स्वभाव में आनी चाहिये स्वच्छता
इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वच्छता सभी को प्रिय लगती है,लेकिन नागरिक स्वयं स्वच्छता के लिये कुछ करना नहीं चाहता। भारत में सार्थक श्रम की बहुत कमी है। जहां भी श्रम से जी चुराने का अवसर मिले व्यक्ति उसका लाभ उठा लेता है। हम भारतवासियों की इसी कमजोरी के कारण हमारा भारत अस्वच्छ बना रहता है।
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इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वच्छता सभी को प्रिय लगती है,लेकिन नागरिक स्वयं स्वच्छता के लिये कुछ करना नहीं चाहता। भारत में सार्थक श्रम की बहुत कमी है। जहां भी श्रम से जी चुराने का अवसर मिले व्यक्ति उसका लाभ उठा लेता है। हम भारतवासियों की इसी कमजोरी के कारण हमारा भारत अस्वच्छ बना रहता है।
श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुिन ने उक्त क्चिार पंचायती नोहरे में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर प्रभु ने प्रमाद अर्थात आलस्य को पाप कहा है। इसके बावजूद हम अपनें जीवन में इसे ही अधिक गले लगाकर चलते हैंं। भगवान महावीर प्रभु ने प्रति लेखन का सिद्धान्त दिया इसका अर्थ है वस्तु को पूर्णतया देखना, उसमें कहीं विकृति है तो उसे हटा देना।
स्वच्छता जहां होती है वहां हिंसा भी कम होती है। गंदगी में ही सुक्ष्म जीव पैदा होते हैं और कभी कभी तो बड़े-बड़े जन्तु भी गंदगी में पैदा जाते है फिर उनकी हिंसा सफाई करने वाला करता ही है। गंदगी अधर्म भी है ऐसा महावीर प्रभु का सिद्धान्त है।
मुनि ने कहा कि स्वच्छता स्वभाव में आनी चाहिये। व्यक्ति अपने जीवन में बुराइयों की गन्दगी भी न आने दें। भ्रष्टाचार और अनेक व्यसन जीवन की गन्दगी ही तो है। हम जीवन के क्षेत्र में भी बुराई से बचें। यह भी एक स्वच्छता है, जो जीवन के लिए बहुत जरूरी है। मुनि ने कहा कि अनेक बार तों व्यक्ति अपने अहं के कारण अपने स्थान तक की भी सफाई नहीं करता। वह सोचता है इतना छोटा कार्य मैं कंरू क्या। कार्यक्रम का संचालन श्री वद्र्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के महामंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।
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