पछमता गांव में उत्खनन


पछमता गांव में उत्खनन

राजसमन्द जिले के गिलुण्ड कस्बे से 8 किलोमिटर दूर पछमता गांव में हो रहे उत्खनन पर पर पुरातत्वविदों का ध्यान बट गया है।

 

पछमता गांव में उत्खनन

राजसमन्द जिले के गिलुण्ड कस्बे से 8 किलोमिटर दूर पछमता गांव में हो रहे उत्खनन पर पर पुरातत्वविदों का ध्यान बट गया है।

कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने बताया पछमता आहड़ संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पुरा स्थल हैं इस गांव में ऐसी पांच मंगरियां है जिनमें से एक मे उत्खनन किया जा रहा है उत्खनन में डॉ. टेरेसा रेकजेक, डॉ प्रबोध श्रीवल्लकर एवं उत्खनन कार्य के निदेशक डॉ. ललित पाण्डेय, इशाप्रसाद तथा लगभग 6 छात्र जिसमें विदेशी एवं भारतीय दोनों कार्य कर रहे है।

डॉ. पाण्डे्य ने बताया कि अभी तक किये गये उत्खनन में यह ज्ञात होता है कि यहा के निवासी काले, लाल रंग के बर्तन बनाते थे जिनके अंदर व बाहर सफेद रंग की चित्रकारी की जाती थी। इन बर्तनों को बनाने की एक विशेष तकनीक थी जिसके अन्तर्गत चाक पर बर्तन को बनाकर उल्टा करके पकाया जाता था।

इस प्रकार के बर्तन इस संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। इसके अलावा परफोरेटेटेड, मृदभांड एवं रिजर्व स्लिप वेयर भी यहा मिली है जो गुजरात की हड़प्पा संस्कृति की पुष्टि करती है। इसके अलावा यहां पर दो चुल्हे मिले है और राख के काफी प्रमाण मिले है जिससे यह सिद्ध होता है कि यहां के निवासी विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में संलग्न थे।

अभी तक आहड संस्कृति के 6 स्थानों के पर खुदाई की गई है जिससे यह पता चलता है कि मेवाड में कृषि एवं पशुपालन करने का श्रेय यहां के मूल निवासियों को था जो लगभग आज से साढे चार हजार साल पूर्व इस स्थान पर बसना प्रारंभ हुए थे।

यहां के निवासियों को मेवाड के प्रथम कृषक कहा जा सकता है। इसके अलावा पछमता से कच्ची ईंटो के प्रमाण भी मिले है जो इनके उच्च तकनीकी ज्ञान को सिद्ध करता है।

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