152 स्कूलों में बनेंगे ‘‘बायो डाईजेस्टर शौचालय’’
विश्व शौचालय दिवस के मौके पर हिन्दुस्तान जिंक ने निर्णय लिया है कि कंपनी के 152 गोद लिए स्कूलों में अब बायो डाईजेस्टर शोैचालय बनाये जाएंगे। बायो शौचालयों से निश्चित ही पानी की बचत होगी।
विश्व शौचालय दिवस के मौके पर हिन्दुस्तान जिंक ने निर्णय लिया है कि कंपनी के 152 गोद लिए स्कूलों में अब बायो डाईजेस्टर शोैचालय बनाये जाएंगे। बायो शौचालयों से निश्चित ही पानी की बचत होगी।
हिन्दुस्तान जिंक के हैड-कार्पोरेट कम्यूनिकेशन पवन कौशिक ने बताया कि ‘‘बायो डाईजेस्टर शौचालय या बायो शौचालयों में मल को बैक्टरीया द्वारा जैव गैस और पानी में परिवर्तित कर दिया जाता है। स्कूलों में इन शौचालयों का इस्तेमाल बच्चों को सुविधा प्रदान करेगा। कौषिक ने बताया कि यह बायो डाईजेस्टर शौचालय उदयपुर, चित्तौडगढ़, राजसमंद तथा भीलवाड़ा के 152 स्कूलों में बनाये जाएंगे। इन शौचालयों को बनाने में हिन्दुस्तान जिंक चार करोड़ रुपये खर्च करेगा।
दस हजार शौचालयों का निर्माण, 20 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन ट्रीटमेंट करने वाले प्लांट का निर्माण, सभी इकाईयों में जीरो डिस्चार्ज तथा पर्यावरण की दिशा में उठाए गए सुरक्षात्मक कदम, हिन्दुस्तान जिं़क का स्वच्छ भारत के प्रति एक कॉर्पोरेट मॉडल का उदाहरण है।
ज्ञातव्य रहे कि हिन्दुस्तान जिंक की सभी स्मेल्टिंग यूनिटों में ‘एफिल्यून्ट ट्रीटमेंट प्लांट’ के साथ ‘रिवर्स ऑस्मोसिस प्लांट’ संचालित है जिसकी स्थापना से पानी की खपत में निरन्तर कमी आती जा रही है तथा सभी इकाइयां ‘जीरो डिस्चार्ज’ पर आधारित हो चुकी है।
कंपनी राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में पवन ऊर्जा द्वारा 274 मेगावाट ग्रीन एनर्जी का उत्पादन कर रही है। यह पूरी क्षमता ‘संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन क्लाईमेट चैन्ज (यूएनएफसीसीसी)’ द्वारा बनाए गए ‘क्लीन डवलपमेंट मैकेनिज्म’ के तहत पंजीकृत है। वेस्ट मेनेजमैंट की दिशा में विशेष कदम उठाते हुए हिंदुस्तान जिंक अपने रोस्टरों से ‘वेस्ट हीट रिकवरी’ द्वारा 35 मेगावाट बिजली भी उत्पन्न कर रहा है।
इसके साथ ही कंपनी के अनुसंधान एवं विकास के प्रयासों द्वारा, जस्ता प्रक्रिया से निकलने वाले स्लेग को सीमेंट कंपनियां उपयोग में ला रही है। थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश को भी सीमेंट बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है।
हिंदुस्तान जिंक ने, कारखानों में 46 करोड़ रुपए की लागत से ‘ऐडियाबैटकि शीतल टावर्स’ स्थापित किए हैं जो वाष्पीकरण के रूप में वेस्ट होने वाले पानी के अपव्यय को लगभग 70 प्रतिशत कम कर रहा हैं। इससे निश्चय ही फ्रेश वाटर की खपत में निरन्तर कमी आ रही है। कंपनी का ध्यान रिड्यूस, रि-साइकिल, रि-यूज और रि-क्लेम पॉलिसी पर आधारित है।
इस विषय को प्राथमिकता देते हुए हिंदुस्तान जिंक ने राजस्थान सरकार के साथ दो समझौते के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए है। पहला 30,000 ग्रामीण घरेलू शौचालयों का निर्माण करना तथा दूसरा 20 मिलियन लीटर प्रतिदिन सीवेज के ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना करना।
हिन्दुस्तान जिंक अब तक 10,000 शौचालयों का निर्माण कर जा चुका है तथा 170 करोड़ रु. की लागत से बना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हो चुका है। यह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट उदयपुर के करीब 30 प्रतिशत सीवेज का ट्रीटमेंट कर रहा है। यह अपनी तरह का राजस्थान में पहला ट्रीटमेंट प्लांट है।हिन्दुस्तान जिंक के ‘मर्यादा’ अभियान के अन्र्तगत कंपनी ने 80 गांवों को खुले में शौच से मुक्त कराने का भी लक्ष्य रखा है। इनमें से 7 गांव खुले में शौच मुक्त भी हो चुके हैं।
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