जल ग्रहण क्षेत्र में हुए नुकसान का खामियाजा झीलों व तालाबों को


जल ग्रहण क्षेत्र में हुए नुकसान का खामियाजा झीलों व तालाबों को

फतहसागर व मदार तालाब के केचमेंट में हाईवे निर्माण के दौरान प्राकृतिक बरसाती नालों को पाटने से इन झीलों में पानी की आवक प्रभावित हुई है। इसी प्रकार नदियों में रेत खनन, उनके किनारों पर आबादी विस्तार एंव अतिक्रमण इत्यादि भी विनाश के संकेत है।

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फतहसागर व मदार तालाब के केचमेंट में हाईवे निर्माण के दौरान प्राकृतिक बरसाती नालों को पाटने से इन झीलों में पानी की आवक प्रभावित हुई है। इसी प्रकार नदियों में रेत खनन, उनके किनारों पर आबादी विस्तार एंव अतिक्रमण इत्यादि भी विनाश के संकेत है।

उत्तराखंड के हालात सभी ने देखे है। यमुना में ऐसा होने पर दिल्ली पर भी संकट होगा। उक्त विचार डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट व झील संरक्षण समिति के सांझे में हुई बैठक में उभर कर सामने आये।

झील संरक्षण समिति के सह सचिव अनिल मेहता ने कहा कि राज्य सरकार के विभिन्न आदेशो व उच्च न्यायलय के निर्देशों के अनुसार प्राकृतिक नालो में भराव, डायवर्जन, अतिक्रमण इत्यादि दंडनीय है। प्रशासन व एन एच ए आई को इन नालो को पुनः मूल स्वरुप में लाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

झील संरक्षण समिति के सचिव डॉ तेज राज़दान ने कहा कि आयड नदी, सीसारमा नदी व् समस्त प्राकृतिक नालों व उनके किनारों को इमारतों के निर्माण से मुक्त रखना जरुरी है। बनास व जयसमंद को जाने वाले नदी नालों से बेतरतीब रेत खनन पर अंकुश लगाना चाहिए।

चाँद पोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि नालो व नदियों के किनारों पर अतिक्रमण व मूल प्रवाह मार्ग में बाधा के दुष्परिणाम उत्तराखंड देख चुका है। प्राकृतिक प्रवाह मार्ग में बाधा व् पानी का बेतरतीब फैलाव से उदयपुर भी अछूता नहीं रहा है; कई कॉलोनी में हुए जल भराव को बहुत समय नहीं बिता है।

ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि उदयपुर जिले व राजस्थान की समस्त नदियों की सतही व भू जल प्रवाह व्यवस्था को बनाये रखने के लिए नदियों को रेत मुक्त करने की कवायद जरुरी है। संवाद का सचालन नितेश सिंह ने किया।

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