनामें से 40 साल पुराना सिविल प्रकरण का निस्तारण किया गया।

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श्रीमती रिद्धिमा शर्मा, पूर्णकालिक सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उदयपुर ने जानकारी दी कि कोई भी पक्षकार यदि मध्यस्थता से अपने प्रकरण को निस्तारण करवाना चाहते हैं तो दोनो पक्षकार संबंधित न्यायालय में प्रकरण को मध्यस्थता केन्द्र में भेजने के लिए आवेदन कर सकते है। श्रीमती शर्मा ने यह भी बताया की मध्यस्थता से प्रकरण का निस्तारण होने पर सिविल मामलों में न्यायालय फीस वापस लौटाई जाती है तथा पक्षकार शीघ्र न्याय प्राप्त कर मुकदमेबाजी के तनाव से मुक्त होते हैं।

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