साधु को भी सर्प समान बना देता है क्रोध
आत्मरति विजय महाराज ने कहा कि क्रोध साधु को भी सर्प समान व मन को श्मशान बना देता है। उन्होनें क्रोध न करने का संकल्प लेने के बाद किस प्रकार संयम व क्षमा से घर व मन को स्वर्ग बनाने के बारें में विस्तार से उदाहरण द्वारा मार्गदर्शन दिया।
आत्मरति विजय महाराज ने कहा कि क्रोध साधु को भी सर्प समान व मन को श्मशान बना देता है। उन्होनें क्रोध न करने का संकल्प लेने के बाद किस प्रकार संयम व क्षमा से घर व मन को स्वर्ग बनाने के बारें में विस्तार से उदाहरण द्वारा मार्गदर्शन दिया।
वे आज श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ जिनालय द्वारा हिरण मगरी से. 4 स्थित श्री शांतिनाथ आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा को क्रोध विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि प्रशस्त व अप्रशस्त क्रोध के बारें में समझाते हुए बताया कि इतना अवश्य याद रखें कि क्रोध साधु को सप समान तथा क्षमा व्यक्ति को भगवान बना देती है।
इस अवसर पर हितरति विजय म.सा. ने जनसेवा व जिनसेवा में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि परमात्मा की कृपया से संस्कारी मां मिलती है। जो मां जन्म देती है, पोषण करती है, धर्म संस्कार-विनय-विवेक देती है। वह मां पूजनीय अवश्य है लेकिन परमात्मा से महान नहीं होती है। मापं की सेवा भक्ति करें, आज्ञा मानें। मां व परमात्मा की कल्पना करते समय विवेक रखें।
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