पंचायती नोहरा में बही धर्मधारा
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह की आराधना मुनियों के लिये अनिवार्य है तो गृहस्थ व
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह की आराधना मुनियों के लिये अनिवार्य है तो गृहस्थ वर्ग के लिये भी जरूरी है। गृहस्थ वर्ग के लिये अणुव्रतों की व्याख्या इस तरह की गई है कि उनका गृहस्थ जीवन निर्बाध विकसित होता रहे और उसमें किसी तरह की कलुषता न आए।
सारे अणुव्रत गृहस्थों के लिए जीवन जीने की कला प्रस्तुत करते हैं। मर्यादाएं निर्धारित करते हैं। मर्यादाएं ऐसी हैं कि उनके अन्तर्गत जीने पर जीवन की बाह्य और आन्तरिक प्रतिभा का पूर्ण रूप से विकास हो सके।
मुनि ने कहा कि हम कोई भी प्रतिज्ञा करें, सौगन्ध लें, उन्हें पहले जीवन में जीएं। यदि उनमें किसी तरह की क्षति अनुभव करें तो उन्हें सुधारें जब आपको यह प्रतीत हो जाए कि मै इस व्रत की मर्यादा और वर्जनाओं को सम्यक् प्रकार से जी सकूंगा, तभी सौगन्ध लें। ली हुई प्रतिज्ञा भंग नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि यदि हम अपने सिद्धान्तों को जीवन में निरन्तर जीते रहे तो वे सिद्धान्त अपना स्वभाव बन जाते हैं। हम ऐसे अनेक व्यक्तियों से परिचित हैं कि वे सेवा परायण है। प्रतिदिन हॉस्पीटल में मरीजों की सेवा करते हैं किन्तु यदि वे किसी दिन यह नहीं कर पाए उन्हें बड़ा दुख होता है। सेवा उनका स्वभाव बन गया है। अच्छाइयों और बुराइयों दोनों के विषय में यही प्रक्रिया चलती है जो जिसको जीता है वह उसका स्वभाव बन जाता है।
मुनि ने बताया कि पांच अणुव्रत स्वास्थ्य और जीवन व्यवहार के विषय में पूर्णतया जीवन विज्ञान सम्मत विधियां है। सबसे बड़ी बात है कि ये अणुव्रत सार्वभौम है। ऐसा कोई नियम नहीं है जो केवल जैनों कें लिये हो। सारी मर्यादा और वर्जना मानव मात्र के लिये उपयोगी है। मुनि का कहना था कि अणुव्रतों में लोक जीवन को व्यसन मुक्त और पवित्र बनाने की प्रक्रिया है। सुधी जनों को अणुव्रतों के शास्त्रोक्त स्वरूप का समझना चाहिये। प्रवचन सभा का शुभारम्भ प्रवर्तक मदन मुनि के सूत्र स्वाध्याय पूर्वक प्रारम्भ हुआ। कोमल मुनि ने कविता पाठ किया। संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया। वीरेन्द्र डांगी अध्यक्ष श्रावक संघ ने सभागत अतिथियों का स्वागत किया।
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