क्षायिक ज्ञान पैदा नहीं होता: आचार्य कनकनन्दी जी


क्षायिक ज्ञान पैदा नहीं होता: आचार्य कनकनन्दी जी

क्षायिक ज्ञान का स्वरूप व फल बताते हुए आचार्य श्री कनकनन्दी जी ने गुरुदेव ने जिज्ञासु जनों को बताया कि आत्मा विकार रहित स्वाभाविक आनन्दमई एक सुख स्वभाव के अनुभव से शून्य होता हुआ उदय में आये हुए अपने कर्म को ही अनुभव कर रहा है।

 

क्षायिक ज्ञान का स्वरूप व फल बताते हुए आचार्य श्री कनकनन्दी जी ने गुरुदेव ने जिज्ञासु जनों को बताया कि आत्मा विकार रहित स्वाभाविक आनन्दमई एक सुख स्वभाव के अनुभव से शून्य होता हुआ उदय में आये हुए अपने कर्म को ही अनुभव कर रहा है।

ज्ञान का अनुभव नहीं कर रहा है। अथवा दूसरा व्याख्यान यह है कि यदि ज्ञाता प्रत्येक पदार्थ रूप में परिणमन करके पीछे पदार्थ को जानता है तब पदार्थ अनन्त हैं इससे सर्व पदार्थ का ज्ञान नहीं हो सकता। अथवा तीसरा व्याख्यान यह है कि जब छुद्मस्थ अवस्था में यह बाहर के ज्ञेय पदार्थों का चिन्तवन करता है तब राग-द्वेषादि रहित स्वसम्वेदन ज्ञान इसके नहीं है।

अत: स्वसम्वेदन ज्ञान के अभाव में क्षायिक ज्ञान भी पैदा नहीं होता है ऐसा अभिप्राय है।

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