आचार्य शान्तिसागरजी चातुर्मास व्यवस्था समिति ने ली शपथ


आचार्य शान्तिसागरजी चातुर्मास व्यवस्था समिति ने ली शपथ

तेलीवाड़ा स्थित बीसा हुमड़ भवन में आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के 22वें वर्षा योग को सुचारू एवं भव्य रूप से सम्पन्न कराने के उद्देश्य से दिगम्बर जैन समाज द्वारा चातुर्मास व्यवस्था समिति का गठन किया गया। समिति के विभिन्न पदाधिकारियों को सांसद अर्जुन मीणा की उपस्थिति में शपथ ग्रहण करवाया गया।

 
आचार्य शान्तिसागरजी चातुर्मास व्यवस्था समिति ने ली शपथ

तेलीवाड़ा स्थित बीसा हुमड़ भवन में आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के 22वें वर्षा योग को सुचारू एवं भव्य रूप से सम्पन्न कराने के उद्देश्य से दिगम्बर जैन समाज द्वारा चातुर्मास व्यवस्था समिति का गठन किया गया। समिति के विभिन्न पदाधिकारियों को सांसद अर्जुन मीणा की उपस्थिति में शपथ ग्रहण करवाया गया।

चातुर्मास समिति के गौरवाध्यक्ष चन्दनमल छापीया ने बताया कि उक्त समिति में सभी समाजों को जोड़ते हुए पूरा प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। शपथ लेने वालों में प्रमुख रूप से अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत, कार्याध्यक्ष सेठ शांतिलाल नागदा, गौरवाध्यक्ष चन्दनलाल छापीया, स्वागताध्यक्ष जयन्तिलाल डागरिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष निर्मल मालवी, उपाध्यक्ष लक्ष्मीलाल बोहरा, महामंत्री सुमति लाल दुदावत, संयुक्त महामंत्री प्रकाश सिंघवी, कोषाध्यक्ष कल्याणमल मेहता, मुख्य संयोजक जनकराज सोनी, कार्यालय मंत्री महावीर कारवा, प्रचार- प्रसार मंत्री पारस चित्तौड़ा, वित्त समिति संयोजक जयकुमार कारवा, चौका व्यवस्था संयोजक श्रीमती मधु चित्तौड़ा, शकुन्तला लोलावत, लीला कुर्डिया, श्रीमती अंजना गंगवाल, आशा सोनी को शपथ दिलाई गई।

मुख्य संरक्षक सेठ केशुलाल नागदा, संरक्षक नाथूलाल खलूडिय़ा, सुरेश पदमावत, कार्यालय मंत्री महावीर पटवा शामिल थे। मुख्य संयोजक जनकराज सोनी ने बताया कि उक्त शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही चातुर्मास कलश स्थापना भी की गई।

सन्त वाणी सुपात्र के पास ही टिकती है: इस अवसर पर आयोजित धर्मसभा में आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज ने कहा कि संत की वाणी शेरनी की दूध की तरह होती है, जो सिर्फ सोने के पात्र में ही ठहरता है। इसी प्रकार सन्त की वाणी सुपात्र के पास ही ठहरती है। बिना डोर की पतंग आकाश में उड़ती है और समाप्त हो जाती है, लेकिन पतंग की डोर अगर उड़ाने वाले के हाथ में हो तो वह कितनी भी इधर- उधर हो जाए सुरक्षित आ जाती है। इसी प्रकार भक्त की डोर गुरू के हाथ में हो तो भक्त को कोई हानि नहीं हो सकती है। इन्सान को दो स्थानों पर ही शांति मिलती है। या तो मरने के बाद श्मशान में या जीवित अवस्था में सन्त के सानिध्य में।

चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि चातुर्मास के दौरान आर्चाश्री के भक्तों का आना लगातार जारी है।

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