अंतरिक्ष हो या खेत, भारत का वैज्ञानिक श्रेष्ठः डाॅ. परोदा


अंतरिक्ष हो या खेत, भारत का वैज्ञानिक श्रेष्ठः डाॅ. परोदा

गेहूँ व जौ अनुसंधान पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न

 
RCA

आबादी चार गुणा बढ़ी तो देश का खाद्यान्न उत्पादन साढे़ छः गुणा बढ़ा
हमारे पास 50-70 मिलियन टन गेहूँ का अतिरिक्त बफर स्टाॅक तैयार

उदयपुर, 30 अगस्त 2023 । अंतरिक्ष हो या खेत- भारत के वैज्ञानिकों ने हर जगह देश का गौरव बढ़ाया है। आजादी के बाद आबादीं में साढे चार गुणा वृद्धि हुई है तो कृषि वैज्ञानिकों ने खाद्यान्न उत्पादन में साढे छः गुणा बढ़ोतरी कर अपने हुनर का लोहा मनवाया है। अब कृषि वैज्ञानिकों को इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना होगा कि खाद्यान की कीमतें घटे व उत्पादन बढ़े। साथ ही उत्पादन को सीधा बाजार से जोड़ा जाए और यह कमान युवा वैज्ञानिकों को सौंपी जाए। यह बात बुधवार को पद्म भूषण से सम्मानित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक एवं चेयरमेन ‘टास’ डाॅ. आर. एस. परोदा ने कही।

राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय गेंहू व जौ अनुसंधान कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि डाॅ. परोदा ने कहा कि हर बच्चा सपना देखे, लेकिन सोच वैश्विक रखे। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में देश प्रतिवर्ष 5-6 मिलियन टन की वृद्धि कर रहा है। साथ ही 50 से 70 मिलियन टन का बफर स्टाॅक भी हमारे पास है ताकि कोई भी विपत्ति आए तो देश में अनाज की कमी नहीं रहे। 

परोदा का कहना था कि राजस्थान जैसे मरूप्रदेश में मूंग, मोठ, बाजरा, मैथी व जीरा आदि की भरपूर पैदावार होती है। पाली में तैयार गेहूँ किस्म ‘खरचीय-65’ क्षाररोधी है जिसका भौगोलिक पेटेन्ट भी करा लिया गया है। हमारे पास भरपूर पानी है, उत्कृष्ट बीज है, श्रेष्ठ उर्वरक है, श्रेष्ठतम कृषि वैज्ञानिक है, विशाल सोच है और आई.सी.ए.आर. है तो फिर इन सबका उपयोग कर देश को और आगे ले जाने व नए कीर्तिमान स्थापित करने का काम होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर गर्व किया कि वे स्वयं राजस्थान कृषि महाविद्यालय के पूर्व छात्र रहे हैं और जो सपने उन्होंने देखे मूर्त रूप में साकार होते भी देखा है।

उन्होंने युवा छात्रों और कृषि क्षेत्र में काम कर रहे नौजवान वैज्ञानिकों से कहा कि अब बारी उनकी है। देश के युवा वैज्ञानिकों को चाहिए कि संरक्षित कृषि को बाजार से जोड़े।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व उप महानिदेशक आई.सी.ए.आर. एवं पूर्व कुलपति, गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर, डाॅ. पी.एल. गौतम ने कहा कि बच्चों में शुरू से ही शिक्षा के अलावा उद्यमिता पर जोर देना चाहिए। इससे न केवल समग्र विकास होगा बल्कि वे देश  की तरक्की में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकेंगे। युवा कृषि वैज्ञानिक इसी रफ्तार से अपने कर्म में जुटे रहेंगे तो सुपरिणाम मिले है और भी सुखद परिस्थितियाँ बनेंगी।

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक ने प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप के त्याग, देशपे्रम को आत्मसात करते हुए युवा वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे सतत् शोध अनुसंधान करते हुए खाद्यान्न उत्पादन में देश को नई ऊचाँईयां प्रदान करें। हमारे पास भरपूर पानी है, उत्कृष्ट बीज है, श्रेष्ठ उर्वरक है, श्रेष्ठतम कृषि वैज्ञानिक है, विशाल सोच है और आई.सी.ए.आर. है तो फिर इन सबका उपयोग कर देश को और आगे ले जाने व नए कीर्तिमान स्थापित करने का काम होना चाहिए। 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में गेहूँ का अविस्मरणीय योगदान है। गेहूँ से जुडे़ समसायिक मुद्दे यथा प्राकृतिक खेती, खाद्य उत्पादों में गेहूँ का समावेश, बाॅयो फोर्टिफिकेशन, पारिस्थिकी तंत्र, स्वास्थ्य, जैविक व अजैविक तनाव आदि पर भी ध्यान देना जरूरी है। कुलपति ने कहा कि युवा वैज्ञानिकों को गेहूँ व जौ उत्पादन से जुड़े किसानों की समस्याओं का भी अध्ययन कर उनके समाधान की दिशा में काम करना होगा। देश को 2047 तक विकासशील से विकसित देश बनाने का लक्ष्य हमारे सामने है। इसे पूरा करने केे लिए तकनीकी विकास, प्रसार और स्थिरीकरण पर कार्य करना होगा।

