आर्थिक सुधारों के लिये विकासशील योजनाओं का संचालन करना होगा – राज्यपाल
राज्यपाल मार्गरेट आल्वा ने कहा कि हमें गरीबी हटाने एवं आर्थिक सुधार लाने के लिये विकासशील योजनाओं को अपनाने के साथ-स
राज्यपाल मार्गरेट आल्वा ने कहा कि हमें गरीबी हटाने एवं आर्थिक सुधार लाने के लिये विकासशील योजनाओं को अपनाने के साथ-साथ उन्हें बेहतर तरीके से संचालित करना होगा।
राज्यपाल शनिवार को मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के 21वें दीक्षान्त समारोह को संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि दुनिया में फेन्च क्रांति, चीन की लाल क्रांति और कई जगह औद्योगिक क्रांतियॉ हुई लेकिन आज हम लोग सूचना क्रांति के दौर में है। इस क्रांति ने ना केवल आर्थिक जगत को प्रभावित किया है, बल्कि सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य को भी बदल दिया हैं।
उन्होंने आदर्श शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो मानव को आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव के साथ ही तकनीकी बदलाव से भी जोडे रखें।
उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि पुरानी मान्यताओं तथा अंधविश्वासों से बाहर निकल कर नए और स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर हों। उन्होंने युवाओं से कहा कि आप लोग ही भविष्य के शिक्षित, जागरुक और ऊर्जावान नेता हो जो आने वाली पीढी को नेतृत्व देंगे।
राज्यपाल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण करते हुए कहा कि अहिंसा पूर्ण समाज की जरुरत है। उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक हो या सम्राट अकबर हर दौर में शासकों ने अहिंसा और सहिष्णुता की बात कही। गांधीजी ने इसी को आजादी आंदोलन में हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। आज हमें गांधीजी से सीखने और उनके बताए मूल्यों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं के सामने चुनौतियॉ भी गिनाई।
उन्होंने कहा कि हम सदियों की गरीबी से बाहर निकलने के दौर में है। सामाजिक समरसता को खतरे में डालने वालों से निपटना भी एक चुनौती वाला काम हैं। युवाओं को भविष्य की ओर ब$ढाने के दौर में इस तरह की कई चुनौतियां है जिसे वे सूचना क्रांति के जरिए हल कर सकते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि अब रोटी, कपडा, मकान से आगे बढकर हम बिजली, सडक और पानी की बात करने लगे हैं। हम लोग मिश्रित अर्थव्यवस्था में जीते हैं। हमें आज गरीब, भूमिहीन आदिवासियों, महिलाओं और अन्य पिछडे तबकों के उत्थान की बात करनी होगी।
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया के कार्यकाल की तारीफ की तथा उन्हें एक बेहतरीन प्रशासक बताया। आल्वा ने कहा कि विद्यार्थियों को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील बनना होगा, साथ ही संख्या के स्थान पर गुणवत्ता की बात करनी होगी तभी शिक्षित वर्ग को उनकी प्रतिभा का सही सम्मान मिल सकेगा।
दीक्षान्त वक्तव्य दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.दिनेश सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि उपाधी मिल जाने से ही व्यक्ति सिद्घ नहीं हो जाता है, बल्कि मानवीय मूल्यों की स्थापना, उद्देश्यों के प्रति सर्तक रहना और अपने गुणों से देश की सेवा करने वाला ही सिद्घ होता है। उन्होंने कहा कि अहंकार को त्याग कर शिक्षा को धर्म समझते हुए आगे बढेंगे तो यही धर्म आपको ईश्वर तक ले जाएगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई.वी. त्रिवेदी ने सभी का स्वागत किया तथा पिछले एक वर्ष के दौरान प्राप्त हुई विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
राज्यपाल ने दीक्षान्त समारोह में विभिन्न संकायों में अव्वल रहे 46 विद्यार्थियों को स्वर्णपदक प्रदान किए वहीं कुल 70 विद्यार्थियों को डिग्रियां वितरित की गई। इसमें विज्ञान में 14, सामाजिक विज्ञान में 14, मानविकी में 18, वाणिज्य में 12, प्रबंध अध्ययन में 4, विधि में 2 तथा शिक्षा संकाय में 6 विद्यार्थियों को उपाधियॉ दी गई।
समारोह का समन्वय रजिस्ट्रार एल.एन.मंत्री ने किया जबकि डॉ.कनिका शर्मा व डॉ.सीमा जालान ने संचालन किया।
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