राजस्थानी लोक कला व नृत्य के रंग में रंगी शाम


राजस्थानी लोक कला व नृत्य के रंग में रंगी शाम

राजस्थान जिसके पारम्परिक गीत, कला, संस्कृति ने भारत ही नहीं अपितु पुरे संसार में अलग ही पहचान बनाई है, इसी अनूठी संस्कृति को एक कदम आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान के लोक संस्कृति व साहित्य विभाग तथा भारतीय लोक कला मण्डल द्वारा तीन दिवसीय 'कला और संस्कृति मेला- 2012' का आयोजन शुरू हुआ।

 
राजस्थानी लोक कला व नृत्य के रंग में रंगी शाम

राजस्थान जिसके पारम्परिक गीत, कला, संस्कृति ने भारत ही नहीं अपितु पुरे संसार में अलग ही पहचान बनाई है, इसी अनूठी संस्कृति को एक कदम आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान के लोक संस्कृति व साहित्य विभाग तथा भारतीय लोक कला मण्डल द्वारा तीन दिवसीय ‘कला और संस्कृति मेला- 2012’ का आयोजन शुरू हुआ।

लोक कला मण्डल में आयोजित ‘कला और संस्कृति मेला- 2012’ के पहले दिन रंगारंग शाम की शुरुआत राजस्थानी कलाकारों ने अपनी रंगीली छठा बिखेरते हुए की। कार्यक्रम का शुभारम्भ लोक कला अध्यक्ष वेद व्यास ने दीप प्रज्वलित कर किया।

राजस्थानी लोक कला व नृत्य के रंग में रंगी शाम

‘लडली लुम्हा-झुम रे’ जेसे गीतों के साथ जैसलमेर के लंगा कलाकारों ने अपनी गायकी से सबका मन मोह लिया वहीँ अगली प्रस्तुती ‘कालियो कूद पड्यो मैला में’ कालबेलिया नृत्य के लोगो के कदमो को थिरकने पर मजबूर कर दिया।

रंगारंग प्रस्तुतियों में मेवाड़ कि पारम्परिक नाट्य शैली ‘घवरी’ के कलाकारों ने वाह-वाही लुटी और इस शाम के अंत में किशनगढ़ के चवरी नृत्य कलाकारों ने जाते-जाते लोगों के कदम रोककर उनको आकर्षित किया।

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