देशभर के आयुर्वेद छात्र एवं शिक्षक उदयपुर आये
विश्व को आयुर्वेद एवं योग भारतीयों की देन है, हमें इन विधाओं को वैश्विक स्तर पर लाने के लिये अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देना होगा, यह विचार सांसद श्री अर्जुन लाल मीणा ने मदन मोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के सुश्रुत सभागार में अपने उद्बोधन में व्यक्त किये।
विश्व को आयुर्वेद एवं योग भारतीयों की देन है, हमें इन विधाओं को वैश्विक स्तर पर लाने के लिये अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देना होगा, यह विचार सांसद श्री अर्जुन लाल मीणा ने मदन मोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के सुश्रुत सभागार में अपने उद्बोधन में व्यक्त किये।
सांसद श्री मीणा आज नेशनल सेमीनार के शुभारंभ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे, इस अवसर पर सांसद महोदय ने कहा कि आयुर्वेद कॉलेज में जनजाति छात्रों के लिये नर्सिंग प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पुनः प्रारंभ कराया जायेगा।
नेशनल सेमीनार शुंभारंभ सत्र की अध्यक्षता करते हुये आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राधेश्याम शर्मा ने उपस्थित शोध अध्येताओं को बताया कि आयुर्वेद के क्षेत्र द्वारा सिद्धान्तों के आधार पर अन्तः स्रावी ग्रन्थियों के विकारों में लक्षण अनुसार चिकित्सा करनी चाहिये, इस अवसर पर कुलपति महोदय ने चरक संहिता व सुश्रुत संहिता में वर्णित निदान एवं चिकित्सा की विशिष्ठ विधियों से अवगत कराया।
उन्होंने बताया कि जीवन शेैली परिवर्तन से होने वाली व्याधियों में रसायन एवं बल्य औषधियों का प्रयोग रोग एवं रोगी की अवस्थानुसार करना चाहिये।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बनवारी लाल गौड़ ने इस अवसर पर शरीर में स्थित द्रव्य एवं आयुर्वेदीय अग्नि सम्बन्धी सूत्र एवं सिद्धान्तों पर अपने विचार रखें।
भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद् के पूर्व अध्यक्ष वैद्य रघुनन्दन शर्मा ने बताया कि आयुर्वेदज्ञों के सामने आज के युग में अन्तः स्रावी ग्रन्थियों के विकारों की चिकित्सा एक महत्वपूर्ण चुनोति है।
आयुर्वेद के अनुसंधानकर्ताओं को इन बीमारियों के उपचार के प्रति गंभीर प्रयास करने के लिये आगे आना चाहिये।
पेसिफिक यूनिवर्सिटि के कुलपति प्रो. बी.पी. शर्मा ने इस अवसर पर बताया कि वनस्पतियों के संरक्षण के लिये सभी को प्रयास करना होगा, अन्यथा आने वाले समय में चिकित्सा के लिये अच्छी वनस्पतियॉ उपलब्ध नहीं हो सकेंगी। प्रो. वी. पी शर्मा ने कहा कि वनस्पतियों में भी उनके अन्तः स्राव पाये जाते है जो मानव शरीर के लिये उपयोगी है।
प्रारंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य एवं सेमीनार संयोजक प्रो. जी.एस. इन्दौरिया ने सभी की स्वागत किया एवं उद्बोधन देते हुए बताया कि आयुर्वेद संिहताओं में आठ निंदित पुरुषों का वर्णन अन्तः स्रावी विकृतियों के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिये, सेमीनार की वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष अनुसार प्रो. महेश दीक्षित ने सेमीनार सम्बन्धी जानकारी देते हुए आभार व्यक्त किया।
प्रथम वैज्ञानिक सत्र में आर.एन.टी. मेडि़कल कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डी़.सी. शर्मा ने थाइराईड एवं पिट्यूटरी से होने वाली बीमारियों के लक्षण एवं चिकित्सा की जानकारी दी इसी सत्र में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के विकृति विज्ञान विभगाध्यक्ष डॉ. पवन गोदतवार ने पर्यावरण एवं जीवन को प्रभावित करने वाले कारक, प्लास्टिक व पेस्टी साइड के कुप्रभावों के कारण एवं निवारण पर उद्बोधन दिया प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. बी.एल. गौड़ ने की ।
द्वितीय सत्र में प्रो. रामकिशोर जोशी काय चिकित्सा विभाग राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान एवं नडि़याद के प्रो. एस.पी. तिवारी ने व्याख्यान दिया। जयपुर, जोधपुर व उदयपुर के साथ देश के विभिन्न प्रान्तो ंसे आये स्नातकोत्तर अध्येता एवं शिक्षको ने 6 वैज्ञानिक सत्रों में कुल 63 शोधपत्रों का वाचन किया।
सांयकाल सांस्कृतिक संध्या का आयेाजन किया गया जिसमें महाविद्यालय के छात्र/छात्राओं एवं बाहर से आये हुए प्रतिनिधियों ने अपनी प्रस्तुती दी एवं वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 के क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक पुरस्कारों का वितरण प्रो. राधेंश्याम जी शर्मा राष्ट्रीय आयुर्वेद निदेशक प्रो. महेन्द्र जी मीना एवं वैद्य रघुनन्दन शर्मा पूर्व अध्यक्ष सी.सी.आई.एम. के द्वारा किये गये। छात्र संध निर्देशक डॉ. रेखराज मीना एवं छात्र संघ अध्यक्ष डॉ. हिमांशु जैन ने आभार व्यक्त किया।
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