अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला परियोजना पर समापन कार्यशाला सम्पन्न


अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला परियोजना पर समापन कार्यशाला सम्पन्न

विश्व बैंक पोषित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत परियोजना 'अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला' की समापन कार्यशाला का आयोजन आज अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मे हुआ।

 
अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला परियोजना पर समापन कार्यशाला सम्पन्न

विश्व बैंक पोषित एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत परियोजना ‘अल्प प्रचलित फलों के व्यावसायिक दोहन हेतु मूल्य श्रृंखला’ की समापन कार्यशाला का आयोजन आज अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मे हुआ।

यह परियोजना कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर वर्ष 2009 मे प्रारम्भ हुई थी जिसमें केन्द्रीय तुड़ाई उपरान्त तकनीकी एवं अभियांत्रिकी संस्थान प्रमुख सहयोगी थे। परियोजना मे मुख्य रूप से सीताफल, बेर, आंवला एवं जामुन के तुडाई उपरान्त प्रबंधन एवं प्रसस्ंकरण के क्षेत्र मे विभिन्न तकनीकों का विकास किया गया है।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ ओ.पी पारीक, पूर्व निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने इस परियोजना के तहत सिताफल परिसंस्करण मे प्रशंसनीय कार्य एवं इस आधार पर विश्वविद्यालय को कृषि शिक्षा सम्मान प्राप्त करने के लिए बधाई दी।

उन्होने बताया कि आज खाद्य पदार्थो मे गुणवत्ता पर ध्यान देने कि आवश्यकता है जिससे उपभोगकर्ता को प्रसंस्करित पदार्थो मे अधिकतम पोषक तत्व मिल सके। उन्होने परियोजना का अधिकतम लाभ लेने के लिए फलों की समुचित तुडाई, भण्डारण, ग्रेडिंग, पल्प मे फ्लेक कि मात्रा एवं उचित मशीनों के विकास मे अनुसंधान कर्ताओं एवं उद्योगपतियों की सक्रिय भागीदारी बढाने पर जोर दिया।

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ.पी.गिल ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सिताफल के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन मे प्रशंस्नीय कार्य किया है परन्तु इसे वृहद स्तर पर अपनाने कि आवश्यकता है जिससे किसानों, उद्योगों, एन जी ओ. संस्थान के साथ ही उपभोक्ता को भी लाभ मिल सके उन्होने अपेक्षा की कि इस परियोजना के कार्य को ओर अधिक बढाने मे सभी का सहयोग अपेक्षित है जिससे इसका प्रभाव बडे स्तर पर पड सके।

निदेशक अनुसंधान डॉ.पी.एल. मालीवाल ने बताया कि इस परियोजना मे मुख्य रूप से सीताफल की प्रसस्ंकरण तकनीक को विकसित कर मूल्य श्रृंखला का विकास किया गया है तथा इस उपलब्धि द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय की पहचान बनी है। इस परियोजना में विकसित तकनीक को तीन विभिन्न प्रसंस्करण उद्योगों को एमओयू के माध्यम से हस्तांतरित भी किया गया है।

उद्यान विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के विभागाध्यक्ष डा. आर. ऐ. कौशिक ने बताया कि इस कार्यशाला मे विभिन्न वैज्ञानिक, उद्योगपति, कृषि अधिकारी राजस्थान सरकार, कृषि विज्ञान केन्द्र प्रभारी एवं किसान आदि ने भाग लिया।

इस अवसर पर जिला वन अधिकारी ओपी शर्मा ने उत्पाद के जैविक प्रमाणीकरण कि बात कही उद्योगपति नायक ने सिताफल प्रसंस्करण से तीन गुना अधिक लाभ प्राप्त करने एवं क्षेत्र के किसानो कालुराम, रत्नाराम एवं त्यागी ने परियोजना से मिली तकनिकि से अधिक लाभ प्राप्त करने के अनुभव बताए।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुनिल पारिक ने किया एवं धन्यवाद् डॉ. एस के शर्मा, क्षेत्रिय अनुसंधान निदेशक ने किया।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal

Tags