अष्टान्हिाका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान प्रारम्भ
भाव- भक्ति और साधना का अष्टान्हिका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान साल में तीन बार आता है। जिस तरह से बीमार होने पर डॉक्टर मरीज को दिन में तीन बार दवा लेने के लिए दवाईयां देता है, उसी तरह विभिन्न आधि- व्याधियों से पीडि़त मनुष्यों के लिए साल में तीन बार दवा रूपी यह भक्ति-भाव और साधना का अष्टान्हिका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान साल में तीन बार मनाया जाता है।
भाव- भक्ति और साधना का अष्टान्हिका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान साल में तीन बार आता है। जिस तरह से बीमार होने पर डॉक्टर मरीज को दिन में तीन बार दवा लेने के लिए दवाईयां देता है, उसी तरह विभिन्न आधि- व्याधियों से पीडि़त मनुष्यों के लिए साल में तीन बार दवा रूपी यह भक्ति-भाव और साधना का अष्टान्हिका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान साल में तीन बार मनाया जाता है।
मनुष्य अनादिकाल से ही कई बीमारियों से ग्रसित रहता आया है। भक्ति ही ऐसा मार्ग है जो मनुष्य को मुक्ति दिला सकता है। उक्त विचार विचार मीठे प्रवचनकार एवं णमोकार वाले बाबा आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने बीसा हुमड़ भवन में शनिवार से प्रारम्भ हुए अष्टान्हिका महापर्व सिद्धचक्र महामण्डल विधान के प्रथम दिन व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि भक्ति ही ऐसा मार्ग है जिससे हम अशुभ से बच कर शुद्ध की ओर जा सकते हैं, और जो शुद्ध होता है वही सिद्ध बनता है। अशुभ तो मनुष्य को गिद्द बना देता है। इसलिए हमें मनुष्य जीवन में सिद्ध बनना है गिद्ध नहीं।
प्रचार प्रसार मंत्री पारस चित्तौड़ा ने बताया कि अष्टान्हिका महापर्व का प्रारम्भ ध्वजारोहण, घट यात्रा के साथ प्रारम्भ हुआ, इन सभी मांगलिक कार्यों का पुण्यलाभ का सौभाग्य महावीर मावावत को प्राप्त हुआ। प्रथम दिन ही सैंकड़ों पुण्यात्माओं- श्रावकों ने इस भक्ति के महापर्व का लाभ लिया।
कार्यवाहक अध्यक्ष सेठ शान्तिलाल नागदा ने बताया कि महामण्डल विधान में सौधर्म इन्द्र का लाभ शान्तिलाल जोलावत परिवार ने प्राप्त किया। धर्मसभा में दीप प्रज्वलन, पाद प्रक्षालन, गुरू पूजा, शास्त्र भेंट इत्यादि मांगलिक कार्यों का पुण्यलाभ भगवतीलाल मीण्डा, सेठ केसुलाल गदावत परिवार ने लिया।
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