कृषि नीतियों के कारण देश बना आत्मनिर्भर- प्रो. शीला भल्ला
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं भारतीय कृषि विपणन समिति (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय 29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन के दूसरे दिन का प्रारम्भ गुरुवार को आरसीऐ सभाग
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं भारतीय कृषि विपणन समिति (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय 29 वें राष्ट्रीय कृषि विपणन सम्मेलन के दूसरे दिन का प्रारम्भ गुरुवार को आरसीऐ सभागार में कृषि मूल्य एवं नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस. एस. आचार्य के विशिष्ट व्याख्यान के साथ हुआ।
तत्पश्चात तीन समानांतर तकनीकी सत्रों मे देश के विभिन्न स्थानों से आऐ कृषि अर्थशास्त्रियों, विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों ने कृषि एवं िमछली व उनके उत्पादों के प्रबंधन और विपणन के विभिन्न पहलुओं पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
डॉ. एस. एस. आचार्य का व्याख्यान ‘‘कृषि विपणन सुधारों व शोध के आयामांे के द्वितीय चरण‘‘ पर केंद्रित रहा जो कि सन् 2000 से अपनाऐ जा रहे हैं। आपने कहा कि बदलते सामाजिक व वैश्विक परिदृश्य को देखते हुऐ हमे अपनी कृषि उत्पादन व विपणन नीतियो मे आवश्यक बदलाव व सुधार लाने होंगें।
डॉ. आचार्य ने बताया कि कृषि नीतियेां के निर्माण मेे कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन, खाद्य प्रसंस्करण, खाद्य भण्डारण, उचित ग्रेडिंग, गुणवत्ता नियंत्रण, आयात- निर्यात, बाजार आसूचना तंत्र के विकास, पब्लिक सप्लाई सिस्टम के सुगठन, विपणन सुविधाओं के विकास, व सरकारी- अर्धसरकारी संस्थाओं की उचित भागीदारी पर विशेष रुप से ध्यान देने एवं शोध करने की महती आवश्यकता है।
इस अवसर पर कृषि अर्थशास्त्र विभाग की ओर से डॉ. एस. एस. आचार्य को विशिष्ट सम्मान से नवाजा गया। कार्यक्रम मे ड़ॉ. टी. हक् व कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ड़ॉ एस. आर. मालू भी उपस्थित थे।
सम्मेलन के दूसरे दिन के व्याख्यानों का मुख्य आकर्षण जे एन यू के अर्थशास्त्र अध्ययन एवं योजना केन्द्र की एमेरीटस प्रोफसर डॉ. शीला भल्ला का विशिष्ट व्याख्यान रहा। डॉ. भल्ला ने प्रो. जी. पार्थासारथी स्मृति व्याख्यान मे ‘‘भारत मे खाद्य सुरक्षा, सामाजिक नीतियों व जनता‘‘ पर केंन्द्रित विभिन्न मुद्दों को छुआ। उन्होंने सदन का ध्यान आकर्षित करते हुऐ बताया कि किस प्रकार से आजादी के बाद से सन् 1966-67 से 1989-90 के मध्य हरित क्रांति के आगाज से पहले तक हमारा देश खाद्यान्न के क्षेत्र मे विदेशी मदद पर आश्रित था।
उन्होंने बताया कि कम कृषि उत्पादन व अमेरिका से मदद के रुप मे मिलने वाले गेहुं पी.एल.480 के कारण हमारे देश की हालत ‘‘शिप टू माउथ‘‘ वाली थी। डॉ. भल्ला ने बताया कि देश मे आर्थिक सुधारों व कृषि नीतियों मे निरंतर बदलावों के माध्यम से कृषि उत्पादन मे बढोत्तरी, उत्पादों के बाजार मूल्यों मे सुधार एवं वितरण प्रणाली का निर्माण हुआ।
इसी के मध्येनजर उपभोक्ताओं व किसानो को उनके कृषि उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के लिये 1965 मे भारतीय खाद्य निगम व कृषि मूल्य आयोग का गठन किया गया। उन्होंने एकीकृत बाल विकास, मिड़ ड़े मील व गर्भवती माताओं को निशुल्क भोजन इत्यादि को देश मे खाद्य सुरक्षा की दिशा मे उठाये गऐ महत्वपूणर््ा कदम की संज्ञा दी।
सम्मेलन मे विभिन्न वक्ताओं ने अपने शोध पत्रों मे देश के कृषि एवं मछली उत्पादों के विपणन, कृषि उत्पादन पर बाजार के नियंत्रण, मूल्यों के पूर्वानुमानों का महत्व, कृषि उत्पादन के मूल्य संर्वधन, गुणवत्तावूर्ण बीज व उपादानों के प्रयोग, व नीति निर्धारण मे सुधारों पर चर्चा की।
सम्मेलन के आयोजन सचिव कृषि अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष, डॉ. एस.एस.बुरडक ने बताया कि सम्मेलन में 90 शेाध पत्रों का वाचन किया गया। सम्मेलन में विभिन्न समानान्तर तकनीकि सत्रों मे सीआईएफई, मुम्बई के ड़ॉ. एम. कृष्णन, ड़ॉ. वी. बी. जुगाले एवं पूर्व विभागाध्यक्ष ड़ॉ. डी. सी. पन्त ने अध्यक्षता की एवं ड़ॉ.हरी सिंह, ड़ॉ. राम सिंह, ड़ॉ. सुबोध शर्मा, ड़ॉ. लतिका शर्मा, ड़ॉ. जी. एल. मीना एवं ड़ॉ. हेमन्त शर्मा ने रिपोर्टियर के रूप मे अपनी सेवाऐं दी।
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