छात्र-वैज्ञानिक संवाद

इससे पूर्व एमपीयूएटी के छात्र कल्याण निदेशालय की और से छात्र वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। छात्र कल्याण अधिकारी डाॅ. मनोज महला ने बताया कि इस मौके पर कृषि जगतके नामचीन पद्म भूषण वैज्ञानिक डाॅ. आर. एस. परोदा व डाॅ. पी. एल. गौतम एवं कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक उपस्थित थे। कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को बे्रकफास्ट, लंच एवं डिनर में मोटे अनाज से बने व्यंजनों का परोसा गया जिसे सभी प्रतिभागियों ने पसन्द किया तथा भूरी-भूरी प्रशंसा भी की गई।

कार्यक्रम में डाॅ. अरविन्द वर्मा, निदेशक अनुसंधान, डाॅ. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, डाॅ. रवि कान्त शर्मा, सहायक निदेशक अनुसंधान, डाॅ. अभय दशोरा, सह कार्यक्रम समन्वयक, डाॅ. जगदीश्ज्ञ चैधरी, गेहूँ वैज्ञानिक एवं डाॅ. उर्मिला आदि उपस्थित रहे।

मोबाईल या जेलर

उदयपुर। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डाॅ. पी. एल. गौतम ने कहा कि आधुनिकता के दौर में युवा पीढ़ी के हाथ में मोबाईल जेलर की तरह हो गया है। युवा पीढ़ी कैद में है और मोबाईल जेलर की भूमिका निभा रहा है।

डाॅ. गौतम का कहना था कि अच्छा हो कि युवा पीढ़ी मोबाईल के दुरूपयोग से बचे व इस यंत्र को अपनी शिक्षा व देश-दुनिया की नई तकनीक की जानकारी हासिल करने में लें। छात्र वैज्ञानिक संवाद में डाॅ. गौतम ने कहा कि उच्च अध्ययनरत बच्चों को विदेश जाने का मौका मिले तो वे जान पाएंगे कि लोग अपने समय का कितना सदुपयोग करते हैं। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित कर पोषण सुरक्षा के प्रति सजग करने पर भी जोर दिया।

62वीं अखिल भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान कार्यशाला की मुख्य सिफारिशें

  • प्रजनन परीक्षणों में सभी प्रविष्टियों को महत्वपूर्ण श्रेष्टता के आधार पर आगे बढ़ाया जायेगा
  • अग्रिम प्रजनन प्रविष्टियों के परीक्षण जोनल कोर्डिनेटिंग यूनिट अपने वहीं बनायेगी।
  • मध्य क्षेत्र में डायकोकम गेंहू पर विशेष परीक्षण शुरू किया जायेगा तथा एनआईवीटी-4 परीक्षण उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में भी किये जाएंगे।  
  • गुणक्ता घटक और जैव संवर्धित नर्सरी की शुरूआत करने की सिफारिश की गयी।
  • गेंहू में पत्ती रतुआ, तना रतुआ व हेड स्कैब के नियंत्रण के लिए टेबुकोनाजोल 50% ट्राईफ्लोक्सिस्ट्राबिन 25% दवा के 0.06% घोल के छिड़काव की सिफारिश की गयी।गेंहू में पत्ती झुलसा के नियत्रंण हेतु टेबुकोनाजोल 50% ट्राईफलोक्सीस्ट्राबिन 25% का 0.1% घोल के छिड़काव की सिफारिश की गयी।
  • गेंहू में सभी प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए पाईरोक्सासल्फोन पेडिमेथेलिन/ 127.05, 1250 ग्राम प्रति हेक्टेयर या पाईरोक्सासल्फोन मैट्रीब्यूजिन / 127.05, 280 ग्राम प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की गयी।
  • अगर जमाव से पहले छिड़काव नहीं किया गया तो पहली सिंचाई से पहले पाईरोक्सासल्फोन मेटसल्फयूरोन 127.5,4 ग्राम प्रति हेक्टेयर की सिफारिश सभी प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए की गयी।
  • इस कार्यशाला में उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में सिंचित व समय से बुवाई के लिए गेंहू की एचडी-3386 तथा सीमित सिंचाई के लिए डब्ल्यू एच-1402 की पहचान की गयी।
  • उत्तर पूर्वी मैदानी भागों में सिंचित व समय से बुवाई के लिए गेंहू की एचडी-3388 की पहचान की गयी।
  • मध्य क्षेत्र में सिंचित व समय से बुवाई के लिए गेंहू की सीजी-1040 की पहचान की गयी तथा डीबीडब्ल्यू- 327 का उच्च उर्वरता दशा के लिए क्षेत्र विस्तार किया गया ।
  • प्रायद्वीपीय क्षेत्र में सिंचित व समय से बुवाई के लिए गेंहू की एमपी-1378 तथा सीमित सिंचाई के लिए डीबीडब्ल्यू -359 की पहचान की गयी।
  • उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में सिंचित व समय से बुवाई के लिए जौ की डीडब्ल्यूआरबी- 219 की पहचान की गयी।
     

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