‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’ पुस्तक का विमोचन


‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’ पुस्तक का विमोचन

आदिवासी विश्वविद्यालय का नाम ‘गोविन्द गुरू विश्वविद्यालय’ होना चाहिए और राजस्थान की विधानसभा के सामने महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगनी चाहिए - यह कहना है जयपुर महानगर टाइम्स के प्रबंध संपादक गोपाल शर्मा का। वे आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना मानगढ़ धाम बलिदान के महानायक एवं भगत आन्दोलन के पुरोधा पूज्य गोविन्द गुरू के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘‘भूरेटिया नी मांनू रे’’ (अंग्रेजों! नहीं मानूंगा) के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

 

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’ पुस्तक का विमोचन

आदिवासी विश्वविद्यालय का नाम ‘गोविन्द गुरू विश्वविद्यालय’ होना चाहिए और राजस्थान की विधानसभा के सामने महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगनी चाहिए – यह कहना है जयपुर महानगर टाइम्स के प्रबंध संपादक गोपाल शर्मा का। वे आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना मानगढ़ धाम बलिदान के महानायक एवं भगत आन्दोलन के पुरोधा पूज्य गोविन्द गुरू के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘‘भूरेटिया नी मांनू रे’’ (अंग्रेजों! नहीं मानूंगा) के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

कार्यक्रम का आयोजन मानगढ़ धाम बलिदान शताब्दी समिति द्वारा कुम्भा साभागार, भूपाल नोबल्स महाविद्यालय परिसर में किया गया।

शर्मा ने कहा कि देश का दूर्भाग्य है कि जिस जेल में तात्या टोपे रहे थे आज वहां बलात्कारीयों को रखा जाता है, रानी लक्ष्मी बाई के जन्मस्थान को कपड़े धोने का स्थान मात्र बना दिया है, वीर सावरकर के परिवार वालों पर सरकारी जांचें हो रही है। उन्होने कहा कि गोविन्द गुरू केवल आदिवासियों के नेता ही नहीं थे बल्की स्वाधीनता संग्राम के महानायक थे। भारत में संस्कृति का केन्द्र आदिवासी समाज ही रहा है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख सुरेश चन्द्र ने कहा कि गोविन्द गुरू पर समाज में अथाह श्रृद्धा और मान है। उनके बारे में सभी को पर्याप्त जानकारी मिले इसलिए हमें दल व संस्थागत भावना से ऊपर उठ कर इस विषय को समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए, साथ ही विश्वविद्यालय में गोविन्द गुरू पर शोधकार्य भी होने चाहिए।

‘‘भूरेटिया नी मांनू रे’’ पुस्तक के लेखक विष्णुदत्त शर्मा ने पुस्तक परिचय देते हुए कहा कि आततायी अंग्रेज घुरुन्ड़ो (गाय के मुण्ड को खाने वाले) जिनका प्रमुख उद्देश्य संपूर्ण हिन्दू समाज को ईसाइ बनाना और गोमांस खाने के लिए विवश करना था, गोविन्द गुरू ने डुंगरपुर और बांसवाड़ा के आस-पास के क्षेत्र में जन जागरण कर अंग्रेजों के विरूद्ध आन्दोलन किया और अपनी शिक्षाओं के माध्यम से भगत आन्दोलन चलाया और लोगों को शपथ दिलाकर स्वाधीनता संग्राम में लगाया। दयानन्द सरस्वती से दीक्षा प्राप्त कर गोविन्द गुरू ने भीलों, मीणों आदि के घर घर जाकर चमत्कार किये और उन्हे दीक्षा दी। प्रतिदिन स्नान करना, दारू नहीं पीना, व्याभिचार नहीं करना और मांसाहार का त्याग आदि प्रमुख शिक्षाओं को मानने वाले 1लाख 80हजार भक्तों को तैयार कर सम्प सभा की स्थापना की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता 1857 की क्रांति के नायक तात्या टोपे के प्रपौत्र सुभाष टोपे ने की। तात्या टोपे के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि उनका नाम रामचन्द्र पांडूरंग था। तात्या टोपे को मेवाड़ का बहुत सहयोग मिला और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वो कई बार राजस्थान आये।

पूज्य गोविन्द गुरू के प्रपौत्र कन्हैया गीरी ने कहा कि गोविन्द गुरू का जन्म बांसिया (बांसवाड़ा) के बंजारा परिवार में हुआ। ब्रिटीश सरकार ने गुरू को कई बार सेन्ट्रल जेल, अहमदाबाद में कैद किया लेकिन गुरू फिर भी बाहर दिखाई देते थे। अंग्रजों ने एक मुसलमान की सहायता से धुणी को अपवित्र किया, तभी वो मानगढ़ धाम में तोपे और बन्दूके चला पाये।

विद्यानिकेतन की बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत गीत ‘धरती धोरा री’ ने सबको खासा प्रभावित किया। कार्यक्रम के अंत में मानगढ़ धाम बलिदान शताब्दी समिति के अध्यक्ष लालशंकर पारगी ने आभार व्यक्त किया एवं कार्यक्रम का समापन शान्तिमंत्र के साथ हुआ।

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