रंगशाला में नाटक ‘‘बेचारी अमृता’’
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘‘रंगशाला’’ में रविवार सौरभ श्रीवास्तव के निर्देशन में मंचित नाटक ‘‘बेचारी अमृता’’ में दर्शकों के लिये एक अजब रोमांच देखने को मिला जिसने दर्शकों को रोमांचित करने के साथ मानेरंजन भी करवाया।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘‘रंगशाला’’ में रविवार सौरभ श्रीवास्तव के निर्देशन में मंचित नाटक ‘‘बेचारी अमृता’’ में दर्शकों के लिये एक अजब रोमांच देखने को मिला जिसने दर्शकों को रोमांचित करने के साथ मानेरंजन भी करवाया। शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित रंगशाला में जयपुर के कलाकारों द्वारा प्रसिद्ध कथाकार नोवाल कावर्ड की कहानी ‘‘ब्लाइंड स्पिरिट’’ पर आधारित तथा रंगकर्मी व पुलिस अफसर सौरभ श्रीवास्तव द्वारा अनुदित व निर्देशित नाटक ‘‘बेचारी अमृता’’ की सशक्त प्रस्तुति ने एक ओर जहां दर्शकों का मनोरंजन किया वहीं दूसरी ओर नाटक में ‘अवांछित’ की उपस्थिति दर्शकों के लिये मनोरंजक रही। प्रस्तुत नाटक में संजीव तंत्र मंत्र शक्ति पर अपने उपन्यास को लिखने के लिये एक तांत्रिक मधुमालती को डिनर पर बुलाता है तथा मधु मालती अपनी दैविक शक्तियों से आत्माओं का आव्हान करती है इसी दौरान संजीव को एक आवाज़ सुनाई देती हो जो उसके अलावा वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति डॉक्टर, उसकी बीवी या उसकी अपनी बीवी को सुनाई नहीं देती। घबराहट में तंत्र साधना समाप्त हो जाती है। इसके बाद संजीव को पता चलता है कि उसकी मृत पत्नी की आत्मा उसके घर में आ कर रहने लगती है।
इस बात पर कोई विश्वास नहीं करता संजीव की बीवी उसे बार-बार विश्राम करने को कहती है किन्तु संजीव हर बार टालने की कोशिश करता है। इधर उसकी मृत पत्नी अमृता की आत्मा समय-समय पर उसके पास आती है दोनों में वार्तालाप भ्ज्ञी होता है। जबकि उसकी पत्नी इसे वहम मानती है। इस दौरान संजीव व उसकी पत्नी पत्नी के बीच हुए संवाद दर्शकों के लिये खासे मनोरंजक रहे। कुल मिला कर नाटक बेचारी अमृता दर्शकों के लिये एक मनोरंजक प्रस्तुति रही। संजीव के किरदार में स्वयं सौरभ श्रीवास्तव ने अपने स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों पर छाप छोड़ी। वहीं अमृता का किरदार निभा रही कलाकार ने अपने अभिनय से दर्शको को प्रभावित किया। नाटक में आत्माओं के आव्हान वाला दृश्य तथा अमृता का मंच पर आगमन खासा रोमांचकारी दृश्य बन सका। नाटक में प्रकाश व्यवस्था उत्कृष्ट बन सकी वहीं निर्देशक कलाकारों से चरित्रानुकूल अभिनय करवाने में सफल हो सके।
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