एनसेड्स दर्द के प्रबंधन के लिए सुरक्षित – प्रो. के. डी. रेंसफोर्ड
सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, मामूली चोट और सूजन जैसी समस्याओं में अपनी मर्जी से दवाएं लेना भारत के हर घर में एक सामान्य बात है। दर्द से राहत के लिए निमेसुलाइड जैसी एनसेड्स दवाओं के आम इस्तेमाल और इसके प्रभाव एवं सुरक्षा के बारे में लोगों के मन में अक्सर उठने वाले सवालों का जवाब देने के लिए शील्ड हलाम यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल साइंस के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. के. डी. रेंसफोर्ड ने तमाम जानकारियां दीं।
सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, मामूली चोट और सूजन जैसी समस्याओं में अपनी मर्जी से दवाएं लेना भारत के हर घर में एक सामान्य बात है। दर्द से राहत के लिए निमेसुलाइड जैसी एनसेड्स दवाओं के आम इस्तेमाल और इसके प्रभाव एवं सुरक्षा के बारे में लोगों के मन में अक्सर उठने वाले सवालों का जवाब देने के लिए शील्ड हलाम यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल साइंस के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. के. डी. रेंसफोर्ड ने तमाम जानकारियां दीं।
दर्द एक ऐसी स्थिति है जिससे हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी प्रभावित होता है। यह शरीर में किसी चोट के चलते होने वाली इन्फ्लेमेटरी प्रक्रिया का परिणाम है। यहां तक कि सिर्फ उदयपुर में 76 फीसदी ऐसे पेशेवर जो कंप्यूटर पर काम करते हैं वे मांसपेशियों के दर्द से परेशान होते हैं, संपूर्ण आबादी का 15 से 20 फीसदी हिस्सा गंभीर दर्द से और 25 से 30 प्रतिशत लोग लंबे समय तक चलने वाले दर्द से परेशान होते हैं। नॉन स्टेरॉइडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी डृग जिसे एनसेड्स भी कहते हैं, लंबे समय से इन्फ्लेमेशन और बुखार के चलते होने वाले दर्द से राहत के लिए इस्तेमाल होती आ रही है।
दो मामलों ने एनसेड्स के खतरे और फायदे के मुद्दे को बेहद तेजी से उाया और इसके परिणामस्वरूप 2004 में रोफेकॉक्सिब के इस्तेमाल में बेहद गिरावट आई, हृदय पर इसका बेहद बुरा प्रभाव नजर आ रहा था। इसके अलावा ल्युमिरेकॉक्सिब भी बाजार से गायब हो गई क्योंकि यह लिवर पर बुरा असर डाल रही थी।
शील्ड हलाम यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल साइंस के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. के. डी. रेंसफोर्ड ने इस विषय पर उदयपुर में कहा कि ’’दर्द एक ऐसी स्थिति है जिसे किसी भी व्यक्ति के जीवन से पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता है। हालांकि मामूली दर्द को नजरअंदाज कर सकते हैं लेकिन गंभीर दर्द की स्थिति में एनसेड्स लेना जरूरी हो जाता है। आज के समय में दुनिया भर में दर्द प्रबंधन के लिए दवाओं का इस्तेमाल चर्चा का एक सबसे महत्वपूर्ण विषय बन चुका है।
पिछले कुछ सालों में हुए अध्ययनों में यह साबित हो गया है कि अगर एक प्रशिक्षित डॉक्टर की सलाह से सही स्थिति और सही मात्रा में इस्तेमाल किया जाए तो साभी प्रकार के एनसेड्स हानिकारक नहीं होते हैं।’’
’’इन्फ्लेमेटरी या दर्द वाली स्थितियों के प्रभावी इलाज हेतु निमेसुलाइड का इस्तेमाल लंबे समय से होता आ रहा है। एक वयस्क व्यक्ति के लिए इसकी निर्देशित खुराक 100 मिग्रा दिन में दो बार है। यह अन्य परंपरागत दर्दनिवारक दवाओं के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है, खासतौर से गंभीर दर्द और डिसमेनोरिया जैसी स्थितियों में। यहां तक कि इसके जो खतरे सामने आए हैं उनकी गंभीरता आईब्रूफेन, डाइक्लोफेनैक और नैप्रोक्सेन आदि के मुकाबले 50 फीसदी कम रही है। इसे पेट और छोटी आंत तुरंत सोख लेती है, यही वजह है कि यह अन्य दवाओं के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है।
हाल के दिनों में, यह पाया गया है कि पैरासिटामॉल के ज्यादा इस्तेमाल से हेपैटोटॉक्सीसिटी और सीवी एवं जीआई संबंधी गंभीर दुष्परिणाम सामने आते हैं। आइब्रूुुफेन और पैरासिटामॉल जैसी ओवर द काउंटर दर्दनिवारक दवाओं पर किए गए विभिन्न टृायल और जनसंख्या अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि इनकी न्यूनतम खुराक भी सेहत पर बुरा असर डालती है।
सभी एनसेड्स और अन्य दवाएं किसी न किसी तरह का दुष्प्रभाव भी छोड़ती हैं, ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि लोगों को यह समझाया जाए कि वे बिना डॉक्टर की सलाह के इन दवाओं का इस्तेमाल न करें। कुछ दवाओं का संकलन कुछ लोगों के शरीर संयोजन के अनुकूल नहीं होता है, ऐसे में अगर किसी दवा के इस्तेमाल का तुरंत कोई दुष्परिणाम नजर आए तो अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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