
कार्तिक मास की पूर्णिमा सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी जाती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था, तबसे इस दिन स्नान और दान की अधिक महत्ता हैं। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं। संध्या के समय में मंदिर, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पोधों के पास और गंगा में दीप जलाए जाते हैं। यह महिना शरद पूर्णिमा से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। माना जाता है कि इस एक महीने में अगर इन पवित्र स्थान जैसे पुष्कर, गंगा, द्वारका, पूरी और मथुरा में स्नान करने से पुण्य मिलता है और सारे पापों का नाश होता है।
उदयपुर में भी लोगों ने कार्तिक पूर्णिमा की पूरी भक्ति भाव से सूर्यदय से पहले स्नान कर पूजा की और शाम होते ही घाट पर दीप जलाए गए। इसी के चलते कमला देवी वैष्णव का कहना है कि कार्तिक पूर्णिमा को अधिक महत्वता वैष्णव धर्म से ही मिली हैं और इस दिन श्रदालु घनघोर घाट पर सुबह स्नान करते हैं और महिलाएं स्नान के बाद भगवान शिव पथवारी की पूजा करती हैं और उसके बाद सभी महिलाएं मिल कर कथा करती हैं। उन्होंने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा की पूजा यहाँ गणगौर घाट पर सदियों से लोग करते आ रहे हैं। पूजा के दौरान 35 फल, सुपारी, पंचमेवा और खीर का भोग लगा कर प्रसाद लिया जाता हैं। इसमें कई लोग शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक 1 महीने का व्रत भी रखते हैं।