पेंथर हमलों के कारणों व बचाव के प्रति जनजागरूकता पैदा करना जरूरी: भटनागर
पेंथर किसी भी मनुष्य पर जानबूझकर कभी भी हमला नहीं करता हैए वह अपने भोजन अथवा पानी की तलाश में ही इंसानी बस्तियों के पास आता है, ऐसे में पेंथर को उसके प्राकृतिक आवास में ही भोजन व पानी की स्थितियां तैयार करने तथा इंसानों को उससे पर्याप्त सुरक्षित दूरी बनाएं रखने के लिए जागरूकता पैदा करना ही सर्वतोप्रमुख आवश्यकता है।
पेंथर किसी भी मनुष्य पर जानबूझकर कभी भी हमला नहीं करता हैए वह अपने भोजन अथवा पानी की तलाश में ही इंसानी बस्तियों के पास आता है, ऐसे में पेंथर को उसके प्राकृतिक आवास में ही भोजन व पानी की स्थितियां तैयार करने तथा इंसानों को उससे पर्याप्त सुरक्षित दूरी बनाएं रखने के लिए जागरूकता पैदा करना ही सर्वतोप्रमुख आवश्यकता है।
यह विचार सोमवार को मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) राहुल भटनागर की अध्यक्षता में आयोजित एक बैठक दौरान वन्यजीव विशेषज्ञों व वन विभागीय अधिकारियों ने व्यक्त किए। बैठक में उदयपुर संभाग में बार.बार पेंथरों की अकाल मौतए पेंथरों द्वारा मनुष्यों पर हमला करने जैसी समस्याओं से निबटने के लिए चर्चा की गई।
मुख्य वन संरक्षक कार्यालय में आयोजित इस बैठक के आरंभ में भटनागर ने संभाग के विभिन्न जिलों के उप वन संरक्षकों से गत दिनों हुई घटनाओं के संबंध में जानकारी ली और उनके द्वारा की जा रही कार्यवाही के बारे में पूछा। उन्होंने समस्त उप वन संरक्षकों को घटनास्थलों की जीपीएस रीडिंग संकलित करने के निर्देश दिए और जिन घटनाओं में मानवीय मौत हुई है उनमें मुआवजा दिए जाने की प्रगति के बारे में पूछा।
बैठक में वाईल्डलाईफ इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. जस्टस जोसूवा ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया कि वन्यजीवों की इकोलोजी को समझना जरूरी हैए इनके व्यवहार में आए परिवर्तन और इससे पैदा हो रही स्थितियों से निबटने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों को अमल में लाने पर ही समाधान संभव है। उन्होंने पेंथर को इंसानी बस्तियों से दूर रखने के लिए उसके प्राकृतिक आवास में ही भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करने की बात प्रमुखता से रखी। इसी प्रकार डॉ. सतीश शर्मा ने भी बताया कि शोध और अब तक के अनुभवों के आधार पर भी स्पष्ट हो गया है कि पेंथर की पसंद में मानव है ही नहीं और वह यदि कोई हमला करता भी है तो वह मजबूरी में ही करता है।
बैठक में पशुपालन उपनिदेशक डॉ. ललित जोशी ने खरगोश पालन के लिए विभागीय योजना के बारे में जानकारी दी और इसके माध्यम से वन में खरगोशों को मुक्त करने का सुझाव दिया। पर्यावरण प्रेमी प्रदीप सुखवाल ने पेंथर को रेस्क्यू उपरांत मुक्त करने पर व्यवहार में आए परिवर्तन तथा मवेशियों के खुले में नहीं मिलने की स्थितियों को हमलों का कारण बताया तो वाईल्डलाईफ फोटोग्राफर व विशेषज्ञ शरद अग्रवाल ने खरगोश व अन्य जीवों को वन में मुक्त करने से पूर्व ग्रासलेण्ड विकसित करने व फलदार पौधों के रोपण की आवश्यकता जताई।
बैठक में वाईल्डलाईफ इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. जस्टस जोसूवा ने कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में पेंथर की भोजन पद्धति पर उनके द्वारा किए गए शोध में आए आंकड़ों को बताते हुए कहा कि उनके अध्ययन में पेंथर की पहले स्थान पर पसंद लंगूर पाई गई जो 40 प्रतिशत थी वहीं दूसरे स्थान पर चूहे थे जो कि 15 प्रतिशत पाए गए। उन्होंने वर्तमान में जंगलों में बड़े प्राणियों के साथ ही छोटे वन्यजीवों की कमी से ही पंेथरों की इन घटनाओं का कारण बताया। अपनी अस्वस्थता के कारण बैठक में नहीं पहुंच पाए वरिष्ठ वन्यजीव व पक्षी विशेषज्ञ डॉण् रज़ा तहसीन ने लिखित में अपने सुझाव भेजे जिन्हें बैठक में पढ़कर सुनाया गया। डॉण् तहसीन के अनुसार पंेथर को इंसानी बस्तियों से दूर रखने के लिए वन क्षेत्र में 3 से 5 हेक्टर की बाड़ाबंदी करते हुए ग्रासलेण्ड को विकसित किया जावे तथा इसमें खरगोशों को छोड़ दिया जावे जो पेंथर को प्राकृतिक आवास में भोजन उपलब्धता का आधार बनेंगे।
इसी प्रकार उन्होंने चिंकाराव काले हिरणों को इन क्षेत्रों में मुक्त करनेए हर्जाने की प्रक्रिया के सरलीकरण करनेए पेंथर के हमले में मृत पशुओं तथा रिहायशी इलाके में प्राकृतिक मृत्यु प्राप्त पशुओं के शरीर को पेंथर के क्षेत्र में ही छोड़ देने तथा ग्राम सभाओं के माध्यम से इस प्रकार की जागरूकता पैदा करने संबंधित सुझाव दिए।
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