यथार्थ ज्ञान होने पर ही आचरण में परिवर्तन एवं परिष्कार संभव


यथार्थ ज्ञान होने पर ही आचरण में परिवर्तन एवं परिष्कार संभव

व्यक्ति के चरित्र का सम्बन्ध आचरण से है, आचरण चरित्र की अभिव्यक्ति है। व्यक्ति का आचरण ही दृष्य तत्व है। विचार भावनाएं आदि अदृश्य होते है। उनका सम्बन्ध मानव के अपने भाव जगत से ही होता है। आचरण लोक साक्षी तत्व है।

 

व्यक्ति के चरित्र का सम्बन्ध आचरण से है, आचरण चरित्र की अभिव्यक्ति है। व्यक्ति का आचरण ही दृष्य तत्व है। विचार भावनाएं आदि अदृश्य होते है। उनका सम्बन्ध मानव के अपने भाव जगत से ही होता है। आचरण लोक साक्षी तत्व है।

इससे परिवार समाज और राष्ट्र प्रभावित होता है उक्त विचार श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कडिय़ा में गुरू सौभाग्य दीक्षा स्थल जन सेवा ट्रस्ट की ओर से आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त कियें। उन्होंने बताया कि घटना और व्यक्तित्व का जब तक यथार्थ ज्ञान नहीं होगा, तब तक व्यक्ति के आचरण में परिवर्तन और परिष्कार संभव नही होगा। प्रत्येक वस्तु अपने आप में वस्तु ही होती है, उसके गुणधर्म की विवेचना मानव अपने ही दृष्टिकोण से करता है।

सिद्धान्त और मूल्य मानव जो निश्चित करता है, वे सब आरोपित हो जाते है कही कोई भी तत्व स्थिर नही है, वरन परिवर्तनशील है। हम अपने प्रिय को शुभ और अप्रिय को अशुभ की संज्ञा देकर स्वयं राग द्वेष के भावो का सृजन करते है। राग द्वेष के ये भाव ही चरित्र पतन कारण बनते है। मुनि ने बताया कि अनिश्चित अप्रिय वस्तु के प्रति द्वेष का भाव मन मे चलता रहता है। व्यक्ति अन्धत्व के स्तर तक द्वेर्षाकिग्न से जलता रहता है।

सारे भंय दुष्कांड ये राग द्वेष के भाव ही घटित कराते है। जब तक मौलिक उद्भावनाओं को नही समझा जाता तब तक पतन का दौर रूक नही सकता। मुनि जी का कहना था कि बाल• को बचपन से ही ऐसा वस्तुपर•, तत्वस्पर्शी ज्ञान देना चाहिए, जिससे वह युवावस्था तक जीवन और जगत के याथार्थ से परिचित हो जाए। चरित्र निर्माण में इस तरह का ज्ञान सब से महत्वपूर्ण है।

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