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विद्यापीठ में जारी दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार का समापन

"प्रबंधन से जुडे फाइनेंस, मार्केटिंग और अन्य क्षेत्रों में फंक्शनल मैनेजमेंट अनिवार्य है। उसके लिए भी एक लीडर का होना बेहद अनिवार्य है। जो फंक्शनल मैनेजमेंट से जुडे सारे तथ्यों को बारीकियों को समझे और परिस्थितियों के अनुसार क्रियान्वित करें" - यह कहना है रोहिलखंड विवि के कुलपति प्रो. पीके यादव का। वे राजस्थान विद्यापीठ की ओर से आयोजित दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार के समापन पर बोल रहे थे।

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विद्यापीठ में जारी दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार का समापन

“प्रबंधन से जुडे फाइनेंस, मार्केटिंग और अन्य क्षेत्रों में फंक्शनल मैनेजमेंट अनिवार्य है। उसके लिए भी एक लीडर का होना बेहद अनिवार्य है। जो फंक्शनल मैनेजमेंट से जुडे सारे तथ्यों को बारीकियों को समझे और परिस्थितियों के अनुसार क्रियान्वित करें” – यह कहना है रोहिलखंड विवि के कुलपति प्रो. पीके यादव का। वे राजस्थान विद्यापीठ की ओर से आयोजित दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार के समापन पर बोल रहे थे।

प्रो. यादव ने कहा कि फंक्शनल मैनेजमेंट के लिए जरूरी है कि लीडरशिप, और लीडरशिप के लिए जरूरी है, फंक्शनल मैनेजमेंट की बारीकियां की जानकारी होना। इस अवसर पर उन्होंने सेमिनार में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों से लीडरशिप के लिए आवश्यक तथ्यों की जानकारी ली।

सौराष्ट विवि की प्रो. दक्षा गुहिल ने बताया कि मार्केटिंग के अलग अलग प्रकारों के साथ उसके चरण भी होते हैं। ग्रामीण और शहरी क्षे़त्रों दोनों के तरीके और उनके प्रभाव भी अलग होते है। फंक्शनल मैनेजमेंट के लिए जरूरी है कि इन मार्केटिंग के फंडों को काफी महत्ता प्रदान की जाए।

विद्यापीठ में जारी दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार का समापन

विशिष्ट अतिथि प्रो. आरके बालिया तथा प्रो. संजय बियानी ने भी फंक्शनल मैनेजमेंट से जुडे विभिन्न विचार रखे। इस अवसर पर उन्होंने मानव संसाधन की भूमिका को भी स्पष्ट किया। आयोजन अध्यक्ष प्रो. एनएस राव ने बताया कि सेमिनार के इन दो दिनों 300 से अधिक प्रश्न पत्र प्रस्तुत किए गए, जो फंक्शनल मैनेजमेंट से जुडे हुए थे।

विद्यापीठ में जारी दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय सेमिनार का समापन

कार्यक्रम का संचालन आयेाजन सचिव डॉ हीना खान ने किया। धन्यवाद की रस्म डॉ नीरू राठौड ने ज्ञापित किया। इस अवसर डॉ डीएस चूंडावत, डॉ ललित पांडे, डा सीपी अग्रवाल, डॉ एसके मिश्रा, डॉ सुमन पामेचा, डॉ रचना राठौड, डॉ सुनीता तापडिया, डॉ शशि चित्तौडा सहित विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे।

इस दो दिवसीय अंतरराष्टीय सेमिनार में आए विशेषज्ञों ने विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किए। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार रहे
  • प्रबंधन शिक्षा को प्रासंगिक बनाना, ताकि वे अंतिम उपयोगकर्ता की मांग के अनुसार हो सके।
  • प्रबंधन शिक्षा में सूचना तकनीकी का यथोचित समावेश किया जाए। तथा कंप्यूटर आधारित उत्पादन प्रक्रिया के माध्यम से लागत में कमी कर लाभ का आंकडा बढाया जाए।
  • प्रबंधन शिक्षा के दष्टिकोण में परिवर्तन लाया जाए, वर्तमान में शिक्षा संस्थान कार्यात्मक प्रबंध ढांचे के अनुरूप भावी प्रबंधक का सजन कर रहे हैं। जबकि जरूरत इस बात की है कि हम प्रबंधकों के स्थान पर उद्यमियों का सजन करें।
  • स्पष्टतया शिक्षण संस्थानों को उद्यमिता विकास के लिए कार्य करना चाहिए, क्योंकि एक उद्यमी का गुण होता है जो अनेक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
  • वित्तीय प्रबंधन, मार्केटिंग तथा मानव संसाधन के प्रबंधन के क्षे़त्र में आने वाले नवीनतम एव आदर्श सिदृधांतों को अपनाया जाए।
  • कार्यात्मक प्रबंध की अपनी सीमाएं होती है, तथा हर प्रकार के उद्योग में इसे नहीं अपनाया जा सकता है। विभिन्न वैकल्पिक संगठनात्मक ढांचों में आज संगठनात्मक कुछ अवस्थाओं में अधिक उपयोगी है।

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