आकाशवाणी के स्थापना दिवस पर शाम-ए-गजल की महफिल


आकाशवाणी के स्थापना दिवस पर शाम-ए-गजल की महफिल

आकाशवाणी उदयपुर के 47वे. स्थापना दिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत् आज रेल्वे ट्रेनिंग संस्थान सभागार में शाम-ए-गजल की महफिल सजी जिसमें ख्यातनाम ग़ज़ल गायकों ने मशूहर कलाम पढ़कर आमंत्रित श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

 
आकाशवाणी के स्थापना दिवस पर शाम-ए-गजल की महफिल

आकाशवाणी उदयपुर के 47वे. स्थापना दिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत् आज रेल्वे ट्रेनिंग संस्थान सभागार में शाम-ए-गजल की महफिल सजी जिसमें ख्यातनाम ग़ज़ल गायकों ने मशूहर कलाम पढ़कर आमंत्रित श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

शाम-ए-गजल के आरंभ में कलाकारों का स्वागत करते हुए उपनिदेशक (कार्यक्रम) माणिक आर्य ने कहा कि कभी फारसी और अरबी जुबानों में पली-बढ़ी ग़ज़ल जब उर्दू के गुलसिंता हिन्दुस्तान में पहुंची तो देखते ही देखते यौवन की देहलीज पर अपनी खूबसूरती के परचम लहराने लगी। उसी सच्चाई को सामने लाने की कोशिश हमारी ये शाम-ए-गजल ।

शाम ए ग़ज़ल का आगाज स्थानीय ग़ज़ल गायक डॉ. देवेन्द्र हिरण से हुआ जिसमें उन्होने राहत इन्दोरी का कलाम सारी फितरत तो नकाबों में छीपा रखी थी, सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी और अली अहमद का कलाम कोई आहट कोई सदा ही नही, क्या कोई शहर में बचा नही सुनाई।

उदयपुर के ही प्रसि़द्ध ग़ज़ल गायक डॉ. प्रेम भंडारी ने ऑख का बादल सुख चुका है, फिर सावन सा क्या बरसा है और जो सजल सुख चुका हो वो हरा कैसे हो मै पयम्बर तो नही मेरा कहा कैसे हो, सुनाकर वाहवाही लूटी। महफिल में प्रख्यात् ग़ज़ल गायिका सीमा अनिल सहग़ल, मुम्बई ने सबसे पहले फैज़ की ग़ज़ल, चांद का फिर कोई दरवाजा खुला आखिरी शब, दिल में बिखरी कोई खुष्बू ए कबा आखिरी शब सुनाई तो श्रोता झूम उठे। उसके बाद उन्होंने दुष्यत की ग़ज़ल- ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नही था आपको धोखा हुआ होगा पेश की।

शाम-ए-गजल में जयपुर से आए प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक बंधु  अहमद हुसैन -मोहम्मद हुसैन ने मिर्जा गालिब के कलाम हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है, तुम्हीं कहो कि ये अंदाज -ए-गुफ्तगू क्या है तरन्नुम में पेश की।

आकाशवाणी के स्थापना दिवस पर शाम-ए-गजल की महफिल

उसके बाद उन्होंने मोमिन खां का कलाम-वो जो हम में तुम में करार था तुम्हें याद हो कि न या याद हो, शमीम जयपुरी की ग़ज़ल सख्त है इश्क की रहगुजर चलने वाले जरा देखकर और डॉ. बशीर बद्र का कलाम यूं ही बेसबब न फिरा करो किसी शाम घर रहा करो सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस कार्यक्रम में ग़ज़ल गायकों के साथ संगत कलाकारों ने तबले पर इफ्तकार हुसैन व वसीम अहमद, संतुर पर अनवर हुसैन, सितार पर नियाज अहमद खां और नरेश वैयर तथा सांरगी पर पत्ती खां और विजय कुमार धांघड़ा ने साथ दिया। कार्यक्रम का संयोजन कार्यक्रम अधिकारी विनोद शर्मा व संचालन वरिष्ठ उद्घोषक राजेन्द्र सेन ने किया।

कल मुशायरे में राजेन्द्र नाथ रहबर, पठानकोठ(पंजाब), प्रो. महेन्द्र अश्क बिजनौर (उ.प्र.), सुरेन्द्र सजर दिल्ली, सैयद अली नदीम बड़ोदरा (गुजरात), डॉ. दीप्ति मिश्रा मुम्बई, गोविन्द वर्मा जयपुर, प्रमोद रामावत प्रमोद, नीमच (म.प्र.), असद अली असद,बीकानेर, एजाज अकमल बासंवाड़ा, तथा स्थानीय शायर प्रो0 फारूख बक्शी, खलील तनवीर, आबिद अदीब, शाहिद अज़ीज, डॉ. सरवत खान व मुश्ताक चंचल भाग लेंगे।

इस समारोह की रिकार्डिग का प्रसारण आकाशवाणी उदयपुर से दिनांक 2,3 तथा 4 अप्रेल 2014 को रात्रि 9.15 से होगा। इस समारोह के तीनो दिन कार्यक्रमों रिकार्डिग कर प्रसारण दूरदर्शन जयपुर द्वारा किया जायेगा।

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