एड्स – जागरूकता फैलाईएगी 45 महिलाएं
जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के जनशिक्षण विस्तार कार्यक्रम निदेशालय के टीडी स्थित आदिवासी भारती सामुदायिक केन्द्र के आस पास की 15 गांवोें की 45 आदिवासी महिलाओं ने एड्स के प्रति जागरूकता लाने का संकल्प लिया।
जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के जनशिक्षण विस्तार कार्यक्रम निदेशालय के टीडी स्थित आदिवासी भारती सामुदायिक केन्द्र के आस पास की 15 गांवोें की 45 आदिवासी महिलाओं ने एड्स के प्रति जागरूकता लाने का संकल्प लिया।
विश्व एड्स दिवस के अवसर पर हुए कार्यक्रम के दौरान इन महिलाअेां ने इस रोग के प्रति हर आम को जागरूक करने का संकल्प किया इस संकल्प की शुरूआत ये महिलाएं अपने घर से ही करेगी। दल की मुखिया मीरा मीणा, जयंति लौहार कहती है कि घर मेे जैसे संस्कार दिए जायेंगे उसकी पालना बच्चा वैसी ही करेगा।
इससे पूर्व इन महिलाअेां ने ठोल नगाडों के साथ जागरूकता रेली निकाली तथा विद्यापीठ के टीडी केन्द्र में हुई कार्यशाला मेें हिस्सा लिया। कार्यशाला के पहले दिन मुख्य अतिथि डॉ. एस.के. जैन -जनरल मैनेजर बिडला सिमेंट थे अध्यक्षता डॉ. मंजु मांडोत ने की तथा मुख्य वक्ता डॉ. रणवीर सिंह नेनावटी ने रोग के प्रति गहन जानकारी उपलब्ध कराई।
विशिष्ठ अतिथि के.एस. यादव क्षेत्रीय निदेशक केन्द्रीय श्रमिक बोर्ड राजस्थान थे। समारेाह का संचालन पीरू कांत मीणा ने किया जबकि धन्यवाद डॉ. संजीव राजपुरोहित ने दिया। इस अवसर पर दिनेश तिवारी, चितरंजन नागदा सहित कार्यकर्ता एवं आसपास की गांवों की महिला उपस्थित थी।
ये करेगी महिलाए:- निदेशक डॉ. मंजू मांडोत ने बताया कि जागरूकता के लिए ये महिलाएं अपने घर के बच्चों को रोग के सम्बंध में जानकारी देगी रोग के कारण निवारण, सावधानी और रोगी के प्रति सहानुभूति रखने की बात सिखाई जायेगी। इसके अतिरिक्त गांव में लगने वाले मेले व उत्सव के दौरान भी इस विषय पर जानरकारी दी जायेगी।
रोगी के प्रति सहानुभूति जरूरी:- डॉ. एस.के. जैन -जनरल मैनेजर बिडला सिमेंट ने कहा कि एड्स के रोग के प्रति सावधानी जितनी जरूरी है उतनी ही जरूरत जागरूकता की भी है। एड्स रोगी के प्रति सहानुभूति रखना बेहद जरूरी है। उससे रोग यह किस कारण से हुआ वह अहम है। लोगों को एड्स रोगियों के प्रति सहानुभूति रखने का आव्हान किया।
धीमी व खतरनाक बिमारी:- डॉ. नेनावटी ने कहा कि एड्स एक धीमी एवं जानलेवा बिमारी है। इसका असर श्वेत रक्त कोशिकाओं में संक्रमण के 10 वर्षो बाद सामने आता है। तब तक यह रोग पूरे शरीर में फैल चुका होता है। वैज्ञानिक स्तर पर इसके प्रति सावधानी रखना आवश्यक है साथ ही लोगों को इस बिमारी के प्रति जागरूक करना भी आवश्यक हो चुका है।
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