उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता, मूल संविधान पर दस्तखत करने वाले पहले राजस्थानी थे


उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता, मूल संविधान पर दस्तखत करने वाले पहले राजस्थानी थे

संविधान निर्माण में उदयपुर का योगदान पर विशेष आलेख -जयेश पण्डया, सहायक सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी उदयपुर

 
sanvidhan diwas

उदयपुर 26 नवंबर 2024। आज 26 नवंबर को हमारा देश संविधान अंगीकृत होने की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हम सभी जानते है कि देश का संविधान, 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ जो हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है। यह संविधान न केवल देश के प्रशासन और सरकार को दिशा-निर्देश देता है, बल्कि प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता, समानता, और सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी प्रदान करता है। यह दस्तावेज़ हर व्यक्ति को सिर उठाकर जीने की ताकत देता है, चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। संविधान ने भारतीय समाज में व्याप्त असमानताओं और भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया है जो इसकी मूल भावना में सन्निहित है। इसकी प्रस्तावना में ही न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व का वादा किया गया है। इन मूल्यों को संविधान ने अपने विभिन्न अनुच्छेदों और धाराओं के माध्यम से लागू किया है।

संविधान निर्माण में उदयपुर का योगदान
उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता, संविधान सभा के सदस्य के तौर पर मूल संविधान पर दस्तखत करने वाले पहले राजस्थानी थे। वे उदयपुर के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष भी थे। बलवंत सिंह मेहता ने हिन्दी को राजभाषा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी प्रकार प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी उदयपुर के माणिक्य लाल वर्मा का भी संविधान निर्माण में योगदान उल्लेखनीय है।

मूल अधिकारों का योगदान

संविधान ने प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार दिए हैं, जो उनकी गरिमा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं। समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) सभी नागरिकों को कानून की नजर में समान होने की गारंटी देता है। छुआछूत, जातिगत भेदभाव, और असमानता जैसी प्रथाओं को समाप्त करता है। स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आंदोलन की स्वतंत्रता, और अपने जीवन को अपनी मर्जी से जीने का अधिकार देता है। शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)नागरिकों को शोषण और जबरन श्रम से बचाता है।संविधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)नागरिकों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में अपील करने की शक्ति देता है।

संविधान ने आरक्षण की व्यवस्था लागू करके अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और पिछड़े वर्गों को समाज में समान अवसर दिलाने का प्रयास किया। यह कदम इन वर्गों को शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में हिस्सेदारी देकर समाज में सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, लोकतांत्रिक प्रणाली ने प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार देकर उन्हें अपने प्रतिनिधि चुनने और शासन में भागीदारी का अवसर दिया। यह नागरिकों को सत्ता और निर्णय प्रक्रिया में शामिल होने की शक्ति प्रदान करता है। संविधान ने महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। अनुच्छेद 15(3) ने महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कानून बनाने की अनुमति दी है। इससे महिलाओं को समान अधिकार, शिक्षा, और कार्यस्थल पर सुरक्षा मिली है।

अतएव भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह एक ऐसी शक्ति है, जिसने हर भारतीय को स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार दिया है। यह हर नागरिक को यह विश्वास दिलाता है कि वह अपने देश में समान रूप से महत्वपूर्ण है। इसने हर भारतीय को सिर उठाकर, आत्मसम्मान के साथ जीने की ताकत दी है, और यही इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

विशेष आलेख : जयेश पण्डया, सहायक सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी उदयपुर

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