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आरएनटी के डॉ. डी.सी. शर्मा का बेंगलुर में संबोधन

द इंडियन थायरॉयड सोसायटी (आईटीएस) ने 10वें सालाना कॉन्फ्रेंस ‘आईटीएससीओएन-2013’ में आज बेंगलुरु में गर्भावस्था, डिस्लिपिडेमिया और डिप्रेशन में थायरॉयड की गड़बड़ी के प्रबंधन के बारे में दिशानिर्देश पेश किए। ये दिशानिर्देश गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए थायरॉयड की गड़बड़ी के प्रबंधन के लिए हैं। ये दिशानिर्देश विकसित किए हैं वैज्ञानिक और चिकित्सकीय जानकारी उपलब्ध कराने वाली वैश्विक कंपनी एल्सवियर ने जिसे आईटीएस, एंडोक्राइन सोसायटी ऑफ इंडिया (ईएसआई), फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक, गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएस) और द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) का समर्थन प्राप्त है।

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आरएनटी के डॉ. डी.सी. शर्मा का बेंगलुर में संबोधन

द इंडियन थायरॉयड सोसायटी (आईटीएस) ने 10वें सालाना कॉन्फ्रेंस ‘आईटीएससीओएन-2013’ में आज बेंगलुरु में गर्भावस्था, डिस्लिपिडेमिया और डिप्रेशन में थायरॉयड की गड़बड़ी के प्रबंधन के बारे में दिशानिर्देश पेश किए। ये दिशानिर्देश गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए थायरॉयड की गड़बड़ी के प्रबंधन के लिए हैं। ये दिशानिर्देश विकसित किए हैं वैज्ञानिक और चिकित्सकीय जानकारी उपलब्ध कराने वाली वैश्विक कंपनी एल्सवियर ने जिसे आईटीएस, एंडोक्राइन सोसायटी ऑफ इंडिया (ईएसआई), फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक, गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएस) और द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) का समर्थन प्राप्त है।

इन दिशानिर्देश के विकास के लिए वित्तीय मदद एबट ने उपलब्ध कराई है। कांफेंस में एफओजीएस, बेंगलुर की अध्यक्ष डॉ. हेमा दिवाकर, आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर के एंडोक्राइनोलॉजी प्रमुख प्रो. (डॉ.) डी. सी. शर्मा, ईएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोचीन के डॉ. आर वी जयकुमार, ईएसआई इलाहाबाद की अध्यक्ष डॉ. सरिता बजाज, एपीआई के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ शशांक जोशी तथा आयोजन समिति के चेयरमैन डॉ. के एम प्रसन्ना कुमार भी मौजूद थे।

आरएनटी के डॉ. डी.सी. शर्मा का बेंगलुर में संबोधन

कॉन्फ्रेंस में उदयपुर के प्रो. (डॉ.) डी. सी. शर्मा ने कहा कि युवतियों में थायरॉयड की कमी अनियमित मासिक धर्म और बांझपन का प्रमुख कारण है। इसकी वजह से बार-बार गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है। इन लक्षणों की अक्सर उपेक्षा की जाती है लेकिन यदि समय पर निदान हो जाए तो थाइरॉक्सिन रिप्लेसमेंट से इनका आसान उपचार मुमकिन है।

थायरॉयड की कमी और गर्भावस्था के लिए दिशानिर्देशों के तहत गर्भवती महिलाओं की पहली एंटीनेटल जांच के दौरान ही उनका टीएसएच स्तर मापना, जिससे हाइपोथायरॉयडिज्म की जांच हो सके। थायरॉयड डिस्फंक्षन और डिस्लिपिडेमिया दिशानिर्देश के अनुसार हाइपोथायरॉयडिज्म के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां होने का जोखिम बढ़ जाता है क्योंकि इससे एलडीएल कॉलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है और उच्च रक्तचाप की समस्या भी। इसलिए सलाह दी जाती है कि चिकित्सक डिस्लिपिडेमिया के रोगियों में असामान्य थायरॉयड स्तर की जांच करें और उसी के अनुसार इलाज की सलाह दें।

