पर्यावरण संरक्षण ही नई पीढ़ियों की सम्पदा
5 जून, 2013 को विद्या भवन प्रकृति साधना केन्द्र पर वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विश्व पर्यावरण दिवस आयोजित किया गया। इस अवसर पर उप वन संरक्षक मथारू ने परिचर्या का प्रारम्भ करते हुआ कहा कि पर्यावरण संरक्षण करना हम सबका दायित्व बनता है तथा हम सब मिल-जुल कर वनों का संरक्षण करें जिससे आने वाली पीढ़ी के लिये वन सम्पदा का हृास होने से बचाना होगा।
5 जून, 2013 को विद्या भवन प्रकृति साधना केन्द्र पर वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विश्व पर्यावरण दिवस आयोजित किया गया। इस अवसर पर उप वन संरक्षक मथारू ने परिचर्या का प्रारम्भ करते हुआ कहा कि पर्यावरण संरक्षण करना हम सबका दायित्व बनता है तथा हम सब मिल-जुल कर वनों का संरक्षण करें जिससे आने वाली पीढ़ी के लिये वन सम्पदा का हृास होने से बचाना होगा।
इसी क्रम में कई पर्यावरणविदों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जनसंख्या वृद्धि, खान-पान में होने वाले बदलाव तथा हमारे रहन-सहन के तौर-तरीकों में बदलाव प्रदूषण, रासायनिक उर्वरक, नई फसलों के प्रभाव तथा हमारे रहन-सहन पर वन सम्पदा पर विस्तृत चर्चा की गई।
इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस थीम- ‘‘थींक-इट-सेव’’ पर व्यापक विचार-विमर्श किये गये। परिचर्चा में मुख्य रूप से एस.पी. गौड़, डॉ. विनय पेन्डसे, प्रो. अरूण चतुर्वेदी, मुनीष गोयल, डॉ. सतीश शर्मा, प्राचार्य अनिल मेहता, डॉ. श्रीराम आर्य, डॉ. हैमानी, ग्रीन फ्यूचर फाउण्डेशन के निदेशक डॉ. जस्टर जोसुआ, एस.के. वर्मा, वन विभाग के फतेह सिंह, आदि ने भाग लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए मुख्य वन संरक्षण कृष्ण कुमार गर्ग ने कहा कि प्रकृति में बैठकर और रहकर जो शान्ति की अनुभुति होती है वह शहरों या भीड़ वाले क्षेत्र में नहीं होती है। कारण वायु प्रदूषण से बढ़ता कार्बन। पहले सदाबहार वन थे परन्तु धीरे-धीरे ये वन पतझड़ी हो गये हैं और अब रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहे हैं जो चिन्ता का विषय है। जल प्रदूषण भी इतना बढ़ गया है कि हर जगह मिनरल पानी लेकर जाना होता है। इसी प्रकार जंगलों को की अंधाधुन्ध कटाई से कई जीव-जन्तु तथा वनस्पती की जातियाँ लुप्त होती जा रही हैं।
कीटनाशकों के उपयोग से धरती की उर्वरता नष्ट हो गई है और ऐसी सब्जियां मिलती है जिसमें कई जहरीले रासायनिक तत्व मिले होते हैं जो कई प्रकार की बिमारियां फैलाती हैं। पहले समय में कार्बनिक खाद की खेती होती थी। वह सही थी तथा इसी पद्धति को उपयोग में लाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज़ तहसीन ने कहा कि प्रकृति साधना केन्द्र को स्थापित करना यह 60 वर्ष पहले की कल्पना थी और उसी कल्पना से यह स्थान हरा-भरा है तथा 400 एकड़ का एक विशाल वनीय क्षेत्र है, जिसमें विभिन्न प्रजाति के पशु-पक्षी, पौधों की जैव विविधता पनप रही है। यह शहर की वन प्रयोगशाला कहलाती है।
उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने पर भी चिन्ता व्यक्त की। रियाज तहसीन ने कहा कि आने वाली पिढ़ी के लिये पेड़-पौधों की सुरक्षा करनी चाहिये तथा हमें वस्तुओं को उपयोग अपनी आवश्यकतानुसार करनी चाहिये।
कार्यक्रम का संचालन तथा स्वागत प्रकृति साधना केन्द्र के समन्वयक डॉ. आर.एल. श्रीमाल ने किया तथा धन्यवाद टीपी शर्मा ने ज्ञापित किया।
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