चातुर्मास क्यों व किसलिए


चातुर्मास क्यों व किसलिए

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से प्रारम्भ हुआ चातुर्मास पर्व आज तक निर्बाध रूप से जारी है। जिसका निर्वहन एवं अनुसरण आज भी प्रत्येक साधु-सन्त करते है। पूर्णतः अहिंसा पर आधारित जैन धर्म धार्मिक भावनाओं से भरा हुआ धर्म है। प्रतिवर्ष वर्षा योग में जैन साधु-साध्वी एक ही स्थान पर रहकर धर्म की गंगा बहाने, धर्म का पालन करने व श्रावक-श्राविकाओं को कराने, प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ले जाने हेतु चातुर्मास किया जाता है।

 
चातुर्मास क्यों व किसलिए

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से प्रारम्भ हुआ चातुर्मास पर्व आज तक निर्बाध रूप से जारी है। जिसका निर्वहन एवं अनुसरण आज भी प्रत्येक साधु-सन्त करते है। पूर्णतः अहिंसा पर आधारित जैन धर्म धार्मिक भावनाओं से भरा हुआ धर्म है। प्रतिवर्ष वर्षा योग में जैन साधु-साध्वी एक ही स्थान पर रहकर धर्म की गंगा बहाने, धर्म का पालन करने व श्रावक-श्राविकाओं को कराने, प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ले जाने हेतु चातुर्मास किया जाता है।

राष्ट्रसंत गणिनी आर्यिका 105 सुप्रकाशमति माताजी का कहना है कि साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं के लिए आत्म साधना का प्रतिबिम्ब होता है चातुर्मास। यह साधु-साध्वियों सहित सभी को अहिंसा का पालन करने तथा मन, वचन एवं काय के निग्रह हेतु चातुर्मास किया जाता है। जिन धर्म का मूल स्त्रोत अहिंसा है। अहिंसा का अर्थ जहाँ तक हो सकें अपनी क्रियाओं द्वारा किसी की भी हिंसा न हों क्योंकि इस वर्षा काल में असंख्या जीवों की उत्पत्ति होती है इसलिए अहिंसा का विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है। जब आप विचरण करेंगें तो जीवों की हिंसा होगी इसलिए साधु सन्त एक ही स्थान पर चार माह रह कर जिनवाणी के सिद्धान्तों एवं जैन धर्म की वाणी का प्रचार-प्रसार करते है।

जैन साधु वर्ष में 8 माह नंगे पांव और दिन में मात्र एक बार आहार लेकर विहार कर जैन सिद्धान्तों, अहिंसा, सत्य ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का विशेष प्रवचन एवं उपदेश श्रावकों को देते है।

चातुर्मास किसलिए- सुप्रकाशमति माताजी का कहना है कि चातुर्मास स्वंय को समझनें, श्रावक-श्राविकाओं को धर्म की ओर अग्रसर करना,धर्म की महिमा बतलाना, उपदेशो के माध्यम से धर्म की प्रवृत्ति सिखाना, धर्मसंसद में आने से व्यक्ति तनाव से मुक्ति पाने का सूत्र पाता है। उनका कहना है कि साधु के सम्पर्क में आने पर श्रावक को यम, नियम एवं संयम की शिक्षा मिलती है और धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। साधु धर्म की मिसाल के रूप में देखा जाता है। चातुर्मास के दौरान मौन, उपवास, तपस्या, आदि कार्यो का बहुत प्रभाव देखा जाता है। चातुर्मास के दौरान ही जैन अनुयायियों के लिए दक्षलक्षण महापर्व आते है। यह धर्म आराधना का पर्व होता है। चातुर्मास का समय उपर्युक्त होने के कारण इस दौरान श्रावक-श्राविकाओं को प्यास एवं भूख भी कम लगती है, जिससे श्रावक आसानी से तपस्या कर सकता है।

चातुर्मास के दौरान श्रावक-श्राविकाओं को सूर्योदय पूर्व नहाना चाहिये। पूरे चार माह थाली में भोजन नहीं करना चाहिये और पूर्व में अपने से जाने-अनजानें में हुई जीवों की हिंसा की क्षमा याचना के लिए उपवास भी करने चाहिये ताकि आपकी मानसिक एवं शारिरीक शक्ति बनी रह सकें।

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