मीता के ख्याल में बरसे बदरवा, कत्थक में तराने से ‘‘मल्हार’’ सम्पन्न
यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित शास्त्रीय संगीत और नृत्य संध्या ‘‘मल्हार’’ के दूसरे दिन शनिवार शाम दिल्ली की ख्यातनाम गायिका डाॅ. मीता पंडित खयाल व ठुमरी में जाहं इदरवा बरस पड़े वहीं दिल्ली की ही सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना गौरी दिवाकर व उनकी सखियों ने कत्थक में अपने नर्तन से समां सा बांध दिया।
katthack
यहां हवाला गांव स्थित शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित शास्त्रीय संगीत और नृत्य संध्या ‘‘मल्हार’’ के दूसरे दिन शनिवार शाम दिल्ली की ख्यातनाम गायिका डाॅ. मीता पंडित खयाल व ठुमरी में जाहं इदरवा बरस पड़े वहीं दिल्ली की ही सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना गौरी दिवाकर व उनकी सखियों ने कत्थक में अपने नर्तन से समां सा बांध दिया।
शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित दो दिवसीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य समारोह ‘‘मल्हार’’ के दूसरे दिन एक ओर जहां काले मेघ झीलों की नगरी पर मेहरबान रहे वहीं दिल्ली की जानी मानी गायिका डाॅ. मीता पंडित ने अपने सधे कंठ से गायकी से श्रोताओं के कानों में स्वर का माधुर्य घोल दिया। मीता ने अपने गायन की शुरूआत राग सुरदासी मल्हार’’ पर आधारित विनम्बित खयाल ‘‘गरजन आये री बदरिया…’’ से की। जिसमें सुरो का आरोह अवरोह तथा तबले की संगतकारी ने दर्शकों को बांध सा दिया। इसके बाद उन्होंने द्रुत ताल में ख्याल पेश किया। जिसमें उन्होने ‘‘बदरवा बरसन को आये…’’ में मेघों आगमन को सुरीले अंदाज में गाया। सइक बद एक ताल में तराना सुनाने के बाद डाॅ. मीता ने कजरी सुनाई। ‘‘ सावन झर लागे ला धीरे धीरे….’’ जो दादरा की बंदिश थी।
vocal by meeta pandit
राष्ट्रीय ओर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने गायन का लोहा मनवा चुकी डाॅ. मीता ने आखिर में ठुमरी सुना कर दर्शकों की दाद बटोरी। मीता के साथ तबले पर ज्ञान सिंह तथा हारमोनियम पर अहमदाबाद के शिशिर भट्ट ने संगत की।
दो दिवसीय मलर की दूसरी प्रस्तुति गौरी दिवाकर व उनकी सखियों का कत्थक थी। दिल्ली निवासी व पं. बिरजू महाराज की शिष्या रही गौरी ने सर्व प्रथम पंच तत्वों पर आधारित रचना में पृथ्वी तथा जल तत्व को कतथक शैली में अनूठे अंदाज में पेश किया। अथर्व वेद से पृथ्वी तत्व की रचना में नृत्यांगना शुभि जौहरी तथा अनुकृति श्विास ने अपने नर्तन और लावण्य का लास्य बिखेरा। जल तत्व की एकल प्रस्तुति में गौरी दिवाकर अपने कत्थक की परंपराओं के साथ एक अलग ट्रीटमेन्ट देते हुए उसे व्याख्यायित किया। इस रचना का सृजन रचना पाठक व आशुतोष दीक्षित द्वारा किया गया तथा निर्देशन गुरू अदिति मंगलदास द्वारा किया गया।
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इसके बाद गौरी व उनकी सह नृत्यांगनाओं ने तराना पेश किया जिसमें कत्थक के आधारभूत तत्वों के सम्मिश्रण के साथ पखावज व तबले की लयकारी पर पदाघातों की प्रतिस्पार्धा व सामंजस्य आल्हादकारी रहा। गौरी दिवाकर द्वारा रचित इस प्रस्तुति में संगीत पक्ष जहां प्रबल बना वहीं नर्तन पक्ष के साथ तारतम्य उत्कृष्ट बन सका। शुभा मुदगल व अनीश प्रसाद के संगीत ने तराना को स्फति दायक व दर्शनीय बना दिया। तराना में स्वयं गौरी दिवाकर के अलावा शुभि जौहरी, अनुकृति विश्वकर्मा, मीरा रावत तथा सौम्या नारायण ने अपने नृत् का जौहर दिखाया। इनके साथ तबलेे पर योगेश गंगानी, पखावज परमावीर गंगानी, हारमोनियम पर समीउल्ला, सारंगी पर आमिर खां व सितार पर उमा शंकर ने संगत की। इससे पूर्व वरिष्ठ संगीतज्ञ डाॅ. अमृत कविटकर ने दीप प्रज्ज्वलित कर संध्या का शुभारम्भ किया।
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