5 वें उदयपुर फिल्म फेस्टिवल (25 से 27 नवम्बर) का महाराणा कुम्भा सभागार में आयोजन
उदयपुर फिल्म सोसाइटी हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी जन संस्कृति मंच-प्रतिरोध का सिनेमा के साथ मिलकर अपना पाँचवाँ उदयपुर फिल्म फेस्टिवल करने जा रही है। इस बार के आयोजन का मुख्य विषय है - असहमतियों का उत्सव। लोकतंत्र में असहमतियों का बड़ा महत्त्व है और संस्कृति की बुनियाद ही असहमतियों के रक्षण पर टिकी है, इसी विश्वास के साथ यह विषय चुना गया है।
उदयपुर फिल्म सोसाइटी हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी जन संस्कृति मंच-प्रतिरोध का सिनेमा के साथ मिलकर अपना पाँचवाँ उदयपुर फिल्म फेस्टिवल करने जा रही है। इस बार के आयोजन का मुख्य विषय है – असहमतियों का उत्सव। लोकतंत्र में असहमतियों का बड़ा महत्त्व है और संस्कृति की बुनियाद ही असहमतियों के रक्षण पर टिकी है, इसी विश्वास के साथ यह विषय चुना गया है।
इस बार एक नज़र में – पांच फीचर फ़िल्में, चार दस्तावेजी फ़िल्में, दो शॉर्ट फ़िल्में, दो विशेष व्याख्यान, एक विशिष्ट प्रस्तुति ‘दास्तानगोई’, दो पैनल डिस्कशन हैं साथ ही कई फिल्मकारों से सीधे उनकी फिल्मों पर संवाद करना हमेशा की तरह आकर्षण है ही।
फीचर फिल्में – 1. ‘तुरुप’ – यह फिल्म किसी एक निर्देशक ने नहीं बल्कि ‘एकतारा कलेक्टिव‘ नामक समूह ने बनायी है। हाल ही में मामी फिल्म फेस्टिवल में विशेष रूप से सराही गयी इस फिल्म में भोपाल के एक चौक ‘चक्की चौराहा’ की कहानी है जहाँ शतरंज की बाजियां चलती रहती हैं। पृष्ठभूमि में बहुत कुछ चलता रहता है, शतरंज की बाजी के माध्यम से बहुत सूक्ष्म तरह से फिल्म अपना सन्देश दे जाती है। एकतारा कलेक्टिव के प्रतिनिधि संवाद के लिए होंगे।
2. ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ – बेहद चर्चित रही इस फिल्म ने बताया कि एक स्त्री की ना हर हाल में ना होती है चाहे वो स्त्री हमारे भद्र समाज की सुशील स्त्री हो या सस्ते गानों पर नाचने वाली अनारकली ऑफ़ आरा हो। यह एक स्त्री की असहमति के सम्मान का सवाल उठाने वाली फिल्म है। फिल्म के निर्देशक अविनाश दास भी होंगे।
3. ऑफ़साइड – विश्व क्लासिक में इस बार ईरानियन फ़िल्मकार जफ़र पनाही की फिल्म ‘ऑफ़साइड’ है। जफ़र पनाही ईरान की निरंकुश सत्ता द्वारा नज़रबंद करके रखे गए हैं जिसके खिलाफ़ दुनिया भर से विरोध उठ रहा है। यह फिल्म पाबंदी के बावजूद छुपकर फुटबाल मैच देखने पहंच जाने वाली लड़कियों की कहानी है।
4. ‘धनञ्जय’ – इसी साल आयी बांग्ला फिल्म ‘धनञ्जोय’ पिछले दशक में मृत्युदंड पाए धनञ्जय चटर्जी के केस को नए तथ्यों और नए साक्ष्यों की रोशनी में पुनः प्रस्तुत करती है। इस फिल्म के बाद इस केस और मृत्युदंड दोनों की पुनः समीक्षा शुरू हो गयी है।
5. ‘जाने भी दो यारों‘ – यह सदाबहार फिल्म हमारे दो महान कलाकारों निर्देशक कुंदन शाह और अभिनेता ओम पुरी को श्रद्धांजलि स्वरूप दिखाई जा रही है।
