संयम से भ्रष्टाचार का खात्मा संभव : त्रिवेदी
सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई. वी. त्रिवेदी ने कहा कि, “व्यक्ति को आशावादी होना चाहिए। जहां आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ और आचार्य महाश्रमण जैसे संत हमें उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत आने वाले समय में विश्व को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। संयम से हम भ्रष्टाचार का खात्मा कर सकते हैं”।
सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई. वी. त्रिवेदी ने कहा कि, “व्यक्ति को आशावादी होना चाहिए। जहां आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ और आचार्य महाश्रमण जैसे संत हमें उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत आने वाले समय में विश्व को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। संयम से हम भ्रष्टाचार का खात्मा कर सकते हैं”।
वे जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा एवं सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के तत्वावधान में आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह के तहत रविवार को तेरापंथ भवन में भ्रष्टाचारमुक्त राष्ट्र की कल्पना विषयक आयोजित तृतीय व्याख्यानमाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के बाद आचार्य महाश्रमण सापेक्ष अर्थव्यवस्था पर जोर दे रहे हैं। युवा पीढ़ी को इस बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान कराने का प्रयास करें।
मुख्य वक्ता राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य परमेन्द्र दशोरा ने कहा कि आज के इस युग में न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और चौथा स्तम्भ मीडिया हमारे सामने है। आशा बचती है सिर्फ एनजीओ पर लेकिन पिछले कुछ दिनों में इन्होंने भी अपना विश्वास खो दिया। भारत भ्रष्टाचार का पर्याय नहीं है बल्कि कुछ भ्रष्ट लोगों की वजह से बदनाम है। आज भी अच्छे लोग बहुतायत में हैं लेकिन जरूरत सिर्फ अंदर के आदमी को जगाए रखने की जरूरत है। भ्रष्टाचारी को दंड संत देंगे। अगर भ्रष्ट धर्म के मार्ग पर चलने लग जाए तो कहीं भी अवांछित गतिविधियां नहीं होंगी। भगवान महावीर ने पांच महाव्रत दिए।
आचार्य तुलसी ने अणुव्रत से सरल धर्म की व्याख्या की। हर व्यक्ति के लिए नैतिक आचार संहिता दी। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान जैसे सशक्त उपक्रम हमारे पास हैं। भ्रष्टाचारमुक्त होने के लिए हमें स्वयं को प्रयास करने होंगे।
भूगोल विभाग के अध्यक्ष पी. आर. व्यास ने कहा कि राष्ट्र को समझने से पूर्व हम अपनी संस्कृति को समझें। हमारा खानपान, वेशभूषा, बोलचाल आदि को समझना जरूरी है। संस्कृति पर प्रहार होते हैं, तब हम व्यक्तिगत हो जाते हैं। समाज साथ होता है, तब समाज आगे बढ़ता है। व्यक्ति अकेले आगे नहीं बढ़ सकता। संकेत विद्यमान हैं। समझ में अंतर आ गया है। व्यक्तिगत जीवन से हटकर साम्प्रदायिकता का विकास करें। मानव धर्म एवं राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानें। स्वार्थ से उपर उठें तो भ्रष्टाचार अपने आप ही पीछे छूट जाएगा।
शासनश्री मुनिरवीन्द्र कुमार ने कहा कि सभी भ्रष्टाचार से पीडि़त हैं। भ्रष्टाचार के अनेक पहलू हैं। दृष्टि में जब तक अर्थ प्रधानता होगी, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। अर्थ आवश्यक है लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि अर्थ सिर्फ साध्य है साधन नहीं। समस्या इसलिए है कि हम अर्थ को साधन मान चले हैं। साधु के पास पैसा हो तो कौड़ी का और गृहस्थ के पास पैसा नहीं हो तो कौड़ी का। सारे सूत्र, ग्रंथ व पंथ में ही रह गए। जीवन व्यवहार में नहीं उतरे। भारतीय संस्कृति गौरवपूर्ण है। राम के राज्य में कितने रावण सुधरे।
व्यक्ति से समाज, समाज से राष्ट्र सुधरेगा। दूसरे को उपदेश हम भले ही देते हैं, लेकिन खुद को सुधारने की बात पर आंखें मूंद लेते हैं। मोह ने हमें मूढ़ बना रखा है। वोट बटोरने के लिए नेता लोग प्रलोभन देकर वोट देने को प्रेरित करते हैं। मतदाता सजग होकर मतदान करें। राजनीति बुरी नहीं लेकिन दूषित वातावरण बुरा है। कुर्सी और पद बड़े नहीं हैं बल्कि मानवता बड़ी है।
तपोमूर्ति मुनि पृथ्वीराज ने कहा कि अहंकार एवं ममकार का विसर्जन कर हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ सकते हैं। शिक्षा के बाद दीक्षा एवं फिर वापस शिक्षा। भ्रष्टाचार बाहर की यात्रा है। इससे मुक्त होकर व्यक्ति अंदर में स्थित हो सकता है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से मानव कल्याण की बात सोची। अणुव्रत का मतलब शांति से जीवनयापन। राजनीति में धर्मनीति आवश्यक है। धर्मनीति में राजनीति नहीं। प्रयोगों से परिवर्तन का रूपांतरण हो सकता है।
स्वागत भाषण देते हुए सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि पहली व्याख्यानमाला सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में हुई थी। दूसरी आचार्य महाप्रज्ञ विहार में हुई थी। इसी क्रम में यह तीसरी व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है।
आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह में वर्ष भर इसी प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन होगा।
नोखा मंडी से यहां पहुंची मुमुक्षु बहन गुणश्री के बारे में उन्होंने बताया कि बीकॉम एवं संस्कृत में एमए करने के बाद वर्ष 2007 में पारमार्थिक संस्था में दाखिला लिया। इसी वर्ष 22 जुलाई को प्रतिक्रमण का आदेश हुआ।
21 अगस्त को दीक्षा के आदेश के बाद 28 नवम्बर को बीदासर में उनकी दीक्षा हुई। मुमुक्षु बहन का उपरणा ओढ़ा साहित्य भेंटकर छगनलाल बोहरा, सुभाष सोनी, सुबोध दुग्गड़, शांतिलाल सिंघवी ने सम्मान किया।
इसके बाद मुमुक्षु बहन गुणश्री ने संक्षिप्त उदबोधन में कहा कि मनुष्य जीवन में संयम एक दुर्लभ क्षण है। संयम से भ्रष्टाचार एवं उस जैसी अनेक समस्याओं का समाधान संभव है। आज जो अभिनंदन मुमुक्षु का का हुआ है, वह मेरा नहीं वरन् त्याग व संयम का सम्मान है।
इससे पूर्व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने मंगलाचरण किया वहीं गीतिका सोनल सिंघवी, शशि चव्हाण एवं मंजू फत्तावत ने प्रस्तुत की। अतिथियों का उपरणा ओढ़ा साहित्य भेंटकर यशवंत कोठारी, मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी, महिला मंडल अध्यक्ष मंजू चौधरी ने सम्मान किया। आभार तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष धीरेन्द्र मेहता ने जताया। संचालन छगनलाल बोहरा ने किया।
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