भाजपा का हाल, भीतर बवाल, बाहर धमाल को बेहाल!


भाजपा का हाल, भीतर बवाल, बाहर धमाल को बेहाल!

मुख्य विषय भाजपा का सांगठनिक स्वरूप और यूपी चुनाव से जुड़ा है, इसलिए यह बताना जरूरी है कि यदि पार्टी के फायर ब्रांड नेता दंगा-फसाद की पृष्ठभूमि तैयार न कर रहे हों तो भाजपा के भीतर अब उतनी ऊर्जा नहीं रही, जितनी लोकसभा चुनाव में थी। यदि भाजपा की लोकप्रियता और उसका सांगठनिक करंट कायम रहता तो उसकी दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में दुर्दशा नहीं होती

 

भाजपा का हाल, भीतर बवाल, बाहर धमाल को बेहाल!

इसमें कोई शक नहीं 99 फीसदी सच्चाई कड़वी होती है। उस कड़वी सच्चाई को सुनकर अच्छे-अच्छों का सिर चकराने लगता है। सनद रहे कि वर्ष 2014 में हुए लोकसभा में चुनाव भारी बहुमत से जीतने के बाद आरएसएस, भाजपा व उसके अन्य आनुषंगिक संगठनों को कड़वी सच्चाई सुनने की आदत छूट गई है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में वर्ष 2002 में जो गोधरा कांड हुआ था, उसकी गूंज  चिख-चीत्कार के रूप में पूरी दुनिया ने सुनीं। दंगा की पृष्ठभूमि रचने और उसे अंजाम तक पहुंचाने में प्रधानमंत्री (तब मुख्यमंत्री) नरेन्द्र मोदी और उनके करीबी भाजपा प्रमुख अमित शाह पर मुख्य भूमिका निभाने के आरोप लगे। पर, समय के साथ-साथ सारे मामले लोगों की नजरों से ओझल होते गए। हां, गोधरा कांड के बाद कट्टरपंथी हिन्दुओं के लिए हीरो बनकर उभरे नरेन्द्र मोदी के पक्ष में कथित रूप से मीडिया से साठगांठ कर इस कदर प्रचार का तूफान खड़ा किया गया कि भाजपा को पूर्ण बहुमत से ज्यादा सीटें मिल गई। फिर क्या था, सत्ता का स्वाद चखते ही भाजपा के भीतर का लोकतांत्रिक स्वरूप भी धीरे-धीरे चरमराने लगा। अब संगठन के भीतर सिर-फुटौवल चल रहा है. हालांकि कोई भी भाजपाई इन बातों को औपचारिक रूप से नहीं स्वीकारेगा लेकिन अनौपचारिक रूप से बिगड़ती दशा की बातें भाजपा के लोग ही लीक कर रहे हैं, जो मीडिया तक पहुच रही है। इन सबसे अलग अगले वर्ष के आरंभ में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव की गहमागहमी को कांग्रेस ने रोचक बना दिया है। जिस तरह फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में फिजां बन रही है उससे बेचैन भाजपा ही है। पर भाजपा के लिए दुखद है कि पार्टी के भीतर जबर्दस्त बवाल है लेकिन भाजपाई चर्चा में बने रहने के लिए बाहर धमाल मचाने को बेहाल हैं। इसी के मद्देनजर भाजपा प्रमुख अमित शाह का एक बयान आया है कि वे 50 हजार दलितों के साथ यूपी में मीटिंग करेंगे। ये हास्यास्पद लग रहा है, क्योंकि हाल ही भाजपा समर्थित गोरक्षक दलों ने गुजरात के उना समेत देश के कई राज्यों में दलितों से जो क्रूरता की है, उसे भुलाना मुश्किल है।

