प्राकृतिक उत्पादों की प्रवृत्तियों के विकास के लिए समकालीन दृष्टिकोण
गीतांजली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी द्वारा आयोजित एक दिवसीय राश्ट्रीय सम्मेलन का समारोह 17 सितम्बर 2016 को गीतांजली सभागार में हुआ । यह कार्यषाला इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च एवं एसोसिएषन ऑफ फार्मास्यूटिकल टीर्चस ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान द्वारा प्रायोजित की गई थी जिसका विशय ’ प्राकृतिक उत्पादों की प्रवृत्तियों के विकास के लिए समकालीन दृश्टिकोण’ था
गीतांजली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समारोह 17 सितम्बर 2016 को गीतांजली सभागार में हुआ । यह कार्यषाला इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च एवं एसोसिएषन ऑफ फार्मास्यूटिकल टीर्चस ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान द्वारा प्रायोजित की गई थी जिसका विशय ’ प्राकृतिक उत्पादों की प्रवृत्तियों के विकास के लिए समकालीन दृष्टिकोण ’ था। इस कार्यशाला का शुभारंभ गीतांजली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी के डीन डॉ अशोक दशोरा ने किया । इस कार्यशाला में विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्य, आयोजन सचिव डॉ कल्पेश गौड़, फार्मेसी कॉलेज की समस्त फैकल्टी व विद्यार्थी मौजूद थे।
कार्यशाला के पहले व्याख्यान में रमन भाई पटेल कॉलेज ऑफ फार्मेसीए आनंद (गुजरात) के डॉ मनन रावल ने कहा कि 80 प्रतिशत फार्माकोटिल ड्रग्स नेचुरल ड्रग्स ही होती है और अधिक प्रभावी एवं सुरक्षित होती है । उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक संसाधनों में मौजूद यौगिक और हमारे शरीर के यौगिक सामान है। इसी क्रम में मोहनलाल सुखाडि़या युनिवर्सिटी के बोटनी विभाग के डॉ एस. एस. कटेवा ने देशी पौधों का चिकित्सकीय उपयोग के बारे में बात की । उन्होंने बताया कि रति पौधे के रंगीन बीजों को गर्भपात में इस्तेमाल किया जाता है । और कहा कि काली एवं सफेद मूंगफली के बीज दस्त को रोकने में भी फायदेमंद होते है।
अंतिम व्याख्यान निरमा युनिवर्सिटी, अहमदाबाद के डॉ विमल कुमार ने प्रस्तुत किया । उन्होंने कहा कि 60 से 80 प्रतिशत पारंपरिक दवाईयों का इस्तेमाल प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए किया जाता है । विशाक्त लिवर, डायबिटिज़, अस्थमा जैसी बिमारियों को हर्बल एवं आर्युवेदिक दवाईयां ही जड़ से खत्म करती है एलोपैथी में इसका कोई पूर्ण इलाज नहीं है। हर्बल एवं आर्युवेदिक दवाईयों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है । उन्होंने बताया कि सुपरा क्रिटिकल फ्लूयड टेक्नोलोजी से हर्बल ड्रग्स को बनाया जाता है जिसमें कोई अपशिष्ठ उत्पाद या हानिकारक प्रभाव नहीं होते है और इस तकनीक से बनी ड्रग्स अत्यंत ही प्रभावी होती है।
इस कार्यक्रम में 500 से अधिक फार्मेसी, फिजियोथेरेपी एवं मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया । गीतांजली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी के डीन डॉ अशोक दशोरा ने कहा कि यह कार्यशाला का उद्देष्य हर्बल एवं आर्युवेदिक टेक्नोलोजी और पौधों का चिकित्सकीय उपयोग के बारे में अवगत कराना था। कार्यक्रम का संचालन उदिचि कटारीया ने किया । डॉ अशोक दशोरा ने सभी का स्वागत व धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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