दस्तावेजी फ़िल्में – 1. कैम्पस राइजिंग – यह फिल्म भारत के सात विश्वविद्यालयों का सफ़र करते हुए हाल में उभरे छात्र असंतोष के कारणों की परख करने की कोशिश करती है। निर्देशक यूसुफ़ सईद हमारे बीच होंगे।
2. कक्कूस – यह तमिल फिल्म हाथ से मैला धोने को मजबूर सफाईकर्मियों की व्यथा कथा कहती है। ज्ञातव्य है कि हालांकि यह प्रथा अब भारत में गैर कानूनी है फिर भी लाखों लोग यह काम करने के लिए विवश हैं। यूट्यूब पर पांच लाख से ज्यादा बार देखी जा चुकी इस फिल्म ने सरकार और प्रशासन को नीतिगत सुधारों के लिए मजबूर किया। फिल्मकार दिव्या भारती हमारी मेहमान होंगी।
3. ‘जहाँ चार यार मिल जाएँ’ – प्रसिद्द निर्देशक राहुल रॉय की यह फिल्म जहांगीरपुरी की बस्ती में रहने वाले चार नौजवानों के जीवन में झांककर उनके सपनों, कुंठाओं और विचलनों की तहकीकात करती है। फिल्म का मुख्य उद्देश्य युवकों की जेंडर की समझ को समझना है। राहुल रॉय आ रहे हैं, वे ही उदघाटन समारोह के मुख्य वक्ता भी होंगे।
4. ‘अवर गौरी’ – फिल्म फेस्टिवल गौरी लंकेश की स्मृति को समर्पित है। वे पत्रकार होने के साथ साथ संस्कृतिकर्मी भी थीं। उन्हीं की यादों को समेटती यह फिल्म उनके सहकर्मी दीपू ने बनायी है।
विशेष व्याख्यान –
1. ‘फेक का फंडा’/ ‘ट्रेकिंग दी फेक’ – फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने में आज प्रतीक सिन्हा और उनकी वेबसाईट ‘ऑल्ट न्यूज़’ देश का सबसे प्रमुख स्रोत बन चुके हैं। प्रतीक सिन्हा इस विशेष ऑडियो विजुअल प्रस्तुति में फेक न्यूज़ को पहचानना और उससे सावधान रहना सिखायेंगे।
2. ‘उखड़ती साँसें, हाँफता देश’ – गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह जिन्होंने गोरखपुर त्रासदी को देश के सामने पहली बार लाया था, इस विशेष व्याख्यान में इन्सिफ़ेलाइटिस के प्रकोप और हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में वे बातें बताएँगे जो उनके दस साल के शोध का परिणाम हैं। मनोज कुमार सिंह जन संस्कृति मंच के महासचिव भी हैं। वे उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता भी करेंगे।
विशेष प्रस्तुति – ‘दास्तानगोई’
दास्तानगोई भारत में किस्सागोई की एक कभी बहुत मशहूर रही और आज विलुप्त हो चुकी कला है जिसे कुछ नए दास्तानगो फिर से लोकप्रिय बना रहे हैं। इस नए रूप में उन्होंने तिलिस्म होशरुबा, बिक्रम बैताल या अलिफ़ लैला ही नहीं बल्कि नए और सामयिक विषय भी चुने हैं। इस बार राणा प्रताप सेंगर और राजेश कुमार लेकर आ रहे हैं – ‘दास्ताने सेडिशन’
पाँचवें फिल्म फेस्टिवल की संयोजक मेघा चौधरी और रिंकू परिहार ने बताया कि हमेशा की तरह इस बार भी प्रवेश निशुल्क है. यह फेस्टिवल हमेशा ही बिना स्पोंसरशिप के जन सहयोग से किया जाता है क्योंकि हमारी समझ यह है कि जनता के असली मुद्दे उठाने वाले वैकल्पिक सिनेमा के अपने पांवों पर खड़ा होने के लिए जनता के अपने स्रोत और ऐसे मंच बहुत जरूरी हैं। प्रतिरोध का सिनेमा इसी कड़ी को जोड़ने की कोशिश है जिसे सभी अच्छे फिल्मकारों का सहयोग मिलता रहा है।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal