अपनी यादों का किस्सा
क्या आपने कभी शहर उदयपुर में बतौर एक स्टुडेंट स्टडी की है या इस सीटी ऑफ़ फाउंटेन एंड माउंटेन में सर्विस , जॉब या बिजनेस वगैरह किया होगा ! है न? आप में से अधिकांश ने यहां रहकर पॉसिबली बहुत कुछ किया होगा, यहीं से काफ़ी कुछ सीखा भी होगा ! वो चाहे किसी भी सबजेक्ट में हो या कोई सी स्किल में हो
क्या आपने कभी शहर उदयपुर में बतौर एक स्टुडेंट स्टडी की है या इस सीटी ऑफ़ फाउंटेन एंड माउंटेन में सर्विस , जॉब या बिजनेस वगैरह किया होगा ! है न? आप में से अधिकांश ने यहां रहकर पॉसिबली बहुत कुछ किया होगा, यहीं से काफ़ी कुछ सीखा भी होगा ! वो चाहे किसी भी सबजेक्ट में हो या कोई सी स्किल में हो !
प्लीज थोड़ा सा दिमाग़ पर ज़ोर देकर याद कीजिए न सच में आपने क्या- क्या सीखा था यहां से ? बहुत से छोटे -बड़े ऐसे इंसीडेंट्स हुए होंगे आपकी इस दौड़ भाग भरी ज़िंदगी में जिन्होंने आपको बहुत कुछ सीखने का मौका दिया होगा। आगे थोड़ा ओर अच्छे से एक्सप्लेन करूं तो हमें इस शहर से, यहां के बहुत अच्छे लोगों से यहीं पर किसी न किसी जाने -अनजाने पर्सन से या यहां की किसी पंसदीदा जगह से और यहां के कल्चर से बहुत बार बड़ी इंस्पीरेशन्स मिली होगी जिसकी बदौलत हमने।अपने जीने का तरीक़ा या कहूं अंदाज़ ही बदल दिया। कभी कभार मिलने वाले चांसेज को आपने दिलो जान से सचमुच में अपना ही बना लेने का मानस बना लिया होगा।
आपने ये सब कुछ इसीलिए किया होगा कि आपकी ज़िदगी रौनकता से भर आये … ख़ुशियों की अनंत – अविरल ठण्डी -सी बहारों से ताउम्र लिपट जाये। बेशक कुछ चीज़े , कुछ जानी – अनजानी मुलाकातें ….कुछ भूले-बिसरे लोग ,कुछ चौबारे …कुछ गलियां …..पिछवाइयों से सजी -बुनी दीवारें …….अब तो आपको याद आ रही होगी न ! है न ?
जिनको आप अब भी अच्छे से जानते है । हो सकता है अब भी आप थोड़ा- थोड़ा जानते हो उन सबको आजकल में कभी हलो कहा है ! शहर में रहने के बावजूद भी आप तो बहुत दिनों से इस शहर को निहारना भूल गये है तो आजकल में तय कर लीजिए बिन बताये , बिना कुछ प्लान किये अपने घर से तीन – चार घंटों के लिए, निकल पड़िये अपने यादों में बसे ! ज़िंदगी की अविस्मरणीय यादों का अटूट हिस्सा बने हुए अपने इस शहर को एक बार दुबारा जी भर के निहारने के लिये।
आप में से अधिकतर खुशमिज़ाज़ ने तो यही इसी शहर में अपना आशियाना बना लिया होगा ! तो फ़िर देर किस बात की तो अपनी -अपनी बाईक्स ,स्कुटीज, कार से या ऑटो और पैदल निकलना तो सबसे बैस्ट है । आप खुद ही या अपने कुछ बेमिसाल दोस्तों के संग चल आइये न ! इस शहर के गार्डन्स में ,यहां की झीलों के किनारें या पहाड़ियों के तलहटी में। इस छलकती झीलों वाले , पहाड़ियों से आच्छादित , नेचर की हरी -भरी वादियों से आलिंगन किये हुए इस शांतिप्रिय शहर की बाहों में जिसे दूनिया ‘लेक सीटी ‘ के नाम से पुकारना पसंद करती है। मगर हम तो अक्सर इसे पुराने नाम से ही पुकारते है – ” उदयपुर“ क्यों जानते है आप ? शायद नहीं !
चलो ज़्यादा देर न करते हुए नाम उदयपुर की कुछ बात ही बता देता हूं।
तो सुनो ! ” जब हम इस शहर से बाहर होते है न उस वख़्त अगर हम अपने इस उदयपुर को याद करते है तो हमारा रोम – रोम में इस शहर की खूबसूरती में खिल उठता है। आंखे तो कई दफ़ा छलकने का उतारू हो जाती है। हम में से बहुत जनों की यादें बहुत सुंदर होगी , सचमुच बहुत ही सुंदर होगी जिन्हें हम दुर्लभ कह सकते हैं। हम में से ही कुछ फ्रेंड्स की यादें थोड़ी बहुत या बहुत ज़्यादा कड़वी भी हो सकती है। पर कोई बात नहीं मेरे दोस्त …आप भी दिल से शुक्रिया अदा कीजिए अपने इस शहर का , यहां के बहुत अच्छे सिटीजंस का ,यहां पर मिलने वाले प्रदेश- देश – विदेश के दोस्तों का। उम्रदराज़ ज़िंदादिल शक्सियतों का शुक्रुजार होना चाहिए जिनके गाइडेंस से हमें ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों में अपने आप को संभालने का अवसर मिला है।
यादों की यात्रा अनवरत रहेगी …
reader contribution: rakshit parmar
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