थायरॉयड डिस्फंक्षन और डिप्रेशन दिशानिर्देश के अनुसार थायरॉयड की गड़बड़ी से जुड़ी एक समस्या डिप्रेशन भी है। इसलिए यह बेहद जरूरी कि डिप्रेशन के लिए रोगियों की जांच कर रहे चिकित्सक उन्हें टीएसएच टेस्ट कराने की सलाह दें, जिससे उनमें हाइपोथायरॉयडिज्म का पता चल सके।

एफओजीएस बेंगलुर की अध्यक्ष डॉ. हेमा दिवाकर ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरॉयडिज्म सबसे आम समस्या है और अक्सर इसकी जांच नहीं की जाती है। इस वजह से गर्भपात, मृत शिशु का जन्म, समय से पहले जन्म और प्लेसेंटल असामान्यताओं का जोखिम बढ़ जाता है, जो भ्रूण के संपूर्ण विकास पर असर डालता है। माता और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम गर्भवती महिलाओं में नियमित तौर पर थायरॉयड की जांच को प्रोत्साहित करें। दिशानिर्देश पहली एंटीनेटल विजिट के दौरान ही गर्भवती महिलाओं में टीएसएच स्तर की जांच करने की सिफारिश करते हैं।

आईटीएस के अध्यक्ष डॉ. आर वी जयकुमार ने कहा कि डिप्रेशन, कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों, उच्च कॉलेस्ट्रोल, ऑबेसिटी, ओस्टियोपोरोसिस, इनफर्टिलिटी और गर्भपात थायरॉयड से जुड़ी समस्याएं हैं और भारत में इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। थायरॉयड की गड़बड़ी की जांच और प्रबंधन के लिए तीन स्वतंत्र दिशानिर्देश जांच और इलाज में चिकित्सकीय समुदाय की मदद करेंगे। गर्भावस्था में समय पर थायरॉयड गड़बड़ी की जांच करना स्वस्थ गर्भधारण और बच्चे के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

ईएसआई इलाहाबाद की अध्यक्ष डॉ. सरिता बजाज ने कहा कि थायरॉयड हॉर्मोन का शरीर की प्रक्रियाओं पर काफी असर होता है और यह शरीर की कई महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं पर भी असर डाल सकता है। इस बारे में काफी कम लोग जानते हैं कि डिप्रेशन की समस्या भी हाइपोथायरॉयडिज्म से जुड़ी है। डिप्रेशन के शिकार सभी रोगियों में थायरॉयड की जांच के लिए परीक्षण होने चाहिए।

एपीआई के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ शशांक जोशी ने कहा कि बहुत से हाइपोथायरॉयड मरीजों में लिपिड संबंधी असामान्यताएं भी होती हैं जो सामान्य थाइरॉस्किन थेरेपी से दूर की जा सकती हैं। हाइपोथायरॉयडिज़्म के लिए आजीवन थाइरॉक्सिन थेरेपी की आवश्यकता होती है और यदि उस पर सही तरीके से नियंत्रण रखा जाए तो मरीज़ सामान्य जीवन बिता सकता है।

आयोजन समिति के चेयरमैन डॉ. के एम प्रसन्ना कुमार ने बताया कि इस कॉफेंस में देश भर से करीब 500 वक्ताओं और प्रमुख विचारकों ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने थायरॉयड की कमी से होने वाली विभिन्न बीमारियों, समय पर जांच और उसके कारण होने वाली जटिलताओं को रोकने के लिए उचित इलाज के बारे में बताया। आईटीएस ने वर्ष 2012 तक देशभर में विभिन्न जांच और शिक्षा कैंपों के जरिये करीब 12 लाख महिलाओं में थायरॉयड की कमी का पता लगाया है।

डॉ. शर्मा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कांफ्रेंस में ईएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोचीन के डॉ. आर वी जयकुमार ने वर्ष 2013-14 के लिए डॉ. डी.सी. शर्मा को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य मनोनीत किया है।

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