बच्चों की मासूमियत


बच्चों की मासूमियत

क्या आप जानते है बच्चों के साथ हम कितना खिलवाड़ कर रहे है ? शायद नहीं ! और नहीं का विशेष कारण भी है । हर किसी के पास आज समय का अभाव तो है ही । इसी अभाव के चलते हम बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर तनिक भी सतर्क नहीं है । आज के समय भारतीय बच्चे विशेष कर दो तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे है । एक तरफ़ कुपोषण का बढ़ता असर जो हमारे सरकारी विद्यालयों के बच्चों पर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है जिन्हें पोषाहार दिये जाने के बावजूद भी हम कुपोषण (Malnutrition ) की समस्या को कम नहीं कर सके

 

बच्चों की मासूमियत

क्या आप जानते है बच्चों के साथ हम कितना खिलवाड़ कर रहे है ? शायद नहीं ! और नहीं का विशेष कारण भी है । हर किसी के पास आज समय का अभाव तो है ही । इसी अभाव के चलते हम बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर तनिक भी सतर्क नहीं है । आज के समय भारतीय बच्चे विशेष कर दो तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे है । एक तरफ़ कुपोषण का बढ़ता असर जो हमारे सरकारी विद्यालयों के बच्चों पर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है जिन्हें पोषाहार दिये जाने के बावजूद भी हम कुपोषण (Malnutrition ) की समस्या को कम नहीं कर सके ।

इसका भी मतलब स्पष्ट है सरकार और समाज इस मुश्किल को हरा पाने में अभी तक पूर्णत: सफल नहीं हो पाए है । हां पोषाहार का कुछ फायदा गावों में ज़रूर देखा जा सकता है । शहरों की गरीब बस्तियां हो या चाहे गांवों में मज़दूर-किसानों के बच्चे हो , इस जानलेवा कुपोषण की जद में है । स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग द्वारा तय किये मानकों का इन बच्चों से कोई लेना -देना ही नहीं है । मतलब साफ़ है ये आज भी संतुलित भोजन ग्रहण नहीं कर पाते है जिसकी वजह से इनमें कई तरह की घातक बिमारियां घर बना लेती है । देश की सरकारों ने पिछले कई वर्षों से सरकारी अस्पतालों ,सरकारी विद्यालयों एवं सरकारी महाविद्यालयों को नज़रअंदाज़ कर रखा है जिसकी वजह से देश के 60 फीसदी जनसमूदाय के बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में आज थोड़ा हटकर सोचे तो पिछड़ रहे है ।

पूंजीवाद और निजीकरण के बढ़ते खतरों ने बच्चों सहित उनके माता-पिता का भी बहुत शोषण किया है और इस शोषण में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है । सरकार और बढ़ते पूंजीपति समाज का दायित्व बनता है वह देश में बढ़ रही अमीरी-गरीबी की खाई को भरने में सहयोग करे तभी समानता का अधिकार लागू हो पायेगा अन्यथा  ये विषमताएं चाहे हमारे उदयपुर शहर में हो , गाँवों में हो या कोई बड़े शहरों में हो बस ऐसे ही पूर्ववत् बनी रहेगी । हालांकि , पूंजीवाद और निजीकरण को कम किये बिना हम अपने वतन में शांति का ख़ूबसूरत माहौल बना पाने में नाकामयाब होंगे ।

एक तरफ़ वे बच्चे है जिनके माता -पिताओं ने उन्हें पहले से ही बहुत अच्छी परवरिश दी है मगर प्राईवेट स्कूल्ज़ और प्राईवेट कोचिंग सस्थानों के असहनीय बोझ ने उनके बचपन को कुचल- मरोड़ कर रख दिया है ! बचपन के कुचलने के बाद इन निजी स्कूल्ज़ और बाज़ारू कोचिंग्स ने उपहारस्वरूप या कहे गिफ़्ट के रूप में उन्हें मानसिक अवसाद , हाई बल्ड प्रेशर ,हार्ट अटेक ,असहनीय मोटापा जैसी कई जानलेवा बिमारियां भी दी है लेकिन आज हम सब अंधाधूंध न जाने कहां और क्यों भाग रहे है !

बच्चों की मासूमियत

दोस्तों परसों शाम की बात है मैं एक निजी स्कूल के सामने सिर्फ़ 10 मिनट के लिए खड़ा रहा जब स्कूल से बच्चे बाहर आने लगे और अपने -अपने गंतव्यों की ओर लौटने के लिए । तभी अधिकतर बच्चों के मोटापे को गौर कर मैं तो सचमूच दंग रह गया । जानलेवा मोटापे के साथ ही बच्चों के पीठ पर टंगे उनके स्कूल -बैग भी कम हल्के नहीं थे । मुझे उन बच्चों को देख पर बहुत तरस आयी और उनके पेरेन्टस पर ग़ुस्सा भी । बड़ी मुश्किल से नीरस चेहरा लिए वे सब अपने – अपने घरों की तरफ़ लौट रहे थे ।

उसी दौरान बाजार के पोषक तत्वों रहित , असंतुलित, अशुद्ध तैलीय एवं वसायुक्त नाश्ते के लिए लगे ठेलों पर ये बच्चे क्लासेज़ के बाद टूट पड़ते है । दोस्तों ये भयावह दास्तान सिर्फ़ एक दिन की ही नहीं और सिर्फ़ एक झीलों की नगरी की ही नहीं बल्कि भारत के तमाम महानगरों ,शहरों एवं कस्बों की है । ये बच्चे भी विशेष कर मध्यम ,धनाढ़्य एवं पूंजीपति परिवारों के हैं । हम सबको मिलकर इन मासूमों पर आ रही मुश्किलों को कम करने हेतु उचित समय पर ठोस कदम उठाने होंगे । देश का भावी भविष्य या कहे कर्णधार युवा होते -होते किस दिशा में जायेगा ये भी एक सोचने का विषय है ।

Reader Contribution: Rakshit Parmar

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