श्रोता की पात्रता और प्रवचन की विषय वस्तु


श्रोता की पात्रता और प्रवचन की विषय वस्तु

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि सद्गुरूओं के पास कोरी पट्टी बनकर जाए तथा ग्रही, हठाग्रही, मताग्रही, कदाग्रही, वस्तु-तत्व को नहीं समझ सकता। आत्मतत्व-अनात्मतत्व को समझने की तीव्र जिज्ञासा हो, जन्म -मरण के दुःख से दुखी हो गया हो वही बोधि पाने का पात्र है।

 

प्रज्ञामहर्षी उदयमुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि सद्गुरूओं के पास कोरी पट्टी बनकर जाए तथा ग्रही, हठाग्रही, मताग्रही, कदाग्रही, वस्तु-तत्व को नहीं समझ सकता। आत्मतत्व-अनात्मतत्व को समझने की तीव्र जिज्ञासा हो, जन्म -मरण के दुःख से दुखी हो गया हो वही बोधि पाने का पात्र है।

तदर्थकषाओं को कुछ उपशान्त करें, विषयवासना मंद हो, सरलता-ऋजुता-नम्रता हो, समझने के लिए मुमुक्षता हो। आगमों में प्रवचन की विषयवस्तु भी निर्धारित कर दी गई। शांति, विरति, उपशम, निर्वाण, शौचत्या, निर्लोभता, मार्दव, आर्जव, लाघव और अहिंसा का प्रतिदान, बिना किसी फलाकांक्षा के, लोक पर अनुकंपाभाव से प्रतिदान करें। वक्ता पुण्य की प्रेरणा नहीं कर सकता, लक्ष्य नहीं कर सकता।

परिवार-समाज-नीति-राजनीति सुधार करना अध्यात्मशास्त्री का विषय नहीं है। वह मात्र आत्म-सुधार या शुद्धि के ही उपाय बता सकता है, उसमें सभी स्वतः सुधर जाते है। संयमी ने संवर-निर्जरा-मोक्ष हेतु संयम लिया है, वह वही करेगा-करवाएगा। अन्यथा वह भी भटक जाएगा और भक्तों को भी भटका देगा। दोनों चतुर्गति में भटकते रहेंगे। सावधान रहे।

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