दी कलचरल रॉन्देवू के कलम सीरीज के अंतर्गत लेखक अनंत विजय से संवाद
दी कलचरल रॉन्देवू के कलम सीरीज के अंतर्गत प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से होटल रेडिसन ब्लू में लेखक अनंत विजय से कल्चरल रॉन्देवू की श्रद्धा मुर्डिया ने साहित्य, पत्रकारित
दी कलचरल रॉन्देवू के कलम सीरीज के अंतर्गत प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से होटल रेडिसन ब्लू में लेखक अनंत विजय से कल्चरल रॉन्देवू की श्रद्धा मुर्डिया ने साहित्य, पत्रकारिता और राजनीती से लेकर सिनेमा पर संवाद किया गया। लेखक और पत्रकार अनंत विजय दैनिक जागरण के नियमित स्तम्भकार है एवं उन्होंने हाल ही में एक किताब ‘विधान का विन्यास’ भी लिखी है जो की अलग अलग महापुरुषों की आत्मकथा का संकलन है। उनकी सिनेमा पर लिखी किताब ‘बॉलीवुड सेल्फी’ बेस्टसेलर रही है। 2014 के आम चुनाव पर भी उन्होंने ‘लोकंतंत्र की कसौटी’ नामक किताब लिखी है। इन दिनों वे ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ नामक किताब पर लेखन कर रहे है।
उनसे पूछे एक सवाल के जवाब में उन्होंने भाषा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा की मातृभाषा को बचाने के लिए हमें अपने बच्चो को भाषा का संस्कार देना होगा, वो अंग्रेजी का बहुत सम्मान करते है क्योंकि अंग्रेजी रोज़गार की भाषा है लेकिन इसकी फसल भारतीय भाषाओ की कब्र पर नहीं लहलहानी चाहिए। हिंदी हमारे दिल के बहुत करीब है, लेकिन अंग्रेजी एक साम्राज्य्वादी भाषा है जो अपने साये में किसी और भाषा को पनपने नहीं देती और अन्य भाषाओ को आपस में लड़वाती है, हिंदी को राजस्थानी से , सिंधी से, गुजराती से आदि , भाषा का सर्वाधिक नुक्सान कान्वेंट स्कूलों ने किया है, बच्चो को न तो वो अंग्रेजी सीखा पाए और न ही हिंदी सीखा पाए।
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की हिंदी पट्टी के लोग लेखन में पिछड़ रहे है क्युकी वह शोध नहीं करते। इसी तरह उन्होंने मौजूदा सरकार पर आरोप लगाया की उन्होंने संस्कृति के क्षेत्र में कोई कार्य नहीं किया। जिस तरह पूर्व में वामपंथी नज़रिये के चलते भारतीय संस्कृति पर बात करने वालो को संघी कहकर नकार दिया जाता था, ठीक उसी तरह आज के दौर में लोग सत्ता की निगाह में आने के लिए कृष्ण, राम, महाभारत आदि पर लिख बोल रहे है।
लेखन अनंत विजय ने कहा की हमारा समाज व्यक्ति पूजा की हद में हारे हुए नायको की भी गुणगान करने से नहीं चुकता। हालाँकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। इस पर मौजूद श्रोता रिद्धिमा खमेसरा ने असहमति जताते हुए कहा की हारे हुए नायको ने मूल्यों के लिए अपनी क़ुरबानी दी इसलिए वह सम्मान के काबिल है। जिस पर लेखक ने कहा की हमे हारे हुए नायको की कूटनीति ने क्या कमी रही है वह भी इतिहास में बताना चाहिए।
अनंत विजय ने कहा की कोई भी लेखक या पत्रकार अपने आप में पूर्ण नहीं होता। पूर्णतया लेखक के लिए घातक है ,यदि कोई लेखक अपने आप को पूर्ण मानता है तो समझ लेने चाहिए की उनकी लेखन क्षमता समाप्त हो चुकी है। लेखक के हिंदी साहित्य को सिनेमा पर न लिखने पर आड़े हाथो भी लिया। उन्होंने कहा की आज भी हिंदी साहित्य में सिनेमा पर लिखने वालो को हिकारत की नज़र से देखा जाता है। हिंदी साहित्य जगत को ब्रॉड माइंडेड बनना होगा। हिंदी के लेखक अपने आप को तानाशाह समझते है कि जो उसने कह दिया बस वही अंतिम सत्य है इसलिए आज तक हिंदी की कोई किताब बेस्ट सेलर नहीं बन पायी।
एक अन्य श्रोता के सवाल के जवाब में उन्होंने प्रेस को ‘presstitue’ कहने पर आपत्ति जताते हुए कहा की हालाँकि कुछ लोग हो सकते है लेकिन कुछ लोगो की वजह से सभी पत्रकारो को बदनाम नहीं करना चाहिए। पत्रकारों को भी सिर्फ इन्फोर्मटिव होना चाहिए ना कि जज बनकर फैसला सुनाना चाहिए। उनका काम सिर्फ सुचना देना है सही गलत का फैसला जनता खुद कर लेगी।
कार्यक्रम का संचालन श्रद्धा मुर्डिया ने किया था एवं कार्यक्रम में प्रभा खेतान फाउंडेशन की स्वाति अग्रवाल, रिद्धिमा खमेसरा, कनिका कनोडिया आदि मौजूद रहे।
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