‘जैण्डर बजटिंग’ पर कार्यशाला में सोच बदलने पर ज़ोर
यौन प्राकृतिक स्थिति है, जबकि जैण्डर सामाजिक सोच का परिणाम है। सामान्यतः यौन परिवर्तन नहीं हो सकता, लेकिन सामाजिक सोच में बदलाव से दायरे तोड़े जा सकते हैं और भूमिकायें बदली जा सकती हैं।
यौन प्राकृतिक स्थिति है, जबकि जैण्डर सामाजिक सोच का परिणाम है। सामान्यतः यौन परिवर्तन नहीं हो सकता, लेकिन सामाजिक सोच में बदलाव से दायरे तोड़े जा सकते हैं और भूमिकायें बदली जा सकती हैं।
ये विचार विद्या भवन स्थानीय स्वशासन एवं उत्तरदायी नागरिकता संस्थान की ओर से ‘जैण्डर बजटिंग’ पर दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन उभरकर आए।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज़ तहसीन ने कहा कि पहले महिला व पुरुष में समता की मानसिकता ज़रूरी है; इस आधार पर नीतियाँ व कार्यक्रम बनें जिनके बजट जैण्डर-सम्वेदनशील हों। मुख्य वक्ता सेवा मंदिर की स्वाति पटेल ने कहा कि सामाजिक विकास के क्रम में यौन के आधार पर स्त्रियोचित व पुरुषोचित गुण तय कर उनकी सीमायें बना दी गई हैं और उनसे बाहर निकलने में दोनों को संकोच होता है।
किन्नरों को विकास की धारा में कोई स्थान नहीं दिया गया है। जनगणना-2011 के आँकड़ों के अनुसार शहरों, शिक्षित व सम्पन्न क्षेत्रों में स्त्री-पुरुष अनुपात ज़्यादा बिगड़ा है। उन्होंने सारस व लोमड़ी की कहानी से समानता व समता का अन्तर स्पष्ट किया, जहाँ लोमड़ी एक समान दो थालियों में खीर परोसती है किन्तु चोंच लम्बी होने व शारीरिक गठन अनुकूल नहीं होने के कारण सारस उसे नहीं खा पाता। सशक्तता का अर्थ संसाधनों तक पहुँच व नियंत्रण है, जिनमें भौतिक, आर्थिक व बौद्धिक संसाधनों, आत्मसम्मान एवं अपना शरीर भी शामिल हैं।
दूसरे सत्र में मुख्य आयोजना अधिकारी सुधीर दवे ने उदयपुर को जैण्डर सम्वेदनशील जि़ला बनाने के लिए प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने उदाहरण दिया कि हैण्डपम्प कहाँ लगेगा यह निर्णय पुरुष करते हैं कि हैण्डपम्प कहाँ लगेगा, जबकि पानी भरकर महिलायें ही लाती हैं। निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी तृणमूल स्तर से सुनिश्चित की जानी चाहिए। जैण्डर सम्वेदनशील आयोजना में विभागों से ज़रूरी आँकड़े नहीं मिलना और पुरुष प्रधान मानसिकता सबसे बड़ी बाधायें हैं।
उन्होंने ब्लॉकवार लिंगानुपात व उच्चतर कक्षाओं में बालिकाओं के नामाँकन में गिरावट, महिला जनप्रतिनिधियों के पुरुष रिश्तेदारों का दबदबा, भूमि व पशुधन पर महिलाओं की मिल्कियत नहीं होना, सोनोग्राफी सेण्टर के फॉर्म ‘एफ’ का विश्लेषण नहीं होना आदि वस्तुस्थितियों पर चर्चा की। संस्थान द्वारा 151 वॉर्ड सभाओं के अनुभव के आधार पर सह-निदेशक हेमराज भाटी ने जैण्डर सम्वेदनशीलता पर गाँव-फलों में कार्य के सुझाव दिए।
चर्चा में पंचायत समिति सदस्य सरिता पालीवाल, सीमा खटीक व तुलसी नागदा, सरपंच आशा जैन, रेणु उपाध्याय व सवाराम गमेती, उपसरपंच मनीषा रेबारी व रणजीत सिंह, वार्ड पंच सुंदर देवी, छगन देवी, लाली देवी, किशन सिंह व मालाराम गरासिया तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
तीसरे सत्र में पूर्व विकास अधिकारी रमेश जैन ने पंचायती राज को हस्तान्तरित पाँच विभागों का संक्षिप्त परिचय दिया जिसके बाद समूह-चर्चा हुई। प्रारम्भ में, निदेशक डॉ. प्रभाकर रेड्डी ने कार्यशाला के उद्देश्य प्रस्तुत किये। अकादमिक सलाहकार के.सी. मालू ने बताया कि विद्या भवन कृषि विज्ञान केन्द्र में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन तृणमूल स्तर पर जैण्डर बजटिंग व स्वयं सहायता संस्थाओं की भूमिका पर सत्र होगा तथा समूहों के प्रस्तुतीकरण होंगे। संचालन डॉ. स्मिता श्रीमाली ने किया।
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