‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन


‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन

नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिककेन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पाँचवा राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव ‘अल्फ़ाज़ - 2017’ के तीसरे और अंतिम दिन दिनांक - 1 दिसम्बर 2017, शुक्रवार को उदयपुर की युवा नाट्य संस्था ‘नाट्यांश’ के कलाकारों ने नाटक ‘लश्कर-चौक’

 
‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन
  • महोत्सव के समापन दिवस पर उदयपुर की युवा नाट्य संस्था ‘नाट्यांश’ की प्रस्तुती
  • नाटक ‘लश्कर-चौक’ में दिखाया दंगो से प्रभावित औरतो का मर्म

नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिककेन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पाँचवा राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव ‘अल्फ़ाज़ – 2017’ के तीसरे और अंतिम दिन दिनांक – 1 दिसम्बर 2017, शुक्रवार को उदयपुर की युवा नाट्य संस्था ‘नाट्यांश’ के कलाकारों ने नाटक ‘लश्कर-चौक’ का मंचन किया गया।

कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिज़वान मन्सुरी ने बताया कि महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन उदयपुर के यवा रंगकर्मी अमित श्रीमाली द्वारा निर्देशित नाटक और डॉ0 कुसुम कुमार द्वारा लिखित नाटक ’लश्कर चौक’ का प्रभावी मंचनकिया।

यह नाटक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की एक कहानी ‘‘खुदाराम’’ पर आधारित है। कहानी का नाट्य रूपान्तरण डॉ. कुसुम कुमार जी के द्वारा किया गया है।  नाटक की कहानी धीमापुर नाम के एक काल्पनिक कस्बे की है।  नाटक का घटनाक्रम आज़ादी मिलने के कुछ वर्षाें पहले से शुरू होकर स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षाें बाद तक चलता है।  तब से लेकर अब तक इतिहास खुद को बार-बार दोहराता ही आया है, इसलिए नाटक की पटकथा लगभग 70 साल पुरानी होकर भी जैसे आज-कल की ही बात लगती है।

‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन

यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जिनके व्यक्तिगत जीवन में घटित एक घटना को सामाजिक और राजनैतिक मुद्दा बना कर उन्हें अपनी ही जाति, अपने ही धर्म से निष्कासित कर दिया जाता है। इस निष्कासन के बाद उस परिवार के हालात काफ़ी दयनीय हो जाती हैं और मजबूरी वश उन्हें दूसरा धर्म स्वीकार करना पड़ता है।

नए समुदाय के लोग ने अपनी बेटी का ब्याह इस परिवार के इकलौते लड़के के साथ कर इन्हें पूरी तरह से अपना लेते है, लेकिन लगभग 9-10 सालों बाद भी यह परिवार अपनाये गये धर्म के प्रति सहज नहीं हो पाता हैं।  आज भी इन के दिल में कही-ना-कहीं अपने पुश्तैनी धर्म के प्रति लगाव और प्रेम है।  इस दोहरी कशमकश से बचने के लिए वे एक बार फिर से अपना धर्म बदल कर पुश्तैनी धर्म में लौटने का फ़ैसला करते हैं।  परिवार के एक बार फिर से धर्म बदलने के इस व्यक्तिगत फ़ैसले को दोनों ही धर्म के रहनुमा काफ़ी गंभीरता से लेते हैं और मरने-मारने को आतुर हो जाते हैं।

यहाँ एक नया सवाल जन्म लेता है कि परिवार की नई ब्याहता को किस धर्म में रहना है? क्या उसे भी अपना धर्म बदलना होगा? क्या वो अपने पुश्तैनी धर्म के साथ रह पाएगी?  इन सभी सवालों के ज़वाब खोजने और अपने-अपने धर्म की रक्षा के लिए कस्बे का हर मर्द हाथों में हथियार लिए ‘‘लश्कर चौक’’ की तरफ़ बढ़ने लगतेहैं।

धर्मन्धता की इस लड़ाई में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये दोनों समुदाय की औरतें भी ‘‘लश्कर चौक’’ में आ पहुँचती है।

‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन

नाटक का कथानक वास्तविक जीवन के कई उतार-चढ़ावों से गुज़रते हुए मन में धर्मान्धता, अन्धविश्वास, कौमी एकता, भाईचारे और नारी के अधिकारों से जुड़ें कई सवाल छोड़ जाताहै।  जिनका जवाब तो हम सभी जानते हैं पर सहज तौर पर स्वीकार नहीं कर पाते।

कलाकारों में रामदास उपाध्याय की भुमिका में अब्दुल मुबीन खान, लीला उपाध्याय की भुमिका में पलक कायथ, श्याम उपाध्याय की भुमिका में राघव गुर्जर गौड़, लठ्ठमार की भुमिका में अशफा़क़ नुर खान, ठकुराईन की भुमिका में पुजा कुमारी, सरपंच/मौलवी धर्मेंद्र टिलावात, पारा की भुमिका में श्वेता बावा, पुनो चाची की भुमिका में रेखा सिसोदिया और भवानी ताई की भुमिका में पूनम ने अपने अभिनय से दर्शको को अभिभूत किया। आयुषी खंडेलवाल, यशोदा सिसोदिया, अगस्त्य हार्दिक नागदा, जतिन भरवानी, मोहन शिवतारे, इंदर सिंह सिसोदिया, मुकुल औदिच्य, वल्लभ शर्मा, मो0 हफिज़, भरत और धर्मवीर ने नाटक में विभिन्न किरदार निभाकर नाटक में जान डाल दी।

‘हम क्या तुम्हें रोने के लिये बनी है?’ – अल्फ़ाज़ 2017’ का समापन

नाटक की प्रस्तुतकर्ता अरुण जैन ने बताया कि मंच पार्श्व में नाटक का संगीत अब्दुल मुबिन खान, मोहन शिवतारे और भुवन द्वारा दिया गया।प्रकाश संयोजन और संचालन जयपुर से आये कलाकार शहजोर अली द्वारा किया गया।  मंच प्रबन्धन मेंअ शफ़ाक़नुर ख़ान, रूपसज्जा में श्वेता बावा, वस्त्रविन्यास में पलक कायथ और योगिता सिसोदिया, प्रोपर्टी संयोजन में धर्मेन्द्र टिलावत का रहा।  नाटक का निर्देशन और सहनिर्देशन शहर के युवा रंगकर्मी अमित श्रीमाली और अब्दुल मुबिन खान का रहा।

नाटक की प्रस्तुती के पश्चात कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ रंगकर्मी श्री विलास जानवे एवं पूर्व आर ऐ एस लियाकत हुसैन मंसूरी के द्वारा कलाकारों को प्रशस्तिप त्र और नाटक के निर्देशक को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।

रंग-संवाद नाटक समाप्ती के बाद रखे गये रंग-संवाद में दर्शको ने नाटक की काफी सराहना करी।  साथ ही इस बात पर भी चर्चा की गई कि समय, काल और परिवेश परिवर्तन के बाद भी वर्तमान में महिलाओं की स्थिती और हालात वैसे ही है, जैसे पहले थे।  नाटक के कई दृश्यों जिसमें हिन्दु समुदाय के लोगो का किरदार करने वाले कलाकार ही जब मुस्लिम समुदाय के किरदारो में ढ़ल कर वार्तालाप करने लगते है। यह दृश्य दर्शको बेहद पसंद आया।  इसी पर एक सवाल आया कि – ‘हिन्दु और मुस्लिम समुदाय के किरदारो को अलग अलग कलाकारों ने क्यो नही निभाया?’  जवाब में नाटक के निर्देशक अमित श्रीमाली ने कहा कि- ‘दोनो ही समुदाय में भीड़ एक सी है।दोनो ही समुदाय की समस्या एक सी है तो चेहरे अलग क्यो हो?’

अन्त में नाट्यांश की ओर से अरूण जैन ने कलाकारों को प्रोत्साहित करते हुये दर्शको को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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