राजस्थान की 51 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीडि़त
सघन आबादी वाले, कृषि पर आधारित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत जैसे देश में एक गंभीर चिकित्सकीय समस्या लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है जिसकी वजह से वयस्कों में कम उत्पादकता, बच्चों की कमजोर वृद्धि, जन्म के समय कम वजन और जन्म के वक्त बच्चों की बढ़ती हुई मृत्युदर की समस्या जोर पकड़ रही है।
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सघन आबादी वाले, कृषि पर आधारित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत जैसे देश में एक गंभीर चिकित्सकीय समस्या लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है जिसकी वजह से वयस्कों में कम उत्पादकता, बच्चों की कमजोर वृद्धि, जन्म के समय कम वजन और जन्म के वक्त बच्चों की बढ़ती हुई मृत्युदर की समस्या जोर पकड़ रही है।
एनीमिया को ‘खून की कमी’ कहना कहानी का सिर्फ आधा हिस्सा है। खून दो हिस्सों से मिलकर बनता है। एक तरल हिस्सा जिसे प्लाज्मा कहते हैं और दूसरा सेल्यूलर हिस्सा होता है। सेल्यूलर हिस्से को लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं और प्लेट लेट्स कहा जाता है। एनीमिया एक ऐसी दशा होती है जिसमें मानव शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम हो जाती है। ये लाल रक्त कणिकाएं फेफड़े से शरीर के अन्य हिस्सों तक ऑक्सीजन का संचार करती हैं और इसलिए इनका सेहतमंद जीवनशैली के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत में एनीमिया के मामलों में 1998 से 2005 के बीच इजाफा हुआ। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के मुताबिक देश की आधे से ज्यादा आबादी रक्ताल्पता की कमी से जूझ रही है। आयरन की गंभीर कमी, स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की अधिक लागत, भोजन की खराब गुणवत्ता और गंभीर गरीबी इसके प्रमुख कारण हैं। महिलाओं में एनीमिया मातृ मृत्युदर और गर्भ के दौरान मृत्यु का कारण बन सकता है। राजस्थान में 15-49 साल की उम्र की 53.1 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीडि़त हैं।
29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों वाले देश में काफी राज्यों में फैल रहा है। राजस्थान में 6 महीने से लेकर 5 साल तक के 69.7 फीसदी बच्चों में एनीमिया की समस्या है। आश्चर्य की बात है कि ज्यादातर लोग रक्ताल्पता की स्थिति की ओर शुरूआत में ध्यान ही नहीं देते हैं। यहां तक की सबसे अधिक पाया जाने वाला एनीमिया आईडीए की भी पहचान नहीं हो पाती है। इसके लक्षणों के प्रति लापरवाही ही संभवत: इसका प्रमुख कारण है।
आमतौर पर थकान, ऊर्जा की कमी, छोटी सांस, अनियमित धडक़न, कमजोरी और चक्कर आने जैसी मामूली बीमारियों को नजर अंदाज करने की प्रवृत्ति होती है जो कुछ दिन आराम करने से ठीक हो सकती है। इन शुरूआती लक्षणों को नजर अंदाज करना अंगों को पूरी तरह या आंशिक तौर पर क्षति पहुंचने का लक्षण हो सकता है और इनसे रक्ताल्पता की गंभीर स्थिति की ओर बढऩे का भी रास्ता भी तय हो सकता है।
एनीमिया के गंभीर होने पर सीने में दर्द, गले में दर्द और दिल का दौरा भी पड़ सकता है। इसके अन्य गंभीर परिणाम पीलिया, स्प्लीन का बड़ा होना, चक्कर आना और बेहोशी भी हो सकते हैं।
आयरन सप्लिमेंट के जरिये एनीमिया का सामना करने का एक साधारण तरीका है। आयरन युक्त भोजन सप्लिमेंटेशन वितरित करने का एक आकर्षक तरीका है क्योंकि चुना गया भोजन कम खर्च में पोषक तत्वों से युक्त और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि ऐसे कई तरह के भोजन हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है, नमक एक ऐसी चीज है जिसे विभिन्न क्षेत्रों में लोग पैकेट बंद खरीदते हैं।
भोजन के मूल तत्व के तौर पर हर जगह इस्तेमाल होने की वजह से डबल फोर्टिफाइड नमक में वह क्षमता है जिसमें आयोडिन और आयरन की कमी को अरबों लोगों में कम किया जा सकता है। आयोडिन और आयरन मानसिक क्षमता, माताओं और नवजात बच्चों के जीवन और मानवीय उत्पादकता के लिए सबसे जरूरी दो पोषक तत्व हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक अगर सामुदायिक स्तर पर एनीमिया का स्तर 40 फीसदी से अधिक होता है तो इसे गंभीर समस्या माना जाना चाहिए। एनीमिया की जांच, एनीमिया का मुफ्त इलाज और पोशक भोजन की उपलब्धता इस समस्या का समाधान करने का एक मात्र तरीका है और इससे लोगों को सेहतमंद बनाए रखने में मदद मिलती है।
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