हास्य नाटक ’आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?’ का हुआ मंचन

हास्य नाटक ’आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?’ का हुआ मंचन

जीआर पोर्टफोलियो मेनेजमेन्ट सर्विस द्वारा मौलिक नाट्य समूह की ओर से आज शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में हास्य नाटक आखिर इस मर्ज की दवा क्या है, ने दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर दिया। नाटक का मुख

 
हास्य नाटक ’आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?’ का हुआ मंचन

जीआर पोर्टफोलियो मेनेजमेन्ट सर्विस द्वारा मौलिक नाट्य समूह की ओर से आज शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में हास्य नाटक आखिर इस मर्ज की दवा क्या है, ने दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर दिया। नाटक का मुख्य पात्र मुंशीराम प्रारम्भ से ही कंजूस प्रवृत्ति का है जो अपने एवं अपने परिवार पर किसी प्रकार का कोई धन खर्च नहीं करना चाहता है। उसकी इस प्रवृत्ति से उसके परिजन काफी दुखी रहते है। अपने पिता को सबक सिखाने के लिये मुंशीराम की पुत्री बीमार होने का बहाना बनाती है।

मुंशीराम अपनी पुत्री का ईलाज किसी अच्छे चिकित्सक से कराने के बजाय नीम हकीम, सस्ते चिकित्सक एवं वैध को बुला लाता है। सबसे आश्चर्य की बात यह कि ये तीनों ही ईलाज के बारें में कुछ नहीं जानते। कंजूस मुंशीराम से तीनों फजूल बातें करते हुए पैसा एंठने का चक्कर चलाते है, मुंशीराम को पता चलने पर वह तीनों को वहां से भगा देता है।

मुंशीराम अपनी पुत्री लक्ष्मी का विवाह सम्पत से नहीं करना चाहता है लेकिन लक्ष्मी सम्पत से प्यार करती है। नाटक की पात्र रामो मुंशीराम से लक्ष्मी की बीमारी का ईलाज उसकी शादी बताती है। वह मुंशीराम को बेवकूफ बनाकर उसे लक्ष्मी का सम्पत के साथ झूठी शादी कराने को कह कर उसे मना लेती है। रामो पंडित को ला कर बिना हवन कुंड के लक्ष्मी व सम्पत की शादी करवा देती है। शादी बाद जब दोनों आशीर्वाद ले कर जाना चाहते है तो मुंशीराम कहता है कि यह शादी तो झूठी थी, अन्य पात्र गणपत मुंशीराम को समझा बुझा कर शादी को स्वीकार करने के लिये मना लेता है।

मुंशीराम एवं अन्य पात्रों द्वारा किये गये अभिनय ने सभी को हंसने पर मजबूर कर दिया। नाटक के निर्देशक शिवराज सोनवाल के सटीक निर्देशन ने हर पात्र को नाटक के घेरे में बांधे रखा।

ये थे कलाकार- मुंशीराम – अनिल दाधीच, गणपत,- रमेश नागदा, स्वयं सेवी-1- भूपेन्द्र जीनगर, स्वयं सेवी-2-अनिल सालवी, रामो – भव्यता चौहान, लक्ष्मी – मोनिका गौड, डाॅक्टर – सचिन भण्डारी, हकीम – संदीप सेन, वैद्य- विजयलाल गुर्जर, सम्पत-रवि सेन, पण्डित – दीक्षान्त राज सोनवाल, सांवलदास -सुखदेवसिंह राव, ढोलक वाला-साहिल परिहार,कोरस – हेमन्त मेनारिया, महेश आमेटा एवं समूह ने प्रस्तुति दी।

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