सांस्कृतिक व साहित्यिक प्रतिबद्धता के प्रतीक हैं पुरस्कार और सम्मान – उमेश कुमार सिहं
राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के वार्षिक पुरस्कार एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए साहित्य परिषद मध्यप्रदेश के निदेशक उमेश कुमार सिंह ने कहा कि हमें साहित्यिक पुरस्कारों एवं सम्मानों को हमारी सांस्कृतिक, साहित्यिक प्रतिबद्धता के प्रतीक के तौर पर ही स्वीकार करना चाहिए। उन्होने देश तथा काल की अवधारणाओं को भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखने की प्रवृत्ति पर बल देते हुए कहा कि जहां तक काल की संकल्पना का सवाल है तो औपनिवेशिक मानसिकता हमें पीछे मुड़कर देखने से रोकती है जबकि वास्तविकता यह है कि किसी भी देश का इतिहास उस देश तथा समाज की आंखें होता है। इसलिए हमारे यहां काल, स्थान तथा जीवन मूल्य हमारी संस्कृति जरिए हमारे संकल्पों में विद्यमान रहते हैं। हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण काल को स्मरण करना है आवश्यक है उतना ही देश की अवधारणा को ध्यान में रखना भी। राष्ट्र को हमें राष्ट्र के तौर पर ही समझना चाहिए क्यों कि राष्ट्र 'नेशन' का पर्याय नहीं है। वह तो हद से हद राज्य के तौर पर ही स्वीकार्य है।
राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के वार्षिक पुरस्कार एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए साहित्य परिषद मध्यप्रदेश के निदेशक उमेश कुमार सिंह ने कहा कि हमें साहित्यिक पुरस्कारों एवं सम्मानों को हमारी सांस्कृतिक, साहित्यिक प्रतिबद्धता के प्रतीक के तौर पर ही स्वीकार करना चाहिए। उन्होने देश तथा काल की अवधारणाओं को भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखने की प्रवृत्ति पर बल देते हुए कहा कि जहां तक काल की संकल्पना का सवाल है तो औपनिवेशिक मानसिकता हमें पीछे मुड़कर देखने से रोकती है जबकि वास्तविकता यह है कि किसी भी देश का इतिहास उस देश तथा समाज की आंखें होता है। इसलिए हमारे यहां काल, स्थान तथा जीवन मूल्य हमारी संस्कृति जरिए हमारे संकल्पों में विद्यमान रहते हैं। हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण काल को स्मरण करना है आवश्यक है उतना ही देश की अवधारणा को ध्यान में रखना भी। राष्ट्र को हमें राष्ट्र के तौर पर ही समझना चाहिए क्यों कि राष्ट्र ‘नेशन’ का पर्याय नहीं है। वह तो हद से हद राज्य के तौर पर ही स्वीकार्य है।
विशिष्ट अतिथि के तौर पर बोलते हुए प्रख्यात आलोचक एवं भाषाविद् डॉ कृष्ण कुमार शर्मा ने कहा कि शब्द साधकों को सम्मान करके कोई भी संस्था स्वयं ही सम्मानित होती है। इसलिए प्रत्येक समाज को अपने संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों एवं सर्जकों का यथोचित सम्मान करके अपनी सार्थकता सिद्ध करनी चाहिए और यह काम करके राजस्थान साहित्य अकादमी ने अपने विशिष्ट कर्त्तव्य का पालन किया है। स्वागत वक्तव्य देते हुए अकादमी अध्यक्ष इंदुशेखर तत्पुरुष ने भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में कालगणना विषयक अनेक भ्रांतियों का निवारण करते हुए मौजूदा समाज में प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक शोषण की ओर संकेत करते हुए सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होने सम्मानित एवं पुरस्कृत रचनाकारों का स्वागत करते हुए साहित्य अकादमी की ओर से रचनाकारों के हित में तमाम संभव प्रयत्न भविष्य में भी करते रहने का विश्वास प्रकट किया। कार्यक्रम के अंत में साहित्य अकादमी सचिव डॉ विनीत गोधल ने सभी साहित्यकारों एवं अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
ये हुए सम्मानित एवं पुरस्कृत
अकादमी के पं. जनार्दनराय नागर सम्मान से डॉ. मथुरेशनन्दन कुलश्रेष्ठ, जयपुर, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान से सर्वश्री डॉ. देव कोठारी, उदयपुर, डॉ. भगवतीलाल व्यास, उदयपुर, पं. नरेन्द्र मिश्र, चित्तौड़गढ़,तथा श्री राम जैसवाल, अजमेर अलंकृत हुए। इस अवसर पर अमृत सम्मान से सर्वश्री दयानन्द भार्गव,जयपुर, लक्ष्मीनारायण चातक, जयपुर, भूपेंद्र तनिक, बांसवाडा, देवीप्रसाद गुप्त, बीकानेर, माधव दरक, कुंभलगढ़, तनसुखराम शर्मा श्रीगंगानगर, नरपत सिंह सांखला, बीकानेर, बजरंगलाल विकल, बूंन्दी तथा श्रीमती संतोष सांघी, जयपुर सम्मानित हुए।
अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों में श्रीमती दीप्ति कुलश्रेष्ठ, जोधपुर को मीरा पुरस्कार, श्रीमती पद्मजा शर्मा जोधपुर को सुधीन्द्र, श्री रमेश खत्री, जयपुर को नाटक विधा का देवीलाल सामर, श्री लहरीराम मीणा को देवराज उपाध्याय, श्री हरदर्शन सहगल, बीकानेर को कन्हैयालाल सहल, श्री गोविन्द भारद्वाज को शम्भुदयाल सक्सेना एवं श्री देशवर्धन सिंह, अजमेर को सुमनेश जोशी पुरस्कार अर्पित किये गए। महाविद्यालय एवं विद्यालय स्तरीय पुरस्कारों में डॉ. सुधा गुप्ता पुरस्कार सुश्री जाह्नवी केवलिया, बीकानेर, चन्द्रदेव शर्मा (कविता विधा) पुरस्कार श्री रत्नेश दाधीच, उदयपुर, (कहानी विधा) में सुश्री विभा पारीक, बीकानेर एवं परदेशी पुरस्कार (कहानी विधा) में कु. श्रेया सिंह धाभाई, उदयपुर को पुरस्कृत किया गया।
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