मेवाड़ वंश परम्परा के अनुरूप अश्व पूजन की परम्परा का निर्वहन


मेवाड़ वंश परम्परा के अनुरूप अश्व पूजन की परम्परा का निर्वहन

अश्व पूजन की परम्परा का निर्वहन किया भंवर बाईसा मोहलक्षिका कुमारी मेवाड़ ने 

 
मेवाड़ वंश परम्परा के अनुरूप अश्व पूजन की परम्परा का निर्वहन
अश्वों को पारम्परिक तरीकें से नखशिख आभूषण, कंठी, सुनहरे छोगें, मुखभूषण, लगाम, चवर आदि से शृंगारित कर पूजन में लाया गया।

उदयपुर, 24 अक्टूबर 2020 । अश्विन शुक्ल नवरात्रि की नवमीं पर मेवाड़ वंश परम्परा के अनुरूप सम्पन्न हुई ‘अश्व पूजन’ की अनवरत परम्परा। इस वर्ष भंवर बाईसा मोहलक्षिका कुमारी जी मेवाड़ द्वारा पुरोहितजी व पण्डितों के मंत्रोच्चारण के साथ ‘लीला की पायगा’ में अश्व पूजन किया गया।

महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि इस उत्सव पर कोरोना महामारी के कारण सामाजिक दूरी आदि का विशेष ध्यान रखते हुए अश्व पूजन की परम्परा को पूर्ण किया। अश्वों को पारम्परिक तरीकें से नखशिख आभूषण, कंठी, सुनहरे छोगें, मुखभूषण, लगाम, चवर आदि से शृंगारित कर पूजन में लाया गया।

मंत्रोंच्चारण के साथ भंवर बाईसा मोहलक्षिका कुमारी जी मेवाड़ ने पूजन में सुसज्जित नागराज, अश्वराज व राजमुकुट अश्वों पर अक्षत, कुंकुम, पुष्पादि चढ़ाकर आरती की गई। पूजन के साथ अश्वों को भेंट में आहार एवं वस्त्रादि के साथ ही ज्वारें धारण करवाई गई। 
 

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