 मुख्य विषय भाजपा का सांगठनिक स्वरूप और यूपी चुनाव से जुड़ा है, इसलिए यह बताना जरूरी है कि यदि पार्टी के फायर ब्रांड नेता दंगा-फसाद की पृष्ठभूमि तैयार न कर रहे हों तो भाजपा के भीतर अब उतनी ऊर्जा नहीं रही,  जितनी लोकसभा चुनाव में थी। यदि भाजपा की लोकप्रियता और उसका सांगठनिक करंट कायम रहता तो उसकी दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में दुर्दशा नहीं होती। कार्यकर्ताओं का मनोबल भी पहले जैसा नहीं रहा। सूत्रों का कहना है कि इससे संकेत उसी से मिल जाता है कि भाजपा-संघ की गोपनीय बैठकों तक में भी पार्टी के नेता-कार्यकर्ता आपस में तू-तू-मैं-मैं कर रहे हैं। भाजपा के कुछ आत्ममुग्ध नेता अब भी पार्टी में 2014 की ही झलक देख रहे हैं। जिस लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत सभी गैर भाजपा दलों की हालत खराब हो गई थी। क्योंकि किसी को यह अंदाजा नहीं था गोधरा कांड के ‘हीरो’ के नाम पर देश की जनता लामबद हो जाएगी। खैर, ये पुरानी बातें हैं। धीरे-धीरे लोगों की नजरों से यह ओझल भी होता जा रहा है। ठीक इसी तरह खुद को सुसंस्कृत पार्टी बताने वाली भाजपा जबतक सत्ता तक नहीं पहुंची थी तबतक सभ्यता-संस्कृति की दुहाई देकर अन्य दलों को नीचा दिखाना इनकी फितरत थी। फिलहाल मामला उत्तर प्रदेश का हो या मध्य प्रदेश का अथवा गुजरात, पंजाब और उत्तराखंड का। इन सभी राज्यों में भाजपा की सांगठनिक इकाई चरमरा रही है। इन राज्यों में भाजपा दिग्गजों में जबर्दस्त मत्तभिन्नता है। फलस्वरूप हर दिग्गज एक दूसरे की टांग खींचने में लगा है। वहीं निचले दर्जे के कार्यकर्ता भी विभिन्न गुटों में बंटे अपने-अपने नेताओं के खेमे से जुड़कर अपने आका के लिए काम कर रहे हैं, ना कि पार्टी के लिए। बताते हैं कि मध्य प्रदेश भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का नाम शामिल नहीं होने के बाद पार्टी ने सफाई दी थी कि उनका नाम टाइपिंग मिस्टेक है। लेकिन नंदकुमार चौहान की टीम में प्रदेश के पूर्व संगठन महामंत्रियों माखन सिंह चौहान, अरविंद मेनन और भगवतशरण माथुर को भी स्थान नहीं मिला। जबकि दूसरे दलों से भाजपा में आए नेताओं को अधिक तरजीह दी गई।

इसके अलावा गुजरात के सूरत में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सभा में हार्दिक पटेल के समर्थकों ने जमकर हंगामा मचाया। पाटीदार राजस्वी सम्मान समारोह में पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को हार्दिक समर्थको का जमकर विरोध सामना करना पड़ा। सूरत में पाटीदारों के बीच अच्छे संबंध बनाने गए अमित शाह और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी को मायूसी का सामना करना पड़ा। उन्हें उम्मीद भी नहीं होगी कि उन्हें इस तरह विरोध का सामना करना पड़ेगा। सभा के दौरान हार्दिक समर्थकों ने पहनी हुई टोपियां और बाद में कुर्सियां उछालकर विरोध दर्ज किया। विरोध का आलम ये था कि अमित शाह सिर्फ चंद मिनटों में अपना भाषण खत्म कर रवाना हो गए। भाजपा की केसरिया टोपी पहनकर सभा खंड में पहुंचे हार्दिक समर्थकों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। अपने संक्षिप्त भाषण में शाह ने कहा कि गुजरात और भाजपा का विकास पाटीदार समाज से जुड़ा है। लेकिन उनके इस मरहम से कोई फायदा नहीं हुआ और हार्दिक की संस्था पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का एक कार्यकर्ता मंच की तरफ आया और उनके सामने आकर शाह के खिलाफ नारेबाजी की। इतना ही नहीं 8 सितम्बर को सूरत में पाटीदार समाज और भाजपा के बीच होने वाले सौहार्दपूर्ण वातावरण में खटास आ गई। कार्यक्रम के लिए सूरत में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गुजरात के मुख्यमंत्री के बीच स्वागत में पोस्टर लगाए गए थे। यह पोस्टर पाटीदार अभिनंदन समारोह समिति ने लगाए थे।

