धर्म में मत भेद हो लेकिन मन भेद नहीं: मुनि प्रसन्न सागरजी


धर्म में मत भेद हो लेकिन मन भेद नहीं: मुनि प्रसन्न सागरजी

“मन्दिर तुम्हारा ही प्रतिरूप है। पद्मासन में तुम्हारी मुद्रा मन्दिर की ही प्रतिकृति है। जैसे आलथी-पालथी के जैसा चबूतरा, घर जैसा चबूतरे पर मन्दिर का गोल कमरा, सिर जैसा गोल गुम्बज, जुड़े जैसा कलश, कान और आंख जैसी खिड़कियां, मुख जैसा दरवाजा, आत्मा जैसी मूर्ति और मन जैसा पुजारी की तरह तुम्हारी देह मन्दिर में विदेह परमात्मा बैठा है। उस परमात्मा को पहचानना ही इस देह मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा है।“ - उक्त विचार अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागरजी महाराज ने सर्वऋतु विलास स्थित मन्दिर के अन्तर्मना सभागार में आयोजित प्रगात:कालीन धर्मसभा में रविवार को घर से मन्दिर तक की यात्रा विषय पर विशेष प्रवचनों में व्यक्त किये।

 

धर्म में मत भेद हो लेकिन मन भेद नहीं: मुनि प्रसन्न सागरजी

“मन्दिर तुम्हारा ही प्रतिरूप है। पद्मासन में तुम्हारी मुद्रा मन्दिर की ही प्रतिकृति है। जैसे आलथी-पालथी के जैसा चबूतरा, घर जैसा चबूतरे पर मन्दिर का गोल कमरा, सिर जैसा गोल गुम्बज, जुड़े जैसा कलश, कान और आंख जैसी खिड़कियां, मुख जैसा दरवाजा, आत्मा जैसी मूर्ति और मन जैसा पुजारी की तरह तुम्हारी देह मन्दिर में विदेह परमात्मा बैठा है। उस परमात्मा को पहचानना ही इस देह मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा है।“ – उक्त विचार अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागरजी महाराज ने सर्वऋतु विलास स्थित मन्दिर के अन्तर्मना सभागार में आयोजित प्रगात:कालीन धर्मसभा में रविवार को घर से मन्दिर तक की यात्रा विषय पर विशेष प्रवचनों में व्यक्त किये।

मुनिश्री ने कहा कि जीवन पृष्ठों पर कुछ ऐसा लिखा जाए जो पवित्र ग्रन्थों के पृष्ठों पर पढ़ा जाए। एक बालक से एक बार प्रश्न पूछा गया कि परमात्मा कितना बड़ा है तो उसने दोनों हाथ फैला कर बताया कि इतना बड़ा है, अर्थात जिसके जीवन में परमात्मा जितना समा जाए उतना ही बड़ा है।

धर्म में मत भेद हो लेकिन मन भेद नहीं: मुनि प्रसन्न सागरजी

भगवान कहां पर है- मन्दिर में, मस्जिद में, चर्च में या गुरूद्वारे में, तो उसका जवाब था कि भगवान खोजने से नहीं मिलते। क्योंकि जो खुद के पास है उसे खोजने की आवश्यकता नहीं होती है। परमात्मा तो हमारी आत्मा में सदा ही विराजमान होता है।

मुनिश्री ने बताया कि आप भी यात्रा पर हो और सन्त भी यात्रा पर है, तुम्हारी यात्रा घर से श्मशान घाट पर जाकर समाप्त होती है और सन्त की यात्रा मन्दिर से मोक्ष पर जाकर खत्म होती है। यदि तुमने घर से मन्दिर तक जाने का मन बनाया और तन शुद्धि, मन शुद्धि तन्मयता एवं आनन्द के साथ मन में श्रद्धा भाव रखते हुए पूरी तल्लीनता सहित मंदिर जाकर परमात्मा की आराधना करने से अंसख्य उपवास करने का फल प्राप्त होता है।

उन्होंने ने कहा कि अपने बच्चों को नैतिकता एवं धार्मिकता के अच्छे संस्कार देवें। बच्चे सिखाने से नहीं दिखाने से सीखते है। जैसा आचरण तुम्हारा होगा, बच्चे भी वैसा ही करेंगे।

मुनिश्री ने बताया कि काम वासना से जिनका मन मलिन है, वे परमात्मा की सच्ची पूजा भक्ति नहीं कर सकते, मन की पवित्रता ही मुक्ति का द्वार खोलती है। भारतीय संस्कृति में चार पुरूषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उल्लेख है। प्रारम्भ में धर्म और अंत में मोक्ष पुरूषार्थ को रखा है। यह क्रम अत्यन्त महत्व रखता हुआ संकेत देता है कि अर्थ पर धर्म का नियंत्रण और काम पर मोक्ष का नियंत्रण होना चाहिए। यदि धर्म और मोक्ष के मध्य अर्थ और काम तत्व प्रवाहित होते है, तब तो ठीक हैं, लेकिन जब अर्थ और काम तत्व, धर्म और मोक्ष की उपेक्षा और अवज्ञा करके स्वच्छन्द होकर चलता है तो जीवन की साधना समाप्त हो जाती है।

मुनिश्री कहा कि जीवन में करूणा और मैत्री का विश्ïवव्यापी संगीत गूंजना चाहिये, हमें जीवन को हथियारों और क्रूरता की प्रयोगशाला बनाने की अपेक्षा, सुगन्धित फूलों की क्यारी बनाना चाहिये, जिससे जीवन अपने लिये और जग के लिये सुरभित हो। भगवान महावीर ने कहा था – जीयो और जीने दो, बुद्ध ने कहा बैर से बैर कभी शान्त नहीं होगा, जीसस ने कहा प्रेम ही परमात्मा है, मोहम्मद और गुरू नानक का भी यही संदेश है।

भारत एक धर्म प्राण देश है, यहां कई सम्प्रदाय है, भिन्न-भिन्न आचार-विचार है, अलग-अलग जाति समुदाय, रहन-सहन, भाषाएं है, फिर भी यहां पर अनेकता में एकता और एकता में अनेकता के दर्शन होते है। इस देश में मतभेद होते है, लेकिन मनभेद नहीं होते और मैं भी तुमसे यही कहता हूँ, धर्म एक है, सम्प्रदाय अनेक है।

तुम्हारी पूजा पद्धति, धार्मिक अनुष्ठान, क्रियाओं में भेद हो सकता है, लेकिन भावों में भेद नहीं होना चाहिये। हमारे जीवन में मनभेद नहीं मतभेद हो तो कोई बुराई नहीं है, क्योंकि मनभेद आदमी को संबंधों और परमात्मा से दूर कर देता है।

प्रचार-प्रसार मंत्री महावीर प्रसाद भाणावत ने बताया कि इससे पूर्व मुनिश्री पीयूष सागर जी महाराज ने भी धर्म सभा को उद्बोधन देते हुए कहा कि प्रभु की सच्चे मन से प्रार्थना करने पर जीवन में सफलता मिलती है और तनाव दूर हो जाते है।

रविवार की धर्मसभा में अतिथि के रूप में वाणिज्य कर अधिकारी संजय कुमार विजयवर्गीय उपस्थित थे। रविवार का विशेष प्रवचन होने से काफी संख्या में श्रद्धालु आये थे, जिससे पण्डाल पूरा भर गया था।

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