करगिल और हल्दीघाटी युद्ध में समानता


करगिल और हल्दीघाटी युद्ध में समानता

इसलिये इतिहासकारों और विशेषकर राज्य सरकारों को डॉ. प्रदीप कुमावत ने पत्र लिखकर कहा है कि प्रताप को विजयी घोषित करने वाले हम कौन होते है। प्रताप स्वयं में विजेता थे। इतिहास इस बात की गवाही देता है इसलिये इतिहास

 

करगिल और हल्दीघाटी युद्ध में समानता

इंडियन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन के स्थायी सदस्य और महाराणा प्रताप फिल्म के निर्माता-निर्देशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने इन दिनों महाराणा प्रताप को लेकर चल रहे विवादों पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि हल्दीघाटी युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता। करगिल और हल्दीघाटी युद्ध दोनों में एक ही समानता है। करगिल में हमने पाकिस्तान को अपनी ही जमीन से खदेड़कर बाहर किया और उसके लिये हमें 50 दिन तक लड़ाई लड़नी पड़ी। ठीक वैसे ही हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों ने जिस तरह से गोगुन्दा क्षेत्र पर कब्जा किया तो 2 महिने बाद उन्हीं मुगलों को यहाँ से खदेड़कर बाहर किया। ऐसी परिस्थिति में करगिल युद्ध में हम विजयी हुए तो हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप को विजय प्राप्त हुई, इसे मानने में कोई दो राय नहीं होना चाहिये।

उक्त बात दूधतलाई पर इतिहास, प्रताप और हल्दीघाटी युद्ध विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुये डॉ. प्रदीप कुमावत ने कही। उन्होंने कहा कि युद्ध के तुरन्त बाद मानसिंह और आसफ खां की ड्योढी बंद कर दी गयी। अल-बदायूनी ने अपनी किताब के पृष्ठ संख्या 247 में इस बात के स्पष्ट संकेत दिये है कि अगर युद्ध में अकबर की फतह होती तो अकबर मानसिंह को सरोपाँव (सम्मान) से नवाजता। लेकिन उनकी ड्योडी बंद करने का कारण यहीं था कि न वो महाराणा प्रताप को जीत सके और न उन्हें बंदी बनाकर ला सके। यदि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की विजय होती तो वह सेना लेकर मेवाड़ पर दुबारा क्यों आता?

डॉ. कुमावत ने कहा कि हल्दीघाटी का युद्ध भले ही 3 घंटे का था लेकिन इस युद्ध के परिणाम सितम्बर में आए। जो लोग गौरीशंकर ओझा की बात को बार-बार दोहराते हैं, उन्होंने अपनी किताब ‘राजपुताना’ में स्पष्ट लिखा है कि इस युद्ध में प्रताप की प्रबलता रही। प्रबलता का मतलब वह अकबर पर हावी रहा इसे विजय के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिये। ओझा ने कभी “प्रताप युद्ध हारा” ऐसा नहीं लिखा है।

इस युद्ध के बाद यदि अकबर जीता होता तो भगवानदास और जलाल खान जैसे लोगों को मेवाड़ भेजने की आवश्यकता नहीं होती। आस पास की रियासते, जालोर और सिरेाही ने अपने रिश्ते अकबर से तोड़ लिये थे, इससे भी स्पष्ट होता है कि वे प्रताप के साथ विजयी होने पर जुड़े।

डॉ. कुमावत ने कहा कि यदि अकबर ने मेवाड़ पर विजय प्राप्त की होती तो मुगल सेना को गोगुन्दा में छिपकर रहने की कोई आवश्यकता नहीं होती। मुगल सेना ने गोगुन्दा के क्षेत्र में जरूर कब्जा किया था उन्होंने आस-पास के क्षेत्र में खाई खुदवाई थी जिससे कोई भी मेवाड़ी सेना उसमें घुस नहीं सके लेकिन प्रताप ने अपनी कुशल नीति के कारण एक ऐसा क्रम बनाया कि कोई भी राशन गोगुन्दा के अन्दर नहीं जा सके इसके लिये उन्होंने नाकाबंदी की विशेषकर पानरवा गुजरात क्षेत्र की दिल्ली से आने वाले सारे रास्ते जहाँ से रसद आ जा सके उन आने वाले सभी समूह को लूट लिया जाता था, जिससे मुगल सेना तक नहीं पहुँच सके। अन्तोगत्वा मुगल सेना को वहाँ कच्चे आम और घोड़ो का मांस को खाकर जीवित रहना पड़ा। उसके बाद मुगल सेना को वहाँ से भागना पड़ा। इस तरह जमीन फिर प्रताप के पास आ गई और जीत हासिल हुई।

जिस तरह से विभिन्न राजप्रशस्तियों, शिला-लेखों, काव्य, संस्कृत ग्रंथ, खुमान रासों, डिंगल ग्रन्थों, हिन्दी में प्रताप की इस महिमा का वर्णन किया गया है, उन सबसे हट कर सबसे महत्वपूर्ण बात जो शोध पर आधारित है, वो है देवीलाल पालीवाल की किताब जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि 18 जून के दिन खमनोर के मैदान में जो युद्ध हुआ, जिसका अंत सितम्बर में जाकर सम्पन्न हुआ। उसके जाते ही राणा ने गोगुन्दा पर वापस कब्जा कर लिया। स्वयं बदायूनी ने लिखा है जब मानसिंह रामसिंह हाथी को लेकर मुगल दरबार लोट रहा था लेकिन मार्ग में लोगों ने विश्वास नहीं किया कि प्रताप कहीं हारा है। जो लड़ाई खमनोर में प्रारम्भ हुई उसका अंत गोगुन्दा में हुआ। जहाँ से मानसिंह निराश होकर लौटा। परिणाम प्रताप के विजय के रूप में हुई।

जिस तरह करगिल के लम्बे युद्ध के पश्चात ही अंत में हम अपनी भूमि को लेने में सफल रहे उसी प्रकार हल्दीघाटी के युद्ध में भी अन्तिम समय में प्रताप की विजय को दर्शाता है।

इसलिये इतिहासकारों और विशेषकर राज्य सरकारों को डॉ. प्रदीप कुमावत ने पत्र लिखकर कहा है कि प्रताप को विजयी घोषित करने वाले हम कौन होते है। प्रताप स्वयं में विजेता थे। इतिहास इस बात की गवाही देता है इसलिये इतिहास को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होने प्रयत्न पूर्वक प्रमाणिक एक फिल्म बनाई है जो जन-जन तक पहुँचे वे अपनी मांग पर कायम रहेंगे वे अपनी मांग पर अंत तक संघर्ष करते रहेंगे।

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