इसके अतिरिक्त आरएसएस द्वारा गोवा की भाजपा सरकार के कामकाज का विरोध करने के बाद संघ के राज्यऔ प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को हटा दिया गया। इसके बाद आरएसएस के 400 वॉलनटिअर्स ने वेलिंगकर के समर्थन में सामूहिक रूप से संघ संगठन से इस्तीफा दे दिया। इन सदस्यों ने जिला, उप जिला और शाखा प्रमुख के पदों को छोड़ा है। यह इस्तीफा पणजी में 6 घंटे तक चली उस बैठक के बाद दिया गया जिसमें स्थानीय आरएसएस सदस्यों और पदाधिकारियों ने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर पर वेलिंगकर के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया।  पढ़ाई के माध्यम की भाषा को लेकर गोवा की भाजपा सरकार से टकराने वाले संघ के प्रदेश प्रमुख वेलिंगकर को राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने की कोशिश को लेकर बर्खास्त कर दिया गया। सुभाष द्वारा संचालित संगठन के सदस्यों ने हाल में पार्टी प्रमुख अमित शाह को काला झंडा भी दिखाया था। 68 वर्षीय वेलिंगकर ने भाजपा के लिए कुछ स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं को तैयार करने का श्रेय खुद को दिया, जिसमें मनोहर पर्रिकर भी हैं। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा कि वेलिंगकर दायित्वों से मुक्त कर दिया गया है। वह राजनीतिक गतिविधि में संलिप्त होना चाहते थे। संघ नेता होने के नाते वह ऐसा नहीं कर सकते। वैद्य ने कहा कि तटीय राज्य के नये सांगठनिक प्रमुख पर अभी निर्णय नहीं हुआ है जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं। आंदोलन के तौर पर बीबीएसएम ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की थी।

उधर, यूपी चुनाव में कांग्रेस की लगातार तेज होती गतिविधियों के कारण भाजपा में सर्वाधिक बेचैनी का आलम है। कहा जा रहा है कि भाजपा अध्यलक्ष अमित शाह इस महीने लखनऊ में 50 हजार दलितों को संबोधित करेंगे। इस रैली के बाद वे पार्टी के अन्या नेताओं के साथ लंच भी कर सकते हैं। कार्यक्रम की जिम्मेोदारी बसपा के पूर्व क्षेत्रीय संयोजक जुगल किशोर को यह जिम्मेेदारी दी गई है। जुगल किशोर अब भाजपा में है। रैली का आयोजन संभवतः 16 सितम्बंर को रहोगा, लेकिन इसमें बदलाव भी संभव  है। यह कार्यक्रम स्मृति उपवन में होगा। इस उपवन का विकास मायावती सरकार में हुआ था। भाजपा ने यूपी में अनुसूचित जाति बहुल वाली विधानसभाओं में पहुंच बनाने के लिए 21 सांसदों को लगाया है। ये सांसद मोदी सरकार की योजनाओं की जानकारी देंगे। भाजपा के एक नेता ने कहा कि इस तरह का प्रचार जरूरी है क्योंकि बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां दलितों के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही हैं। विधानसभा चुनावों से पहले इस तरह के कार्यक्रमों की जरूरत है। बहरहाल, यूपी में कांग्रेस की खाट सभा और राहुल गांधी महायात्रा में उमड़ रही भीड़ ने खासकर भाजपा को बेदम कर दिया है।

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भाजपा का हाल, भीतर बवाल, बाहर धमाल को बेहाल!राजीव रंजन तिवारी एक पत्रकार हैं और इनसे संपर्क 08922002003 अथवा trajeevranjan@gmail.com पर किया जा सकता है.

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